सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विकल्प (लघुकथा)

                                                               

    अस्पताल के वॉर्ड में एक बैड पर लेटे वृद्ध राधे मोहन जी अपने पुत्र का इन्तज़ार कर रहे थे। बारह पेशेंट्स के इस वॉर्ड में अभी केवल चार पेशेंट्स थे, जिनमें से एक की आज छुट्टी होने वाली थी। उन्हें संतोष था कि वॉर्ड में शांत वातावरण था और स्टाफ भी चाक-चौबंद किस्म का था। नर्स दो बार आ कर गई थी और कह रही थी कि अगर आधे घंटे में इंजेक्शन नहीं आया तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। 'पता नहीं कब आएगा मानव? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था', वह चिन्तित हो रहे थे। उसी समय नर्स वापस आई और राधे मोहन जी को एक इंजेक्शन लगा कर बोली- "इंजेक्शन आने में देर रही है तो डॉक्टर ने अभी यह लाइफ सेवर इंजेक्शन लगाने के लिए बोला है। अब वह आप वाला इंजेक्शन एक घंटे के बाद लगेगा। 
    पाँच-सात मिनट में मानव आ गया। उसने डॉक्टर के पास जा कर बताया कि इंजेक्शन आ गया है। डॉक्टर ने कहा- "ज़रूरी होने से मैंने एक और इंजेक्शन फ़िलहाल लगवा दिया है। अब यह इंजेक्शन एक घंटे बाद ही लग सकेगा। आप इसे अभी अपने पास ही रखिये।" 
  मानव ने इंजेक्शन अपने पापा के बैड के पास रखी टेबल की निचली रैक पर रख दिया और बैंच पर बैठ गया। उसकी नज़र पड़ोस वाले पेशेंट पर पड़ी। उसने अपने पापा से पूछा- "पापा, पड़ोस वाले बच्चे की तबियत अब कैसी है?"
"बेटा, तुझे तो पता ही है कि इस बच्चे को भी वही बीमारी है जो मुझे है, तो हालत तो उसकी भी वही है। मेरी तरह ही वह सामान्य तो दिखता है, पर कब क्या हो जाय कुछ पता नहीं। उसकी माँ वही इंजेक्शन लेने गई है जो तू अभी लेकर आया है। वह भी ठीक तेरे बाद ही गई थी इंजेक्शन लेने, पर अभी तक नहीं आई है।"
  मानव के चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ उभरीं- "पापा, वह इंजेक्शन तो अभी यहाँ कहीं नहीं मिलेगा। केवल एक स्टोर पर आखिरी एक इंजेक्शन बचा था,जो केमिस्ट ने मुझे दे दिया। वैसे वह केमिस्ट कह रहा था कि आधे घंटे में आने वाले नये माल के साथ वह इंजेक्शन भी आ जायेगा।"
 "बेटा, यह तो समस्या वाली बात हो गई। अपनी विधवा माँ का इकलौता बेटा है यह! बहुत सेवा कर रही है वह बेचारी। अगर आधे घंटे में इंजेक्शन नहीं आया तो इसकी जान को खतरा हो सकता है। अभी तो यह बच्चा मात्र चौदह-पन्द्रह साल का है। बहुत प्यारा बच्चा है।" -राधे मोहन जी ने बच्चे की तरफ देख कर करुण स्वर में कहा। 
  लगभग पाँच मिनट बाद नर्स ने आकर उस बच्चे से इंजेक्शन के बारे में पूछा। बच्चे ने बताया कि उसकी माँ अभी तक नहीं आई है। नर्स निराशा से सिर हिला कर लौट गई।
  राधे मोहन जी ने मानव से कहा- "बेटा मानव, तुम जा कर देखो न, इसकी माँ कहाँ रह गई है! अब ज़्यादा देर होना ठीक नहीं है। अगर इंजेक्शन आ गया हो तो तुम ही ले आना, बाद में हिसाब करते रहेंगे इनसे।"
  मानव तुरंत चला गया। 
  दस मिनट बाद नर्स डॉक्टर के साथ उस बच्चे के बैड पर वापस आई। डॉक्टर ने देखा, बच्चा बेहोश पड़ा था। उसने नर्स से कहा- "सिस्टर, क्या तुमने लाइफ सेवर इंजेक्शन इस बच्चे को नहीं लगाया, जब मैंने कहा था?"
 "लगाया था डॉक्टर! राधे मोहन जी को लगाने के आधा घंटे पहले ही लगा दिया था।"
 डॉक्टर ने राधे मोहन जी से कुछ पूछने लिए उनके बैड की ओर देखा, वह शायद सो  रहे थे। 
  "उफ्फ़, बच्चा बेहोश हो गया है और इंजेक्शन अभी तक नहीं आया। सिस्टर, देखो तो इसकी टेबल पर वह कौन-सा इंजेक्शन पड़ा है?" -टेबल पर नज़र पड़ने पर डॉक्टर ने नर्स को आदेश दिया।
   नर्स ने टेबल से इंजेक्शन उठा कर देखा और डॉक्टर को देते हुए बोली- "डॉक्टर, यह तो वही इंजेक्शन है।  इंजेक्शन यहाँ रख कर हमें बताया भी नहीं और पता नहीं कहाँ चली गई इसकी माँ, गज़ब की लापरवाह औरत है!"
  डॉक्टर ने तुरंत बच्चे के कूल्हे पर इंजेक्शन लगाया और ऊपर की ओर देखते हुए बोला- "थैंक गॉड, अब यह बच्चा बच जायेगा।" 
   उन दोनों के वहाँ से जाने के कुछ ही देर बाद उस बच्चे की माँ डॉक्टर के कक्ष में आई और रुँआसे स्वर में बोली- "डॉक्टर साहब...?" 
   डॉक्टर और नर्स ने एक नज़र उस पर डाली और फिर एक दूसरे की ओर विस्मय भरी निगाहों से देखा। 
  "अब क्या हो ग...?" डॉक्टर वाक्य पूरा करता, इसके पहले ही मानव इनके पास आया और बोला- "डॉक्टर, अगर टाइम हो गया हो तो पापा को इंजेक्शन लगा दीजिए।" 
 डॉक्टर ने घडी देखी और जवाब दिया- "अभी पांच मिनट बकाया हैं, पर चलो लगा देते हैं।" 
  वह और नर्स राधे मोहन जी के बेड की ओर चल पड़े। मानव और पड़ोसी बच्चे की माँ भी पीछे-पीछे  चल दिये। बच्चे की माँ परेशान-सी सोच रही थी कि पैसे वालों की ही पूछ होती है हर जगह, डॉक्टर ने उसे पूरा जवाब तक नहीं दिया है। 
  राधे मोहन जी की टेबल के पास जाकर मानव ने देखा, इंजेक्शन रैक पर नहीं था। उसने चौंक कर डॉक्टर की तरफ देखा और बोला- "डॉक्टर, इंजेक्शन यहाँ नहीं है। यहीं तो रखा था मैंने। पता नहीं, यहाँ से कहाँ गया?" 
  डॉक्टर ने हैरानी से नर्स की तरफ देखा और फिर बीमार बच्चे की माँ को घूरते हुए पूछा- "हमने तुम्हारी टेबल से उठा कर इंजेक्शन तुम्हारे बच्चे को लगाया है। तुम तो कह रही थी कि इंजेक्शन नहीं मिला, फिर वह तुम्हारी टेबल पर कहाँ से आ गया?"
  "डॉक्टर साहब, मुझे नहीं पता। मैं तो अस्पताल में आते ही  आपके पास आई थी।" -उसने जवाब दिया। 
  "बेटा, तुम इसके लिए जो इंजेक्शन लेकर आये हो वह मुझे लगवा दो। तुम जो इंजेक्शन रैक में रख कर गए थे, वह मैंने इनकी टेबल पर रख दिया था।"- राधे मोहन जी ने मानव से कहा। 
  "लेकिन क्यों पापा? आपने ऐसा  किया? अब हम क्या करेंगे, केमिस्ट के पास जो नया माल आया है, उसमें वह इंजेक्शन नहीं आया।" -उद्विग्न हो कर मानव बोला, फिर डॉक्टर की ओर मुखातिब हुआ- "डॉक्टर, अब क्या होगा?"
  "सॉरी मि. मानव! इंजेक्शन नहीं लगा तो हमारे लिए इनकी जान बचाना सम्भव नहीं होगा।" -डॉक्टर ने निराशा से अपना सिर हिलाया।
  "मुझे इसका अनुमान था डॉक्टर साहब! दूसरा इंजेक्शन नहीं मिलने की सूरत में हम दोनों में से कोई एक ही बच सकता था और इस बच्चे का बचना ज़रूरी था, इसीलिए मैंने ऐसा किया। मेरा क्या है, मैं तो अपनी ज़िन्दगी जी चुका हूँ।" -राधे मोहन जी के चेहरे पर संतोष भरी मुस्कराहट थी। 
  डॉक्टर और नर्स हतप्रभ थे। वह अपने जीवन में ऐसा नज़ारा पहली बार देख रहे थे। पड़ोसी बच्चे की माँ आँसू भरी कृतज्ञ दृष्टि राधे मोहन जी पर जमाये हुए थी। वह इस पुण्यात्मा के प्रति मन ही मन नतमस्तक थी। 
  ... और मानव अपने पिता के पाँवों से लिपटा बिलख रहा था। 

                                                                        *********








टिप्पणियाँ

  1. मानवता की महिमा बढाती बहुत सार्थक लघुकथा आदरणीय सर |राधे मोहन जी जो निर्णय लिया वह इंसानियत का तकाजा था पर हर कोई इस परीक्षा में सफल नहीं होता | दिल छू लेने वाली रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|

    जवाब देंहटाएं
  2. संवेदनशील हृदय अवश्य ही मेरी इस कहानी से आंदोलित होगा रेणु जी। आप सच में करुणा का मूर्त रूप हैं। आपका बहुत-बहुत आभार मेरी रचना को पढ़ कर इतनी सुन्दर टिप्पणी देने के लिए!

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहद खूबसूरत हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय। मानवता की अप्रतिम मिशाल पेश किया है राधेमोहन जी के समयानुकूल निर्णय ने। हार्दिक शुभकामनाएं आपको 🙏🏼

    जवाब देंहटाएं
  4. सराहनात्मक इस सहृदय टिप्पणी से अभिभूत हूँ डॉ. विमला! अंतरतम से आपका आभार महोदया!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तन्हाई (ग़ज़ल)

मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- मौसम बेरहम देखे, दरख्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार  आएगी  कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा  मेरा  जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

बेटी (कहानी)

  “अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी।  “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया।  “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********