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छलावा (कहानी)

 


प्रवेश की सुगमता की दृष्टि से शहर का ‘गवर्नमेंट कॉलेज’ विद्यार्थियों की पहली पसंद था। समृद्ध पृष्ठभूमि की लड़की धर्मिष्ठा उस कॉलेज में फाइनल ईयर आर्ट्स में पढ़ती थी। पढाई में तो वह ठीक थी ही, सुन्दर भी बहुत थी। बोलती, तो लगता जैसे आवाज़ में मिश्री घुली हो। कॉलेज में सब के आकर्षण का केन्द्र थी वह। कई लड़के उसके दीवाने थे, किन्तु वह उन्हें घास भी नहीं डालती थी। मितभाषी लड़की मधुमिता उसकी विश्वसनीय सहेली थी जिससे वह अपनी हर बात साझा करती थी और सामान्यतः कॉलेज में उसके साथ ही रहती थी। मधुमिता के अलावा प्रायः चार-पाँच सहपाठियों के साथ ही वह मिलती-जुलती थी। इस तरह से बहुत ही छोटी मित्र-मंडली थी उसकी। उसके उन मित्र सहपाठियों में एक शर्मीला लड़का सोमेश भी था, जो पढ़ने में बहुत होशियार था। सुन्दर नहीं, तो बदसूरत भी नहीं कहा जा सकता था उसे। हाँ, एक सुगठित बदन व सौम्य स्वभाव का मालिक अवश्य था वह। कॉलेज में पढाई करते अच्छा वक्त गुज़र रहा था उन सब का। 

एक दिन कॉलेज में क्लास ख़त्म होने के बाद सोमेश कॉलेज कम्पाउण्ड में पहुँचा ही था कि उसने अपने पीछे से आती एक सुरीली आवाज़ सुनी- “अकेले-अकेले कहाँ जा रहे हो, हमें साथ ले लो जहाँ…”

चौंक कर सोमेश ने पीछे घूम कर देखा, धर्मिष्ठा गाती हुई चली आ रही थी। यह सोच कर कि शायद वह किसी और के लिए गा रही है, उसने अपने आजू-बाजू, सब तरफ देखा, कहीं कोई और नहीं था वहाँ। तब तक धर्मिष्ठा उसके पास आ चुकी थी। धर्मिष्ठा उसका हाथ पकड़ कर प्यार भरे स्वर में बोली- “इधर-उधर क्या देख रहे हो? बन्दी आप से ही मुख़ातिब है जनाब!”

“अरे, मैं इतना खुशनसीब कब से हो गया? सुबह से बनाने के लिए कोई और नहीं मिला क्या?”

“सोमेश, कई दिनों से तुम्हारे बारे में सोचती रही हूँ। तुम्हें तो पता ही होगा, कई लड़के मेरे आगे-पीछे घूमते हैं, लेकिन उन छिछले लड़कों को मैंने कभी सीरियसली नहीं लिया। तुम्हारी सादगी और संजींदगी ने मुझे तुम्हारे बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है। परीक्षा के बाद हम लोग यह कॉलेज छोड़ देंगे। इसके बाद तुम कहाँ होंगे, मैं कहाँ हूँगी, हम नहीं जानते।… स्कूल में थी, तब से सोचा करती थी कि शादी करूँगी तो प्यार कर के। पर सच मानो, अभी तक किसी पर दिल नहीं आया। मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ यार!” 

हतप्रभ देखता रह गया सोमेश, ‘अरे यह तो सचमुच सीरियस है।’ उसे अपने भाग्य पर विश्वास नहीं हो रहा था। किंकर्तव्यविमूढ़ वह बस देखता ही रहा, कुछ सूझा नहीं उसे। धीरे-से अपना हाथ छुड़ा कर तेज़ गति से या यूँ कहें कि लगभग भागते हुए वह अपनी स्कूटी के पास पहुँचा और ड्राइव कर के भाग छूटा वहाँ से। 

चकित धर्मिष्ठा “अरे, अरे सोमेश, क्या हो गया तुम्हें?” कहती रह गई और फिर झुंझला कर “बौड़म कहीं का”, बड़बड़ाती हुई लाइब्रेरी की तरफ मुड़ गई। मधुमिता वहीं बैठी मिल गई। उसने मधुमिता को बताया कि किस तरह सोमेश के सामने उसने अपने प्यार का इज़हार किया और कैसे सोमेश उसके पास से निकल भागा। 

“क्या सचमुच तू उसे प्यार करने लगी है धर्मिष्ठा? ऐसा क्या है उसमें, जो तुझे भा गया है?”

“पता नहीं मधु, शायद उसकी सादगी और भोलापन।”

“चल बधाई डिअर, आखिर कोई तो तुझे पसंद आया। पर तुझे कॉमर्स वाला चंद्रवीर अच्छा नहीं लगता? वह तो तेरी जोड़ी का है, तेरी तरह ही सुन्दर! कॉलीग तो कॉलीग, उस पर तो जूनियर लड़कियाँ भी मरती हैं।”

“अरे यार, वह बहुत ही हेँकड़ू टाइप का बन्दा है और मुझे ऐसे लोगों से चिढ़ है। मुझे नहीं मुँह लगाना ऐसे लड़के को।” 

मधुमिता यह सुन कर खामोश हो गई। 

उधर सोमेश घर पहुँच कर, स्कूटी खड़ी कर भीतर गया। उसके पापा अभी तक ऑफिस से नहीं लौटे थे और मम्मी सो रही थीं। वह सीधा अपने कमरे में गया और कुर्सी में धँस गया। घर पहुँचने तक वह ऐसी मनःस्थिति में था, जैसे उसके पीछे सैकड़ों भूत लगे हों। कुछ देर  बैठे रहने के बाद वह उठा और शीशे के सामने जा खड़ा हुआ। उसने शीशे में अपना चेहरा घुमा-फिरा कर कई बार देखा। उसे लगा, शायद वह भी सुन्दर है। तभी तो धर्मिष्ठा जैसी खूबसूरत लड़की उस पर न्यौछावर हो रही है। उसके चेहरे पर तसल्ली भरी मुस्कान तैर गई। धर्मिष्ठा के आगे से यूँ भाग आने के लिए उसे बहुत ग्लानि हुई। उसने निश्चय कर लिया कि आज की अपनी हरकत के लिए वह कल ही धर्मिष्ठा से माफ़ी मांग लेगा। उसे अचानक यह भी लगने लगा कि वह धर्मिष्ठा से प्यार करने लगा है। एक अनिवर्चनीय आत्मविश्वास से उसका चेहरा चमकने लगा। हमेशा की तरह आज भी उसने अपनी डायरी लिखी। डायरी लिखना उसकी हॉबी थी। दिन भर की सभी बातें व तमाम एहसास वह सोने से पहले लिखना नहीं भूलता था। 

रात देर तक सोमेश उसके ख़यालों में डूबता-उतराता रहा। सुबह उठने के बाद वह जल्द ही तैयार हो कर कॉलेज के लिए रवाना हो गया, जैसे कि धर्मिष्ठा रात से कॉलेज में ही उसका इन्तज़ार कर रही हो। अभी कॉलेज का दरवाज़ा भी नहीं खुला था। वह बाहर खड़ा दरवाज़ा खुलने का इन्तज़ार करता रहा। उसे अपने-आप पर हँसी आ गई और मन ही मन कह उठा- ‘सोमेश, साले मजनू, क्या हो गया है तुझे? प्यार के हल्के-से झौंके ने ही तुझे तो आसमान में उड़ा दिया है।’ 

संयोग से पहला पीरियड खाली था। ग्यारह बजे दूसरा पीरियड हिस्ट्री का था। क्लास शुरू हो गई, लेकिन धर्मिष्ठा अभी तक नहीं आई थी। क्लास हिस्ट्री की थी, लेकिन धर्मिष्ठा की अनुपस्थिति ने तो उसकी जिओग्रफी (geography) ही बिगाड़ दी थी। लेक्चरर ने क्या पढ़ाया, उसे कुछ होश नहीं था। उसकी नज़र लगातार क्लास के दरवाज़े पर बनी हुई थी। सभी सहपाठी उसकी नज़रों को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे, किन्तु जान कुछ भी नहीं सके। केवल एक लड़की मधुमिता थी, जो सोमेश की मनःस्थिति को समझ रही थी। पीरियड ख़त्म होने तक भी धर्मिष्ठा नहीं आई। अगला पीरियड फिर खाली था। अनमने मूड के साथ सोमेश बाहर निकला और काफ़ी देर तक इधर-उधर देखते रहने के बाद भी जब धर्मिष्ठा कहीं दिखाई नहीं दी, तो वह दो बार कॉलेज के गेट तक हो आया। निराश हो कर वह कॉमन रूम की तरफ गया। उसने देखा, धर्मिष्ठा मधुमिता के साथ बैठी कुछ बातें कर रही थी। उन दोनों के अलावा कॉमन रूम में और कोई नहीं था। सोमेश को देखा, तो दोनों चुप हो गईं।

 “आओ सोमेश!” -मधुमिता ने कहा। सोमेश ने सिर को हल्की जुम्बिश दी और उनके पास आ कर बैठ गया। 

सोमेश मधुमिता को धन्यवाद कहने की औपचारिकता निभाना भी भूल गया। उसने समय न गवाँ कर धर्मिष्ठा से कहा- “अरे, तुम यहाँ हो और मैंने पूरा कॉलेज छान मारा। और हाँ धर्मिष्ठा, मुझे तुम्हें कल की बात के लिए ‘सॉरी’ कहना है। कुछ ज़रूरी काम होने से कल अचानक मुझे चले जाना पड़ा था।”

“तुम लोग बातें करो, मुझे जाना पड़ेगा। खन्ना सर से कुछ बात करनी है।” -कह कर मधुमिता ने उन्हें अकेला छोड़ दिया।  

“ऐसा क्या ज़रूरी काम था कि मेरी बात का जवाब देना भी ज़रूरी नहीं समझा तुमने? आगे बढ़ कर प्यार का इज़हार करने को तुमने मेरी बेशर्मी समझा था न? मैं लड़की हूँ इसीलिए न?” -धर्मिष्ठा ने अपना गुबार निकाला। 

“अरे यार, ‘सॉरी’ बोल दिया है न मैंने। तुम्हें क्या पता, मैं तुम्हारी याद में रात भर सो भी नहीं सका हूँ।”

“बनाओ मत मुझे, झूठे कहीं के!”

धर्मिष्ठा के इस प्यार से सराबोर उलाहने ने सोमेश के बदन में झुरझुरी पैदा कर दी। धर्मिष्ठा ने देखा, सोमेश का चेहरा टमाटर की तरह लाल-सुर्ख हो गया है। 

“अरे, तुम तो लड़कियों की तरह शर्मा गये। भई, वारी जाऊँ तुम्हारी इस अदा पर।” -धर्मिष्ठा खिलखिला कर हँस पड़ी। 

कुछ प्रफुल्लित, कुछ झेंपे अन्दाज़ में सोमेश भी मुस्कुरा दिया। 

“अच्छा बताओ, तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो?” -धर्मिष्ठा ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।

(2)

सोमेश अब तक कुछ संतुलित हो गया था, रूमानी आवाज़ में बोला- “अब तुमने मुझे सोचने लायक छोड़ा ही कहाँ है?”

“ओह जनाब, आप तो सचमुच मान गए कि मैं आप पर मरती हूँ।” -सहसा धर्मिष्ठा का स्वर कुछ गम्भीर हो गया। 

“मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा धर्मिष्ठा।” -सोमेश बौखला गया। धर्मिष्ठा के चेहरे का बदला रंग देख कर वह समझ नहीं पाया कि आखिर वह चाहती क्या है?

“फिर क्या है यह सब? क्यों बता रहे थे कि मेरी याद में तुम रात भर सो नहीं सके थे?” -धर्मिष्ठा का स्वर यथावत् था। 

धर्मिष्ठा का उस पर यह दूसरा प्रहार था। इस बार तो सोमेश बुरी तरह से सहम गया। उसे सूझ नहीं रहा था कि क्या जवाब दे। “सॉरी!” कह कर वह कुर्सी से उठा और कॉमन रूम के दरवाज़े की और चल दिया। 

“एक मिनट रुको सोमेश! तुमसे कुछ कहना है।” -धर्मिष्ठा ने पीछे से आवाज़ दी। सोमेश स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा था, फिर भी उसने पीछे मुड़ कर देखा। धर्मिष्ठा के चेहरे पर आमंत्रित करती एक मोहक मुस्कान थी। वह यंत्रवत् धर्मिष्ठा की ओर लौटा। 

“तुम सच में ना, स्वीट तो हो ही, बहुत भोले भी हो। न तुम मेरी सीरियसनैस समझ पाते हो और न ही मेरा मज़ाक। कल पहली बार मैंने जब खुल कर अपनी फीलिंग्स बताई, तो तुम मुझे वहीं खड़ी छोड़ कर भाग गये थे और आज थोड़ा-सा मज़ाक क्या कर लिया, चुपचाप उठ कर रवाना हो गये। एकदम बुद्धू हो यार तुम तो!” 

‘तुम लड़की हो या बाज़ीगर? परी हो या जादूगरनी? क्या कहूँ, क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आता। कैसे निभेगी तुम्हारे साथ?’ -सोमेश ने कहा। उस का मन कर रहा था, अपना सिर नोच डाले। 

“कुछ भी मत सोचो, कुछ भी मत कहो जानम! प्यार करने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी हुआ करती है।… चलो, वादा करती हूँ, अब कभी तुमसे मज़ाक नहीं करूँगी।”

सोमेश कुछ जवाब देता, उसके पहले ही मधुमिता वापस आ गई- “अरे, तुम लोग अभी भी बतिया रहे हो। टाइम नहीं देखा तुमने? चौथा पीरियड शुरू होने वाला है। पता है न, आज सिविक्स का नया चैप्टर शुरू होगा।”

सोमेश ने घड़ी देखी और खड़ा होते हुए बुदबुदाया- “ओ माय गॉड! इतना टाइम निकल गया।”

धर्मिष्ठा भी तुरंत उठ खड़ी हुई और तीनों क्लास रूम की तरफ चल दिये। आसमान में बादल घुमड़ रहे थे। बारिश की फुहारें शुरू हो गई थीं। लेक्चर के दौरान धर्मिष्ठा ने दो-तीन बार देखा, सोमेश चोरी-चोरी उसकी तरफ देख रहा था। मधुमिता उसके और सोमेश के बीच बैठी थी। धर्मिष्ठा ने कागज़ के एक टुकड़े पर कुछ लिखा और उसे मोड़ कर सोमेश को देने के लिए मधुमिता के हाथ में थमाया। मधुमिता से स्लिप मिलते ही सोमेश ने उसे खोल कर देखा, लिखा था- ‘पांचवें पीरियड के बाद लाइब्रेरी के पास वाले कॉरिडोर में मिलो।”

सोमेश ने धर्मिष्ठा की और देखा और स्वीकृति में सिर हिला कर मुस्कुरा दिया। 

पांचवें पीरियड के बाद सोमेश और धर्मिष्ठा निर्धारित जगह पर मिले। आगे-पीछे देखने के बाद संतुष्ट हो कर धर्मिष्ठा ने सोमेश के गले में अपने दोनों हाथ डाल दिये और उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोली- “यार, अभी वाला पीरियड मिस कर सकते हो क्या? वैसे भी यह लास्ट क्लास है। नेशनल पार्क में चलते हैं। देखो न, मौसम कितना सुहाना हो रहा है!” 

कुछ लड़कों के बोलने की आवाज़ें आईं। शायद वह इस तरफ ही आ रहे थे। धर्मिष्ठा ने अपने हाथ नीचे खींच लिये। 

सोमेश ने अपनी रिस्टवॉच में देखा, ढ़ाई बज रहे थे। लगभग एक घंटे की हल्की से मध्यम वर्षा के बाद आसमान भी कुछ साफ हो गया था। वह उत्साहित हो कर बोला- “ऐसा क्यों न करें, मूवी चलते हैं। अभी तो टिकट भी मिल जायेगा।”

“चल सकते हैं, लेकिन हॉल में तुम कोई शरारत तो नहीं करोगे?” -अपने स्वर में कुछ मादकता ला कर धर्मिष्ठा ने कहा। 

“नहीं बाबा, नहीं।  तुम्हारे मूड से डर लगता है।”

धर्मिष्ठा ने ठहाका लगाया। आस-पास से जा रहे लड़के-लड़कियों ने अजीब नज़रों से उसकी ओर देखा, तो वह झेंप गई। उसने सोमेश का हाथ दबा कर कहा- “चलो यार, निकल पड़ते हैं। किस मूवी में ले जाओगे?”

“तुम चलो तो सही। बहुत अच्छी मूवी है।”

धर्मिष्ठा ने मधुमिता को फोन कर के बताया- “मैं सोमेश के साथ मूवी देखने जा रही हूँ।”

“हाँ-हाँ, जाओ भई! तुम्हें अब मेरी कम्पनी की ज़रुरत कहाँ रह गई है। अब तो मुझे तुम दोनों के बीच बस सूचना आदान-प्रदान करने का काम ही करना है।” -मधुमिता ने कृत्रिम नाराज़गी दिखाई। धर्मिष्ठा ने मुस्कुरा कर उसे फोन पर ही चूम लिया। 

सोमेश और धर्मिष्ठा अपनी-अपनी स्कूटी से सड़क नापते हुए बातें भी करते जा रहे थे। 

“देखो, दो मूवी देखने लायक हैं। एक तो पीवीआर में चल रही हॉरर मूवी ‘ज़िन्दा भूत’ है और दूसरी एक पुरानी मूवी है ‘तलाश’, जिसके लिए आइनॉक्स जाना पड़ेगा।” -सोमेश ने धर्मिष्ठा के सामने ऑप्शन रखा। 

“तलाश तो देखी हुई है यार! रिपीट करने का मेरा मूड नहीं है। मुझे हॉरर भी पसंद है।… ज़िन्दा भूत तो मेरे साथ चल ही रहा है, लेकिन उसे सिनेमा हॉल में देखने का अलग ही मज़ा होगा।” -तिरछी नज़र से सोमेश की ओर देख कर धर्मिष्ठा ने चुटकी ली। 

धर्मिष्ठा का इशारा समझ कर सोमेश मुस्कुरा दिया। पीवीआर पहुँच कर सोमेश बालकनी क्लास की टिकट विंडो की लाइन में लगा, तो धर्मिष्ठा ने उसका हाथ पकड़ कर लाइन से बाहर खींच लिया और धीरे-से बोली- “लेडीज़ वाली लाइन बहुत छोटी है, टिकट मैं लेती हूँ।”

टिकट ले कर दोनों हॉल में पहुँचे। बालकनी की सबसे पीछे वाली अधिकांश सीट्स खाली पड़ी देख धर्मिष्ठा सोमेश का हाथ पकड़ कर उधर ही ले चली। मूवी शुरू हुई। जैसा कि अमूमन होता है, शुरुआत कुछ बोरियत वाली थी, लेकिन धीरे-धीरे सोमेश की दिलचस्पी बढ़ने लगी। धर्मिष्ठा का फोकस फिल्म से ज़्यादा सोमेश पर था। फिल्म शुरू होने के लगभग बीस मिनट के बाद नायक-नायिका के एक रोमांटिक दृश्य के दौरान धर्मिष्ठा ने अपना हाथ सोमेश के हाथ पर रख कर दबाया। सोमेश ने प्रतिक्रिया में मुस्कुराते हुए अपने हाथ पर रखे धर्मिष्ठा के हाथ पर अपना दूसरा हाथ भी रख दिया। चन्द क्षणों के बाद धर्मिष्ठा ने अपना चेहरा सोमेश की बाँह पर टिका दिया। सोमेश के लिए किसी लड़की का ऐसा स्पर्श एक नया ही अनुभव था। उसके बदन में एक सिहरन-सी दौड़ गई।

(3)

 इस सबके बावज़ूद अपनी तरफ से कोई और पहल करना उसके लिए बहुत मुश्किल था। उसे डर था, धर्मिष्ठा किसी बात को अन्यथा न ले ले। धर्मिष्ठा कितनी भी खुले दिमाग की रही हो, आखिर थी तो लड़की ही। उसने भी अपनी तरफ से कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया। मूवी के शेष भाग ने दोनों को बाँध के रख दिया था। डर और उत्तेजना के उस माहौल में फिल्म के अंत तक कुछ और सोचने की फुरसत दोनों को ही नहीं मिली। 

हॉल से बाहर निकले तो सोमेश धर्मिष्ठा से अपनी नज़र चुरा रहा था। बात शुरू करने के लिए धर्मिष्ठा ने ही फिर पहल की- “मूवी ख़त्म हो चुकी है और हम लोग हॉल के बाहर आ गये हैं महाशय, आपको पता भी है?”

“हाँ धर्मिष्ठा, मैं दरअसल मूवी के बारे में ही सोच रहा था।“ -सोमेश ने अपनी झेंप मिटाई।

सामान्य बातचीत के बाद स्कूटी उठा कर दोनों अपने घर के लिए रवाना हो गये। 

अगले दिन कॉलेज में एक-दूसरे से मिलने पर मधुमिता ने धर्मिष्ठा से पूछा- “कहो जनाब, कैसी रही मूवी?”

“मूवी तो ठीक-ठाक ही थी।”

“फिर ठीक-ठाक क्या नहीं था?”

“सच कहूँ, तो उस अनाड़ी के साथ मूवी देखने जाने का मेरा फ़ैसला ही ग़लत था।”

“पहेलियाँ मत बुझा यार, साफ-साफ़ बोल न!”

और फिर सिनेमा हॉल में हुई तमाम बात बता कर धर्मिष्ठा बोली- “या तो वह साला एकदम डरपोक है या फिर एकदम ठण्डा।”

“यूँ कह ना कि इश्क परवान नहीं चढ़ा।” -मधुमिता ने ठहाका लगाया और पुनः बोली- “यार धर्मिष्ठा, उल्टी-सुल्टी बातें कर के तूने ही तो उसे डरा दिया है। तुझे ठीक से समझेगा, तभी न कुछ खुल सकेगा वह। वैसे भी वह कुछ संजीदा लड़का है, यह तो तू जानती ही है।”

“मेरे पास वक्त नहीं है उसे समझाने के लिए।” -झुंझला उठी धर्मिष्ठा। 

धर्मिष्ठा दो-तीन दिन तक सोमेश से खिंची-खिंची ही रही। तीन दिन बाद सोमेश कॉलेज के ब्रेक टाइम में खुद आगे बढ़ कर बोला- “क्या बात है धर्मिष्ठा, नाराज़ हो मुझसे?”

“क्यों नाराज़ होऊँगी तुमसे भला? तुम क्या लगते हो मेरे?”

“फिर वही उखड़ा-उखड़ा जवाब! सच में ऐसा सोचती हो या फिर से यह कोई नया मज़ाक है?” -मुस्कुराने की कोशिश की सोमेश ने। 

“तुम बिल्कुल ढपोलशङ्ख हो। मैं भी ना, कैसे लड़के से प्यार कर बैठी हूँ?”

धर्मिष्ठा की इस बात ने सोमेश के दिमाग की घण्टी बजा दी। अपनी आवाज़ में मादकता उंडेल कर उसने धर्मिष्ठा से कहा- “धर्मिष्ठा, गुस्सा थूँक दो और लाइब्रेरी में पहुँचो। तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।”

धर्मिष्ठा ने सोमेश को आश्चर्य से देखा और लाइब्रेरी की तरफ बढ़ गई। लाइब्रेरी के दरवाज़े में घुसते वक्त उसने पीछे मुड़ कर देखा, सोमेश भी आ रहा था। भीतर जाने पर सोमेश ने देखा, दो लड़के और तीन लड़कियाँ  एक टेबल के इर्द-गिर्द बैठे किसी मामले में डिस्कस कर रहे थे और धर्मिष्ठा एक रैक में किताब ढूंढने का नाटक कर रही थी। वह धर्मिष्ठा को इशारा करते हुए आगे वाली दो रैक्स की लाइन में चला गया। धर्मिष्ठा भी उसके पास चली आई। सोमेश ने इधर-उधर देख कर बिना विलम्ब किये धर्मिष्ठा को अपनी बाँहों में जकड़ा और अपने होठों से उसके होठों पर प्यार की मुहर लगा दी। सोमेश की इस अचानक की पहल से धर्मिष्ठा पहले तो कुछ कसमसाई, लेकिन सोमेश के आलिंगन से मुक्त होने का कोई प्रयास उसने नहीं किया। पता नहीं, कब तक वह यूँ ही आलिंगनबद्ध रहते, यदि किसी के आने की आहट उन्होंने नहीं सुनी होती। त्वरित गति से सोमेश ने धर्मिष्ठा को स्वयं से दूर किया और रैक से एक किताब निकाल कर देखने लगा। धर्मिष्ठा ने भी उसका अनुकरण किया। उन्होंने कनखियों से देखा, एक लड़का रैक के निकट से गुज़रता हुआ दूसरी ओर निकल गया था।

 “कम्बख्त ने सारा मज़ा किरकिरा कर दिया।” -सोमेश बड़बड़ाया। धर्मिष्ठा का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था। उसने अपनी पलकें झुका ली थीं। दोनों कुछ देर तक यूँ ही बेमतलब कुछ किताबें टटोलते रहे और फिर लाइब्रेरी से बाहर निकल आये। सोमेश का मन विचलित हो रहा था। वह क्लास में न जा कर कॉलेज ग्राउंड में चला गया। एक बेंच पर बैठ कर वह अपनी साँसें नियंत्रित करने की कोशिश करने लगा। कुछ देर पहले हुई हल्की वर्षा ने वातावरण में ठंडक घोल दी थी। मंद-मंद चल रही बयार ने उसे संयत होने में मदद की। हवा से हिलोरे लेते पेड़ों के पत्ते उसके कानों को मधुर संगीत का अहसास करा रहे थे। धर्मिष्ठा को अपनी पलकों में संजोये वह देर तक वहीं बैठा रहा। 

उधर धर्मिष्ठा का भी यही हाल था। कहने को वह उन्मुक्त स्वभाव की थी, उसने सोमेश को उकसाने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी थी, किन्तु उसका भी किसी युवक के साथ इस तरह का यह पहला अनुभव था। सोमेश के आलिंगन से पृथक होने के बाद से ही वह अपने तन-मन में तरंगें उठती महसूस कर रही थी। उसकी आँखों में खुमार था और पाँव जमीन पर स्थिर नहीं पड़ रहे थे। वह क्लास में नहीं जा सकी। क्लास की तरफ जा रही मधुमिता ने उसकी यह हालत देख कर इसका सबब पूछा। “बाद में बताऊँगी”, कह कर वह अपने घर चली गई। अपनी इस मनोदशा के साथ क्लास में जाना उसके लिए सम्भव नहीं रह गया था। 

अगले दिन धर्मिष्ठा कॉलेज में आई तो मधुमिता उसका इंटरव्यू लेने को तैयार खड़ी थी। पिछले दिन उसने सोमेश और धर्मिष्ठा को लाइब्रेरी से लगभग साथ-साथ बाहर निकलते देखा था। एकबारगी तो वह कुछ सोच नहीं सकी थी, किन्तु धर्मिष्ठा का यूँ बहकी-बहकी हालत में नज़र आना और क्लास में न आ कर चुपचाप घर चले जाना उसे कुछ संकेत दे गया था। अपने अनुमान को सत्यापित करने के लिए उसने धर्मिष्ठा से पूछ ही लिया- “क्या हो गया था रे कल तुझे? क्लास में भी नहीं आई और बिना कुछ बताये चुपचाप घर चली गई। कहीं कुछ ऊँच-नीच तो नहीं हो गई?” 

“अरे नहीं पागल, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।” -धर्मिष्ठा ने हँसते हुए कहा और फिर उसने लाइब्रेरी का सारा वाक़या उसे कह सुनाया। 

“तो मैडम, तुम्हारा यह अनाड़ी तो पूरा खिलाड़ी निकला। यानी कि न तो वह डरपोक है और न ही ठण्डा। अब तो तुम्हें कोई शिकायत नहीं है न उससे? अब तो जो चाहोगी, हो जाएगा।” -एक आँख दबा कर मुस्कुराई मधुमिता। 

“चुप शैतान, कुछ भी बोल देती है। अब छोड़ यह बात, क्लास शुरू होने वाली है।” -धर्मिष्ठा ने कहा और दोनों क्लास में चल दीं। 

सोमेश और धर्मिष्ठा, दोनों अब प्रायः साथ देखे जाने लगे। अन्य विद्यार्थी दोनों को साथ देख कर कानाफूसी भी करने लगे थे, किन्तु उन दोनों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। कॉमर्स स्टूडेंट चंद्रवीर भी अब धर्मिष्ठा में रुचि लेने लगा था। किसी न किसी बहाने वह उन दोनों के निकट रहने की कोशिश करने लगा। फिर हुआ यह कि फुर्सत के समय में तीनों सामान्यतः साथ हुआ करते थे, चाहे वह कॉमन रूम में हों  या कैंटीन में। सोमेश उसका साथ कम पसंद करता था, किन्तु धर्मिष्ठा चंद्रवीर के साथ सहज भाव से पेश आती थी। सोमेश ने कुछ समय तो इस बात को तवज्जो नहीं दी, लेकिन बाद में चंद्रवीर की मौज़ूदगी उसे अखरने लगी। 

(4)

एक दिन कैंटीन में आपस की बातचीत के दौरान चंद्रवीर ने किसी बात पर सोमेश का मज़ाक बनाया। इस पर धर्मिष्ठा अपनी हँसी रोक नहीं सकी। इस अपमान से आग-बबूला हुए सोमेश ने चंद्रवीर को थप्पड़ मार दिया। धर्मिष्ठा ने दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन अब यह दोनों के लिए इज़्ज़त का मसला बन गया था। दोनों एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए एक-दूसरे से गुंथ गये। इसी दौरान चंद्रवीर एक टेबल के कोने से टकरा कर नीचे गिर गया। टेबल के कोने पर रखे चाय के दो खाली कप नीचे गिर कर टूट गये। आवाज़ सुन कर कैंटीन का मालिक और कुछ अन्य लड़के इनके आस-पास आ खड़े हुए। दो ही मिनट में स्थिति ऐसी बनी कि चंद्रवीर नीचे पड़ा हुआ था और सोमेश उसके सीने पर सवार था। दोनों अब भी एक-दूसरे पर वार किये जा रहे थे। धर्मिष्ठा ने गुस्से में चिल्ला कर सोमेश को धकेलने की कोशिश की- “यह क्या पागलपन है सोमेश?” 

मामला बनता न देख कर उसने पास खड़े लड़कों से दखल करने की प्रार्थना की। अंततः सभी ने प्रयास कर के दोनों को एक-दूसरे से अलग किया। 

मधुमिता को धर्मिष्ठा ने इस घटना की जानकारी दी, तो उसने धर्मिष्ठा को कुछ मायने में दोषी ठहराते हुए कहा- “जब चंद्रवीर ने सोमेश का मज़ाक बनाया, तो तुम्हें हँसना नहीं चाहिए था। आखिर को वह तुम्हारा बॉय फ्रैंड है। कोई भी लड़का अपनी गर्ल फ्रैंड के सामने अपनी बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं करेगा। चन्द्रवीर की भी ग़लती थी कि उसने तुम्हारी मौजूदगी में सोमेश का मज़ाक बनाया।”

“छोड़ न यार, जो होना था सो हो गया, लेकिन सोमेश को उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था।” -धर्मिष्ठा को बुरा लगा कि मधुमिता ने उसे ग़लत बताया था। वह कुछ नाराज़ हो कर उसके पास से चली गई।

इस घटना के बाद से धर्मिष्ठा ने सोमेश से दूरी बनाये रखना शुरू कर दिया। वह यदा-कदा ही उससे बात किया करती थी। सोमेश को भी अपने उस दिन के व्यवहार के लिए पश्चाताप था। ‘नाहक ही एक छोटी-सी बात पर मैंने चंद्रवीर पर हाथ उठा दिया था और बात का इतना बवाल बन गया’, वह अक्सर सोचा करता। वह समझ गया था कि उसके उस दिन के आक्रामक व्यवहार के कारण ही धर्मिष्ठा अब उससे इतनी उखड़ी-उखड़ी रहती है। 

“मुझे मालूम है, तुम मेरे उस दिन के व्यवहार से बहुत हर्ट हुई हो और इसीलिए मुझसे इन दिनों खिंची-खिंची हो।  तुम्हें लगा होगा कि सीधा-सादा दिखने वाला यह लड़का बहुत लड़ाकू है। लेकिन धर्मिष्ठा, मैं वैसा नहीं हूँ, जैसा उस दिन कर पड़ा था। नये-नये हमारे दोस्त बने चंद्रवीर ने तुम्हारे सामने मेरी बेइज़्ज़ती की और तुम भी हँस दी थी, तो मुझसे सहन नहीं हुआ और मुझसे वह ग़लती हो गई। क्या तुम मुझे क्षमा नहीं करोगी?” -एक दिन इंटरवल में क्लास से बाहर आते वक्त सोमेश ने धर्मिष्ठा से अपनी व्यथा व्यक्त की। 

“ऐसा कुछ भी नहीं है सोमेश! दरअसल परीक्षा नज़दीक होने से मैं इन दिनों पढ़ाई में ध्यान दे रही हूँ। तुम इतना अदरवाइज़ मत लो।”

“चलो मान लिया, तो क्यों न हम आज मूवी ही चलें, मेरा मन थोड़ा हल्का हो जायेगा। आज एक पीरियड ही होना है अब और वह भी कोई ख़ास महत्व का नहीं है।”

“नहीं सोमेश, मूवी का तो इन दिनों मेरा मूड ही नहीं बन रहा है, फ़िज़ूल तीन-चार घंटे बिगड़ जाएँगे।” -धर्मिष्ठा ने अरुचि दिखाते हुए  इन्कार कर दिया। 

सोमेश उसके इन्कार से बहुत दुखी हुआ। वह धर्मिष्ठा के साथ संबंधों में हद दर्जे तक डूब चुका था और अब उसकी बेरुखी उसे बहुत तकलीफ़ दे रही थी। वह आशावादी था और अपने प्यार पर उसे बहुत भरोसा था। वह अपने प्यार की वापसी के लिए असीमित समय तक प्रतीक्षा कर सकता था और इसलिए उसने भी पढ़ाई में मन लगाना शुरू कर दिया। 

चार-पाँच दिन बाद- 

आज भी इंटरवल के बाद के पीरियड्स खाली थे और सोमेश का मन मूवी देखने का हो रहा था। धर्मिष्ठा को दुबारा कह कर वह ‘ना’ नहीं सुनना चाहता था, सो कॉलेज से आइनॉक्स के लिए अकेला ही निकल पड़ा। आइनॉक्स में फिल्म ‘शेरशाह’ लगे लगभग एक सप्ताह हो चुका था। टिकट आसानी से मिल गया। मूवी शुरू हो चुकी थी। बालकनी की पहली लाइन पूरी भरी हुई थी, सो वह दूसरी लाइन में आ कर बैठ गया। कुछ देर तक वह स्क्रीन पर आँखें जमाए रहा, क्योंकि मूवी में देरी से पहुँचने के कारण उसे कहानी के तार मिलाने में समय लग रहा था। तभी अगली लाइन में उसके ठीक आगे वाली तीन खाली सीट्स छोड़ कर दो सीट्स पर बैठे एक लड़के और एक लड़की की धीमे स्वर में बातचीत की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। जानी-पहचानी आवाज़ ने उसे आकर्षित किया। उसने उनकी ओर ध्यान से देखा। अब तक आँखें हॉल की मद्धम रौशनी की अभ्यस्त हो चुकी थीं, सो पहचानने में कोई भूल नहीं हुई। उसका दिल धक् से रह गया, वह धर्मिष्ठा और चंद्रवीर थे। 

‘उफ्फ़, धर्मिष्ठा चंद्रवीर के साथ इस हॉल में बैठी पढ़ाई कर रही है’, उसका मन आक्रोश और विक्षोभ से भर गया। उसका दिमाग़ उखड़ने लगा था। वह अपनी सीट पर अधिक देर तक बैठा नहीं रह सका और इंटरवल के पहले ही हॉल से बाहर निकल आया। घर पहुँचा, तब भी वह उखड़ा-उखड़ा था। उसके पापा ऑफिस से हमेशा देर से आते थे, सो आज भी अभी तक नहीं आये थे। माँ से चाय बनाने को कह कर वह सीधा अपने कमरे में चला गया। माँ चाय ले कर कमरे में आई, तो उसे उदास देख कर पूछा- “क्या हुआ बेटा, यूँ गुमसुम क्यों बैठा है?”

“कुछ नहीं माँ, लेक्चरर ने बोर कर दिया, सिर दर्द करने लगा है।”

“चाय पी कर लेट जाना थोड़ी देर, बाम लगा दूँगी माथे पर।”

“अरे नहीं माँ, ठीक हो जाएगा, आप चिंता ना करो। शायद चाय पीने से आराम मिल जायगा।”

चाय पी कर वह आँखें मूँद कर बिस्तर पर लेट गया। माँ ने वापस आकर उसे आवाज़ दी, तो वह नींद आने का स्वांग कर चुपचाप लेटा रहा।   

सोमेश अगले दिन कॉलेज गया तो क्लास में उसने धर्मिष्ठा से बिल्कुल रुख नहीं मिलाया। इंटरवल के मध्य में जब वह कॉमन रूम में गया, तो उसने देखा, चंद्रवीर और धर्मिष्ठा घुल-मिल कर आपस में बतिया रहे थे वह मन ही मन सुलग उठा। तीर की तरह वह उनके पास गया और धर्मिष्ठा से बोला- “तो कल तुम दोनों आइनॉक्स में पढ़ाई कर रहे थे, है न?”

दोनों उसे वहाँ आया देख कर चौंके।

“लो, आ गया ‘दाल-भात में मूसल चन्द।” -चंद्रवीर ने कटाक्ष किया और दोनों ठहाके के साथ हँसने लगे। सोमेश को उनसे इस निर्लज्ज हँसी की उम्मीद कतई नहीं थी। वह चुपचाप उलटे पाँव लौट गया। 

शाम को सोमेश ने कॉलेज के बाद धर्मिष्ठा को व्हीकल पार्किंग की ओर जाते देखा, तो अंतिम प्रयास के रूप में सोमेश उसके पास जा कर बोला- “धर्मिष्ठा, जान सकता हूँ कि तुमने मेरे साथ तो मूवी में जाने के लिए मना कर दिया था, फिर चंद्रवीर के साथ कैसे चली गई थीं? तब तुम्हारा समय ख़राब नहीं हुआ?”

“सोमेश, तुम तो एकदम पीछे ही पड़ गये हो। सच्चाई जानना ही चाहते हो तो सुनो। मैंने कभी तुमसे प्यार नहीं किया। मैं शुरू से ही चंद्रवीर को चाहती थी।”

“अगर ऐसा ही था तो तुम मुझसे प्यार का नाटक क्यों कर रही थी? जैसे तुमने मुझसे प्यार जताया था, उससे भी तो ऐसा कर सकती थीं।”

“मैंने उसे संकेत दिया था।… वह भी मुझे चाहता तो था, किन्तु यह सोच कर उसने मुझे महत्त्व नहीं दिया कि जैसे और कई लड़कियाँ उस पर मरती हैं, मैं भी उसके आगे-पीछे घूमूँगी। मैंने प्लान कर के तुमसे घनिष्ठता बढ़ाई। मुझे किसी और के साथ देखना वह बर्दाश्त नहीं कर सका और आख़िर मुझसे माफ़ी मांग ली।”

“इतना बड़ा धोखा धर्मिष्ठा! कभी नहीं सोचा था कि तुम मेरे साथ ऐसा कर सकती हो।”

“तुमने कैसे मान लिया सोमेश कि जहाँ मेरे पीछे इतने अच्छे-अच्छे लड़के दीवाने हैं, मैं तुम जैसे मामूली लड़के से प्यार करूँगी?”

(5)

इस धोखे से आहत सोमेश की आँखों के आगे अन्धेरा छा गया। वह हकबकाया-सा अपनी जगह पर खड़ा रह गया। धर्मिष्ठा उसे वहीं छोड़ अपने स्कूटी की ओर चल दी और उस पर सवार हो कर चली गई। सोमेश अधिक समय तक स्वयं पर संतुलन नहीं रख सका और लहरा कर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ लड़कों ने उसे यूँ गिरते देखा, तो दौड़ कर उसके पास आये और उसे सहारा दे कर बैठाया। 

“मुझे क्या हो गया था? मैं यहाँ क्यों बैठा हूँ?” -कहता सोमेश विस्फारित नेत्रों से चारों ओर देखने लगा। 

“कुछ नहीं, कुछ भी नहीं हुआ है तुम्हें। चलो, घर चलते हैं।” -उन लड़कों में से एक, वैभव ने कहा, जो सोमेश को पहचानता था। धर्मिष्ठा से उसकी घनिष्ठता की जानकारी भी उसे थी।  उसने सोमेश को धर्मिष्ठा से बात करते देख लिया था, लेकिन सोमेश को अचानक क्या हो गया, नहीं समझ सका था। 

सोमेश से स्कूटी की चाबी मांग कर वैभव ने स्कूटी पर बैठ कर उसे पीछे की सीट पर बैठाया और अपने एक साथी को बाइक ले कर उसके साथ सोमेश के घर चलने को कहा। 

घर पर सोमेश की मम्मी अकेली थीं। वह दो लड़कों के साथ सोमेश को आया देख घबरा गईं, बोलीं- “अरे क्या हो गया मेरे सोमेश को? दोनों लड़कों ने उन्हें खामोश रहने का इशारा किया और  सोमेश को उसके कमरे तक पहुँचाया। सोमेश निढ़ाल हो कर पलंग पर लेट गया। वैभव ने बाहर आ कर सोमेश की मम्मी को, जो भी उसे जानकारी थी, संक्षेप में बताई। सोमेश की मम्मी ने उन दोनों को धन्यवाद दिया और उनके जाते ही सोमेश के पापा को फोन पर सूचना दे कर तुरंत घर आने को कहा। 

अगले दिन मधुमिता को वैभव से इस घटना का पता चला। कॉलेज में कुछ और लोगों को भी सोमेश के साथ हुए हादसे की ख़बर लग चुकी थी, लेकिन ऐसा क्यों हुआ, कोई नहीं जानता था। मधुमिता को यह तो पता था कि धर्मिष्ठा इन दिनों चंद्रवीर के भी करीब आ रही है, किन्तु उसने सोमेश के साथ रिश्ता ख़त्म कर दिया है, यह उसे मालूम नहीं था। हमेशा सब-कुछ आगे बढ़ कर बताने वाली धर्मिष्ठा कुछ दिनों से मधुमिता को इस मामले में अन्धेरे में रखे हुए थी। 

मधुमिता ने इस बार खुद उससे पूछा- “लोग बता रहे थे कि कल शाम तुम्हारी सोमेश के साथ बातचीत हुई थी और तुम्हारे जाने के बाद सोमेश जमीन पर गिर पड़ा था। पूरे होशोहवास में भी नहीं था वह। आखिर क्या बात हुई थी तुम दोनों के बीच?”

धर्मिष्ठा ने बताया- “सोमेश के गिरने की बात मुझे मालूम नहीं थी, आज कॉलेज आने पर पता चला।”

धर्मिष्ठा ने अब कुछ भी छिपाना ठीक नहीं समझा और चंद्रवीर से सम्पर्क बढ़ने से ले कर सोमेश के साथ हुई अब तक की तमाम बातें मधुमिता को कह सुनाई। 

“धर्मिष्ठा, तुम उस सीधे-सादे लड़के के साथ ऐसा कैसे कर सकती हो? तुमने उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर के उस बेचारे को बहुत आघात पहुँचाया है। छिः धर्मिष्ठा, मुझे अफ़सोस है कि मैं अब तक तुम्हारी दोस्त रही हूँ।” -मधुमिता ने क्रोधित हो कर कहा और जवाब की प्रतीक्षा किये बिना अपनी क्लास की ओर चली गई। 

तीन-चार दिन तक सोमेश कॉलेज नहीं आया तो मधुमिता कुछ परेशान हुई। वह एक संवेदनशील लड़की थी। यद्यपि सोमेश की घनिष्ठता धर्मिष्ठा से रही थी, किन्तु धर्मिष्ठा के द्वारा विश्वासघात किये जाने के कारण बनी उसकी मनःस्थिति देख कर मधुमिता के मन में उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो गई थी। उसने संक्षेप में सोमेश और धर्मिष्ठा की कहानी अपने पापा को बताई और सोमेश का हाल देखने उसके घर जाने की अपनी इच्छा व्यक्त की। उसके पापा ने सब-कुछ जाना, तो अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए बोले- “हाँ, मधु, बिल्कुल तुम्हें जाना चाहिए उसके वहॉँ। मैं भी चलना चाहूँगा तुम्हारे साथ।”

अगले दिन रविवार था। मधुमिता अपने पापा के साथ सोमेश के स्वास्थ्य की जानकारी लेने उसके घर गई। उसने अपने बारे में बताते हुए अपने पापा का परिचय सोमेश के माता-पिता से करवाया एवं सोमेश की हालत के बारे में पूछा। सोमेश के पापा गंगाधर ने बताया कि उसकी हालत ठीक नहीं है। उन्होंने बताया कि सोमेश किसी धर्मिष्ठा का नाम ले कर कुछ अस्पष्ट-सा बोलता रहता है। उन्होंने यह भी कहा कि वह कॉलेज में वाक़ये का पता करने आने वाले थे, लेकिन सोमेश को अस्पताल में दिखाने, आदि की व्यस्तता के चलते अभी तक नहीं आ सके थे। मधुमिता ने संक्षेप में उन्हें भी सारी बात बताई, जैसे अपने पिता को बता चुकी थी। वह लोग सब-कुछ जान कर सकते में आ गये। इतना सब-कुछ चल रहा था और उनको भनक भी नहीं लगी थी, इस बात का बहुत दुःख था उन्हें। 

सोमेश के बारे में उन्होंने बताया- “हम लोग उसे डॉक्टर के पास ले गये थे। डॉक्टर ने इसे मानसिक आघात का लक्षण बता कर उपचार शुरू कर दिया है।”  

मधुमिता ने सोमेश से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की, तो गंगाधर जी दोनों को सोमेश के कमरे में ले गये। 

सोमेश लेटा हुआ था, किन्तु जाग रहा था। 

“कैसे हो सोमेश?” -मधुमिता ने उसके सिर पर हाथ रख कर पूछा। 

“धर्मिष्ठा मुझसे मिलने क्यों नहीं आती?” -सोमेश ने सूनी-सूनी नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए पूछा। 

“आएगी सोमेश, ज़रूर आएगी।” -मधुमिता ने उसे सांत्वना दी। 

“धर्मिष्ठा मुझसे मिलने क्यों नहीं आती?” -सोमेश ने वही प्रश्न दोहराया। मधुमिता की ऑंखें भर आईं।

गंगाधर जी दोनों को बाहर ले जाते हुए बोले- “पहले यह कल्पना में धर्मिष्ठा से बात करता हुआ बड़बड़ाता था। अब कोई भी आता है तो 'धर्मिष्ठा मुझसे मिलने क्यों नहीं आती?', यही पूछने लगता है।”

सोमेश की माँ व गंगाधर जी को सांत्वना दे कर और कुछ सलाह-मशविरा कर के मधुमिता व उसके पापा लौट गये।  

सोमेश के पिता ने मधुमिता और उसके पापा की सलाह के अनुसार धर्मिष्ठा के विरुद्ध पुलिस में शिकायत भी लिखाई, लेकिन पुलिस ने बताया कि इस मामले में कोई आपराधिक धारा नहीं लगती है। 

गंगाधर जी व उनकी पत्नी का दिन-रात का चैन मिट गया था। उन्होंने डॉक्टर की हिदायत के अनुसार सोमेश को मानसिक चिकित्सालय में भर्ती करा दिया। मधुमिता हॉस्पिटल में भी उससे मिलने कभी-कभार आती रही। 

सघन चिकित्सा और देख-भाल के बाद लगभग चार महीने बाद सोमेश सामान्य स्थिति में आ पाया। अब तक कॉलेज पुनः खुल गये थे। गत सत्र की परीक्षा वह नहीं दे सका था, अतः उसे वापस फाइनल ईयर में प्रवेश लेना था। उसने अपने पापा को स्पष्ट कह दिया कि अब वह दूसरे कॉलेज में एडमिशन लेगा। गवर्नमेंट कॉलेज से टी.सी. ले कर उसने ‘नवजीवन आदर्श कॉलेज’ में एडमिशन के लिए फॉर्म भर दिया। इस कॉलेज में प्रवेश मिलना कठिन था, किन्तु सेकण्ड ईयर के प्राप्तांक व मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर उसे दाखिला आसानी से मिल गया। 

अब वह पिछली सारी बातें भूल कर पढ़ाई में पूरा ध्यान देने लगा। मधुमिता ने भी इसी कॉलेज में एम.ए. (इकॉनोमिक्स) में प्रवेश ले लिया था। एक-दो बार दोनों के बीच ‘हेलो-हाय’ भी हुआ। सोमेश को उसकी अस्वस्थता के दौरान मधुमिता के केयरिंग व्यवहार की जानकारी अपनी मम्मी से मिल चुकी थी। वह उसे अब अधिक इज़्ज़त देने लगा था।

तीन माह बाद -

सोमेश कॉलेज के गेट से निकल रहा था कि एक परिचित आवाज़ में ‘हेलो सोमेश’ सुन कर उसने स्कूटी रोकी। यह धर्मिष्ठा थी, जो अपनी स्कूटी खड़ी कर उसके निकट आ रही थी। 

“तुम!” -सोमेश ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में कहा। उसने कभी नहीं सोचा था कि धर्मिष्ठा से फिर कभी उसकी मुलाकात होगी। धर्मिष्ठा ने स्पष्ट महसूस किया, उसके स्वर में रूखापन व तिरस्कार था। 

(6)

“सोमेश, क्या हम दस मिनट के लिए बात कर सकते हैं?” -बहुत नम्र स्वर में धर्मिष्ठा ने कहा।

“नहीं, मेरे पास समय नहीं है।” -सोमेश का जवाब था। 

“प्लीज़ सोमेश, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। अपने पहले के रिश्ते के ख़ातिर ही सही, मुझे कुछ समय दो। प्लीइइइज़…”


“सोमेश ने एक बार गहरी नज़रों से उसकी आँखों में देखा और बोला- “बोलो।”

“यहाँ नहीं, हम दस मिनट के लिए संगम रेस्तरां चलेंगे। वहीं बात करेंगे।” 

धर्मिष्ठा के स्वर व आँखों में अनुनय के भाव देख कर सोमेश ने स्वीकृति दे दी। दोनों दो चौराहे बाद बायीं सड़क पर स्थित संगम रेस्तरां पहुंचे। 

“चाय या कॉफी?” एक खाली टेबल पर आमने-सामने की कुर्सी पर बैठने के बाद सोमेश ने पूछा।

“जो तुम चाहो।” -धर्मिष्ठा ने जवाब दिया। 

सोमेश ने कॉफी आर्डर की। कॉफी पीते हुए बात की शुरुआत कर धर्मिष्ठा ने बताया- “सोमेश, मुझे तुम्हें कुछ बताना है। आज से लगभग एक माह पहले मैंने चन्द्रवीर के साथ दोस्ती ख़त्म कर दी है। चन्द्रवीर ने मुझे यूज़ किया था सोमेश! हम जब भी साथ होते थे, वह मेरे पैसों से ऐश करता था। कभी-कभी तो पैसा नकद भी मांग लेता था। वह जानता था कि मैं पैसे वाले घर से हूँ, इसीलिए उसने मुझसे दोस्ती स्वीकारी थी। मुझे ही नहीं, उसने दो और लड़कियों को भी अपने जाल में फाँस रखा था। एक दिन मैंने उसे एक लड़की के साथ नेशनल पार्क में गलबहियाँ डाले देख लिया। मैंने उसे वहीं बहुत लताड़ा। उसने मुझे निर्लज्जता से…” 

“लेकिन यह सब तुम मुझे क्यों बता रही हो? मुझे अब जाना होगा। ” -सोमेश ने टोका। 

“मैं तुमसे क्षमा मांगना चाहती हूँ सोमेश, मुझे माफ़ कर दो।”

“मैं अब चलूँगा धर्मिष्ठा।” -सोमेश ने फिर से कहा और उठ खड़ा हुआ। 

“नहीं सोमेश, रुको। अभी मधुमिता भी यहाँ आने वाली है।”

“मधुमिता? वह क्यों आएगी?”

“हमने तुमसे यहाँ मिलने के लिए तय किया हुआ है। उसके आने से पहले प्लीज़ मत जाओ।”

     दरवाज़े से मधुमिता को आते देख कर वह पुनः बोली- “लो, वह आ ही गई।”

मधुमिता ने पास आ कर सोमेश को ‘हाय’ कहा और एक कुर्सी पर बैठ गई। सोमेश मधुमिता को जवाब दे कर वापस बैठ गया। 

“सोमेश, धर्मिष्ठा को अपनी करनी का बहुत पछतावा है। इसने मुझे दो-तीन बार फोन किया और एक बार घर पर भी आई और बहुत देर तक रोती रही। कह रही थी कि तुम्हारे निश्छल प्यार को ठुकराने की ही सज़ा उसे मिली है। उसने तुमसे दुबारा दोस्ती करवाने के लिए ही मुझे यहाँ बुलाया है।”

“लेकिन मधुमिता, इन सब बातों से अब क्या फायदा? मेरे माफ़ करने या न करने से क्या होने वाला है?”

“क्या हम पहले की तरह दोस्त नहीं हो सकते सोमेश? मैं मधुमिता के सामने स्वीकार करती हूँ कि मैं तुमसे सच में प्यार करती हूँ। मेरी भूल के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।” 

“मैं भी धर्मिष्ठा से बहुत गुस्सा थी, किन्तु अब मुझे भी धर्मिष्ठा की बातों पर यकीन हो चला है सोमेश!” -मधुमिता ने भी कहा। 

चौंक कर सोमेश ने पहले धर्मिष्ठा और फिर मधुमिता की तरफ देखा। उसके चेहरे पर स्मित की एक रेखा चमकी। 

“कैसे भरोसा करूँ धर्मिष्ठा कि तुम दुबारा ऐसा नहीं करोगी?” -सोमेश ने धर्मिष्ठा से प्रश्न किया। 

“मेरा मन पिछले एक माह से बहुत तकलीफ़ पा रहा है। चन्द्रवीर की बेवफ़ाई से अधिक पीड़ा मुझे तुम्हारे प्रति किये गये मेरे व्यवहार के लिए है। जो तुम कह रहे हो, ऐसा कभी नहीं होगा सोमेश, मेरा विश्वास करो। अब से हमारे प्यार की नई शुरुआत होगी।” -धर्मिष्ठा की आँखें नम हो आई थीं। 

पहली बार सोमेश ने धर्मिष्ठा की ओर मुस्कुरा कर देखा। धर्मिष्ठा ने उससे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। सोमेश ने हाथ मिलते हुए धर्मिष्ठा के हाथ को हौले से दबाया। धर्मिष्ठा तो जैसे निहाल हो गई, बोली- “थैंक्यू स्वीटी!”

मधुमिता के चहरे पर प्रसन्नता उभर आई, बोली- “तो दोस्ती की इस नई शुरुआत की ख़ुशी में मैं कल रात आठ बजे इसी रेस्तरां में तुम दोनों को डिनर के लिए इन्वाइट करती हूँ। मना मत करना सोमेश! और हाँ, धर्मिष्ठा के साथ ही आज से तुम भी मेरे अजीज दोस्त बन गए हो।”

“तुम क्यों, डिनर मेरी तरफ से होगा।” -धर्मिष्ठा खुश हो कर चहकी।

“प्रपोज़ल किसका था?” -मधुमिता ने आँखें दिखाईं। 

धर्मिष्ठा ने मधुमिता को चूम लिया- “ओके मेरी प्यारी मधु, तुम जीती, मैं हारी।” 

सोमेश मुस्कराया। शायद यह उसकी मौन स्वीकृति थी। 

अगले दिन तीनों संगम रेस्तरां के डाइनिंग हॉल में मौज़ूद थे। 

डिनर के सारे आइटम सर्व हो चुके थे। 

“सबसे अधिक ख़ुशी की बात यह है कि सभी से निस्वार्थ दोस्ती रखने वाली मधुमिता मेरी भी अच्छी दोस्त बन गई है। इस ख़ुशी के इज़हार के लिए अगला डिनर मेरी तरफ से होगा और उसका स्थान, समय व मेन्यू मधुमिता ही तय करेगी। मेरी दोस्त बनने के लिए दिली शुक्रिया मधु!” -डिनर के दौरान सोमेश ने अपना आभार व्यक्त किया। 

डिनर हो चुका था और अब कॉफी भी आर्डर कर दी गई थी। 

कॉफी के बाद धर्मिष्ठा ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में सोमेश से कहा- “सोमेश डिअर, क्यों न कल हम लोग मूवी देखने चलें। मधु को भी साथ ले लेंगे।”

“नहीं यार, मैं तुम लोगों को जॉईन नहीं करूँगी। मूवी तुम लोग चले जाओ।”

“ओके डिअर, जैसा तुम चाहो।…बताओ सोमेश, कल कौन-से शो में चलना चाहोगे?” -स्निग्ध स्वर में पूछा धर्मिष्ठा ने। 

“तुमने कैसे मान लिया कि मैंने तुम्हारी दोस्ती कबूल कर ली है? क्या तुम मेरा खोया साल मुझे लौटा सकती हो? क्या मानसिक चिकित्सालय में बीते मेरे समय की कड़वी याद मेरे  दिलोदिमाग़ से मिटा सकती हो?… तुम्हारे तो कई दीवाने हैं धर्मिष्ठा! मुझ जैसा मामूली लड़का तुम्हारे काबिल कैसे हो सकता है?“ -सोमेश का जवाब था। 

धर्मिष्ठा अवाक् देखती रह गई, उसका चेहरा मुरझा गया। मधुमिता भी एक बारगी हतप्रभ रह गई, लेकिन दूसरे ही क्षण उसके मन में सोमेश के प्रति सम्मान का भाव उभर आया। 

शांत मन व दृढ क़दमों से सोमेश रेस्तरां के दरवाज़े की ओर चल दिया। 


 -: समाप्त :-




टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. मेरी रचना को 'पाँच लिंकों का आनन्द' के सुन्दर पटल पर स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार आ. यशोदा जी! मैं अवश्य ही उपस्थित होऊँगा महोदया!

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. धर्मिष्ठा जैसे लोग सच्चा प्यार नही कर सकते। सुंदर कहानि।

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  4. आदरणीय हृदयेश जी !
    बहुत समसामयिक नव-युवाओं को चेताती / सिखाती रचना , सुन्दर कथ्य एवं पढ़ने को विवश करती कथा के लिए सादर अभिनन्दन !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उन्मुक्त सराहना के लिए अंतस्तल से आभारी हूँ प्रिय तरुण जी! अच्छा लगता है, जब कोई पाठक मेरी रचना में मनोरंजन के अलावा उसमें छिपा हुआ कुछ और ढूँढ कर रचना को सार्थकता प्रदान करता है।

      हटाएं

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