एक प्राचीन कहानी, जिन लोगों ने नहीं पढ़ी-सुनी हो, उनके लिए -
एक समय की बात है। यमराज श्री विष्णु भगवान के दर्शन करने विष्णुधाम पहुँचे। द्वार पर गरुड़ जी पहरा दे रहे थे। द्वार के ऊपर की तरफ एक खूँटे पर एक कबूतर बैठा था। यमराज ने गहरी दृष्टि से उसे देखा और भीतर चले गये। कबूतर थर-थर काँपने लगा।
गरुड़ जी ने पूछा- "क्या बात है भाई, इतना घबरा क्यों रहे हो?"
"श्रीमान, यमराज जी की दृष्टि मुझ पर पड़ गई है। मैं अब बच नहीं सकूँगा।"
"अरे नहीं भाई, व्यर्थ चिंता क्यों करते हो? उनका तुमसे कोई वास्ता नहीं है। वह तो यहाँ परमेश्वर के दर्शन करने आये हैं।"
"नहीं प्रभु, मैंने सुना है, जिस पर उनकी दृष्टि पड़ जाए, वह बच नहीं सकता। मेरी मृत्यु अवश्यम्भावी है।" -भयाक्रान्त कबूतर ने कहा।
"अगर ऐसा ही सोचते हो तो चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें नितान्त सुरक्षित स्थान पर ले चलता हूँ।"
कबूतर ने प्रसन्नता से सहमति दे दी। गरुड़ जी ने मात्र दो पल में उसे सहस्रों योजन दूर एक विशालकाय पर्वत की गहरी कन्दरा में ले जा कर छोड़ दिया और सुरक्षा के लिए कन्दरा का मुख एक विशाल चट्टान से ढँक दिया। गरुड़ जी उसको सुरक्षा प्रदान कर प्रसन्नतापूर्वक विष्णुधाम लौट आये।
दो मिनट में जब यमराज भगवान विष्णु के दर्शन कर बाहर निकले तो कबूतर को वहाँ नहीं देख कर विस्मित हो उठे, किन्तु दूसरे ही क्षण उनके मुख पर स्मित की रेखाएँ उभर आईं।
"क्या बात है यम देव? आप के चेहरे पर यह स्मित क्योंकर है? -गरुड़ जी ने साश्चर्य पूछा।
"मैं जब यहाँ आया था तो यहाँ बैठे कबूतर को देख कर आश्चर्य हुआ था कि कुछ ही पलों में उसकी मृत्यु सहस्रों योजन दूर एक पर्वत की कन्दरा में बैठे बाज के द्वारा होना निर्धारित है और यह यहाँ बैठा है। सोच रहा था कि यह कैसे सम्भव हो सकेगा!... किन्तु अन्ततः...।" -मुस्कुराए यमराज और आगे बढ़ गये।
गरुड़ जी बेचारे अपना सिर थाम कर रह गए।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-11-2022) को "गुरुनानक देव जी महाराज" (चर्चा अंक-4607) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चामंच के इस सुन्दर अंक में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आ. डॉ. शास्त्री!
जवाब देंहटाएंतभी कहते हैं होनी होकर रहती है
जवाब देंहटाएंसुन्दर कथा।
धन्यवाद महोदया!
हटाएंअद्भुत! काल अपना चक्का चला ही लेता है, निमित्त कोई भी बने।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदया!
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