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विकल्प (लघुकथा)

                                                                    अस्पताल के वॉर्ड में एक बैड पर लेटे वृद्ध राधे मोहन जी अपने पुत्र का इन्तज़ार कर रहे थे।  बारह पेशेंट्स के इस वॉर्ड में अभी केवल चार पेशेंट्स थे, जिनमें से एक की आज छुट्टी होने वाली थी। उन्हें संतोष था कि वॉर्ड में शांत वातावरण था और स्टाफ भी चाक-चौबंद किस्म का था। नर्स दो बार आ कर गई थी और कह रही थी कि अगर आधे घंटे में इंजेक्शन नहीं आया तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। 'पता नहीं कब आएगा मानव? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था', वह चिन्तित हो रहे थे। उसी समय नर्स वापस आई और राधे मोहन जी को एक इंजेक्शन लगा कर बोली- "इंजेक्शन आने में देर रही है तो डॉक्टर ने अभी यह लाइफ सेवर इंजेक्शन लगाने के लिए बोला है। अब वह आप वाला इंजेक्शन एक घंटे के बाद लगेगा।      पाँच-सात मिनट में मानव आ गया। उसने डॉक्टर के पास जा कर बताया कि इंजेक्शन आ गया है। डॉक्टर ने कहा- "ज़रूरी होने से मैंने एक और इंजेक्शन फ़िलहाल लगवा दिया है। अब यह इंजेक्शन एक घंटे बाद ही लग सकेगा। आप इसे अभी अपने पास ही रखिये।"    मानव ने इंजेक्शन अपने पापा

यह कैसी बेबसी?

        कृपया इस पोस्ट को पूरी पढ़ें, आपके पास समय नहीं हो तो भी पढ़ें। ईश्वर करे आप या आपके परिवार का सामना कोरोना से नहीं हो, क्योंकि यदि ऐसा हो गया तो आप की रक्षा करने वाला ईश्वर के अलावा कोई भी नहीं है। बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार के किसी भी नेता के पास है कोई जवाब इस बात का कि जब इस पोस्ट के एक प्रभावशाली पत्रकार जैसे विशिष्ट नागरिक को कोरोना की जांच व इलाज के लिए यूँ ठोकरें खा कर भी निराशा हाथ लगी, तो एक सामान्य नागरिक का क्या हश्र होता होगा? सरकार ने ईश्वर व आप पर भरोसा कर के लॉक डाउन को कुछ पाबंदियों के साथ हटाया है क्योंकि शायद लॉक डाउन जारी रखने में सरकार कई कारणों से सक्षम नहीं है। लॉक डाउन हटने के बाद की घर से बाहर वाली दुनिया के हालात डराने वाले हैं। हम सब देख रहे हैं कि आवश्यक पाबन्दियों की किस तरह से धज्जियाँ उड़ रही हैं। इसी कारण इस एक सप्ताह में ही कोरोना पॉज़िटिव मामलों में ज़बरदस्त इजाफ़ा हुआ है। अब आपको यदि सुरक्षित रहना है तो आप और केवल आप ही स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं। कई मामलों में झूठ कहने के लिए बदनाम अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी यह तो सही ही कहा है कि भार

-:दावत:-

                                                                             "यार, थोड़ा जल्दी तैयार हो जाओ न, भूख के मारे प्राण निकले जा रहे हैं।" -कुछ झुंझलाते हुए मैंने कहा।    "दो दिन का उपवास करने के लिए मैंने कहा था आपसे? तैयार होने में लेडीज़ को तो टाइम लगता ही है। आधे घंटे से कह रही हूँ कि पांच मिनट में तैयार हो रही हूँ और तुम हो कि जल्दी मचाये जा रहे हो। कम्बख़्त ढंग की साड़ी तो दिखे।" -वार्डरॉब में लटकी साड़ियों पर से नज़र हटा कर श्रीमती जी ने मेरी ओर आँखें तरेरीं।   अलमारी में रखी पचासों साड़ियों में से उनको कोई ढंग की साड़ी नज़र नहीं आ रही थी, इसका तो मेरे पास भी क्या इलाज था? गले में लटकी टाई को थोड़ा लूज़ करते हुए मैं कुर्सी पर बैठ गया। अभी तक तो साड़ी का चुनाव ही नहीं कर सकी हैं श्रीमती जी! साड़ी पसंद आने के बाद तैयार होने में और फिर तैयार हो कर शीशे में हर एंगल से दस-बीस बार निहारने में कम से कम एक घंटा तो और लगेगा ही उनको, यह मैं जानता था।   आधे-पौन घंटे बाद जब मैंने देखा कि अभी भी उनका मेक-अप तो बाकी ही है तो मैंने धीरे-से उन्हें मज़ाक में चेताया- "ऐस

कोरोना पर विजय

   कोरोना से कैसे जीत सकेंगे ?.... शासन को मेरा सुझाव - मुख्य बिन्दु :- 1) चिकित्सकों व अन्य स्वास्थ्य-कर्मियों तथा पुलिस-कर्मियों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सभी उपकरण व सुविधाएँ दी जाएँ क्योंकि एक चिकित्सक सौ व्यक्तियों को व एक पुलिस-कर्मी दस व्यक्तियों को संक्रमण से बचा सकता है। यह दोनों वर्ग जी-जान से अपने कार्य-क्षेत्र में जूझ रहे हैं। राजनीति व धर्म दोनों को एक ओर रखा जा कर दोनों वर्गों के कार्य में व्यवधान डालने का प्रयास करने वालों को तुरंत कठोर दण्ड दिया जाये।  2) दुग्ध-उत्पादकों तथा अन्य खाद्य व जीवनोपयोगी आवश्यक पदार्थों के उत्पादकों के उत्पादन उनसे क्रय किये जा कर जनता को उपलब्ध कराने की समुचित व्यवस्था की जावे। इस कार्य की सही पालना हो, इस बात का कठोरता से सुपरविज़न किया जावे।  3) लॉक डाउन की अवधि आवश्यक रूप से और आगे बढ़ाई जावे और इसकी सख्ती से पालना कराई जावे।  यह असम्भव नहीं है, यदि सरकार अपनी पूरी इच्छा-शक्ति से इस पर अमल करेगी तो कोरोना (कोविड-19) समूल रूप से नष्ट हो सकेगा।

कल क्या होगा...???

                                                                मानव-समाज के विनाश के लिए कोविड-19 का विष-पाश जिस तरह से सम्पूर्ण विश्व को जकड़ रहा है उससे उत्पन्न होने वाली भयावह स्थिति की कल्पना मैं कर पा रहा हूँ। विशेषतः मैं अपने देश भारत के परिप्रेक्ष्य में अधिक चिंतित हूँ, क्योंकि यहाँ कई लोग इस महामारी की गम्भीरता का सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं।    ईश्वर करे, मेरा यह चिन्तन निरर्थक प्रमाणित हो, किन्तु कहीं तो अज्ञानवश व कहीं धर्मान्धता के कारण जो हठधर्मिता दृष्टिगत हो रही है वह एक अनियंत्रित दीर्घकालीन विनाश के प्रारम्भ का संकेत दे रही है।    कोरोना-संक्रमण के परीक्षण के अपने नैतिक कर्तव्य की पालना के लिए कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों और उनकी सुरक्षा के लिए सहयोग कर रहे पुलिस कर्मियों पर बरगलाये गए एक धर्मविशेष के कुछ लोगों द्वारा जिस तरह से पथराव कर आक्रमण किया गया, वह घटना कुछ ऐसा ही संकेत देती है। दिल्ली में निजामुद्दीन में  एकत्र हुए तबलीग़ी   जमात के लोग, जिनमें से 1०० से अधिक लोग कोरोना-संक्रमित चिन्हित भी हुए, देश के अन्य राज्यों में अनियंत्रित रूप से प्रवेश कर गए हैं। क

'नया वायरस'

        धरती पर मानव-संख्या-संतुलन के मद्देनज़र चीन के महान वैज्ञानिकों  😜 ने एक और वायरस का आविष्कार कर लिया है - 'हन्ता वायरस'      चीन में बस में बैठ कर जा रहे एक व्यक्ति की हन्ता वायरस के संक्रमण से मौत हो गई। कहा जा रहा है कि यह वायरस कोरोना से अलग प्रकृति का है अतः बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है। यह वायरस कोरोना की तरह मनुष्य से मनुष्य तक नहीं पहुँचता।   आप अपने घर में चूहों का प्रवेश रोक दें और यदि बरामदे में पेड़-पौधे लगे हुए हैं तो उन पर घूम रही गिलहरी से भी सावधान रहें। इन दोनों का मल-मूत्र 'हन्ता वायरस' का जनक है। यदि सावधानी के बावज़ूद आपके हाथ इनके मल-मूत्र के संपर्क में आ जाएँ तो अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लें, अन्यथा आपके संक्रमित हाथ से कोरोना की तरह ही यह वायरस आपके मुँह, नाक या आँख के जरिये शरीर में प्रवेश कर जायेगा। इससे सम्भावित मृत्यु-दर 38% है। अतः सावधान रहें, सुरक्षित रहें। 🙏                                                                 ************

मुंहासों का प्रभावी उपचार

    आज हम शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग की चर्चा करेंगे। निर्विवाद रूप से शरीर का प्रमुख और सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है चेहरा। चेहरे को मनुष्य सबसे अधिक प्यार करता है क्योंकि उसी से उस की पहचान होती है। वैसे तो चेहरे की देख-रेख के लिए वय-विशेष आधार नहीं हुआ करती, लेकिन युवावस्था में इसका ध्यान रखा जाना अधिक आवश्यक हो जाता है। युवावस्था मनुष्य के जीवन का वह स्वर्णिम काल होता है जब उसके मन-पंछी के उड़ान