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पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह

बिछड़ा प्यार (कहानी)

कानपुर शहर के एक मोहल्ले में रहने वाले रिया और अमन बचपन के दोस्त थे, जो एक ही पड़ोस में पले-बढ़े थे। दोनों की ज़िन्दगी हँसते-खेलते अच्छे से गुज़र रही थी। कभी-कभी बचपन की उनकी आपसी चुहल कुछ इस सीमा तक बढ़ जाती थी कि दोनों आपस में झगड़ भी पड़ते थे। दोनों को फोटोग्राफी का शौक था और यदा-कदा जगह-जगह के कई तरह के फोटो लिया करते थे। कभी-कभार ऐसा भी होता था कि ‘मेरा फोटो तुझसे अच्छा’, कह कर एक-दूसरे के फोटो फाड़ डालने की नौबत भी आ जाती थी। बचपन का यह लड़ना-झगड़ना कब उनकी एक-दूसरे के प्रति आसक्ति में बदल गया, इसका उन्हें पता ही नहीं चला। उन्होंने अपने सपनों से लेकर अपने सभी रहस्यों तक को एक-दूसरे के साथ साझा किया था। वे अविभाज्य थे, एक शरीर और दो प्राण बन चुके थे। लेकिन अचानक उनकी किस्मत ने पलटा खाया और अमन का परिवार भीषण आर्थिक विषमता की जकड़न में आ गया। एक दिन अमन को अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में जाना पड़ा। उन्होंने सम्पर्क में रहने का वादा किया और कुछ समय तक उन्होंने सम्पर्क बनाए भी रखा। उन्होंने एक-दूसरे को पत्र लिखकर अपने नये अनुभव और भावनाएँ साझा कीं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, पत्रों का

विधान (एक प्राचीन लघुकथा)

  एक प्राचीन कहानी, जिन लोगों ने नहीं पढ़ी-सुनी हो, उनके लिए - एक समय की बात है। यमराज श्री विष्णु भगवान के दर्शन करने विष्णुधाम पहुँचे। द्वार पर गरुड़ जी पहरा दे रहे थे। द्वार के ऊपर की तरफ एक खूँटे पर एक कबूतर बैठा था। यमराज ने गहरी दृष्टि से उसे देखा और भीतर चले गये। कबूतर थर-थर काँपने लगा।  गरुड़ जी ने पूछा- "क्या बात है भाई, इतना घबरा क्यों रहे हो?" "श्रीमान, यमराज जी की दृष्टि मुझ पर पड़ गई है। मैं अब बच नहीं सकूँगा।" "अरे नहीं भाई, व्यर्थ चिंता क्यों करते हो? उनका तुमसे कोई वास्ता नहीं है। वह तो यहाँ परमेश्वर के दर्शन करने आये हैं।" "नहीं प्रभु, मैंने सुना है, जिस पर उनकी दृष्टि पड़ जाए, वह बच नहीं सकता। मेरी मृत्यु अवश्यम्भावी है।" -भयाक्रान्त कबूतर ने कहा।  "अगर ऐसा ही सोचते हो तो चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें नितान्त सुरक्षित स्थान पर ले चलता हूँ।" कबूतर ने प्रसन्नता से सहमति दे दी। गरुड़ जी ने मात्र दो पल में उसे सहस्रों योजन दूर एक विशालकाय पर्वत की गहरी कन्दरा में ले जा कर छोड़ दिया और सुरक्षा के लिए कन्दरा का मुख एक विशाल चट्टान से ढ