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फ़ैसला (लघुकथा)

                                                           


    जज साहब अभी तक कोर्ट में नहीं आये थे। आज आखिरी तीन गवाहियाँ होनी थीं। आज से पहले वाली तारीख में दो गवाहियां हो चुकी थीं। 

   कोर्ट में बैठे वकील विजेन्द्र सिंह विशाखा को धीमी आवाज़ में समझा रहे थे- "विशाखा जी, बहुत सावधानी से बयान देने होंगे आपको। मैंने सुलेखा के पड़ोसी चैनसुख जी को कुछ पैसा दे कर उनके द्वारा पुलिस में दिया बयान बदलने के लिए राजी कर लिया है। अब केवल आपके बयान ही होंगे जो अभिजीत को निर्दोष साबित कर सकेंगे। सरकारी वकील बहुत होशियार है। वह हर पैंतरा इस्तेमाल करेगा, बस आपको मज़बूत रहना होगा।"

   "हाँ जी, मैं सोच-समझ कर जवाब दूँगी।" -विशाखा ने जवाब दिया। 

  विशाखा के पास में ही उनके पति कमलेश व बेटी सोनाक्षी बैठे थे। कमलेश अपनी भावुक व पढ़ी-लिखी पत्नी के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त थे। अभिजीत की बहिन सोनाक्षी गुमसुम बैठी थी व कटघरे में खड़े अपने इकलौते भाई की रिहाई के लिए ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना कर रही थी। 

  जज साहब आये और कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई। 

  पहले गवाह चैनसुख सरकारी वकील की जिरह के दौरान पुलिस को दिये अपने पूर्व बयान से मुकर गये व बोले- "मैं कुछ आवाज़ें सुन कर अपने फ्लैट से बाहर निकला था। रात हो गई थी और बाहर रोशनी बहुत कम थी। मैंने अपना चश्मा भी नहीं पहन रखा था सो सुलेखा के फ्लैट से निकल रहे व्यक्ति को मैं ठीक से नहीं देख पाया था। मैं भाग कर सुलेखा के फ्लैट के दरवाज़े पर पहुँचा तो देखा, वह निश्चल ज़मीन पर औंधे मुँह पड़ी हुई थी। मैंने तीन-चार बार उसके पापा को फोन लगाने की कोशिश की, किन्तु उनका फोन स्विच-ऑफ था। मैंने थानेदार जी को दिये अपने बयान में कहा था कि वह अभिजीत हो सकता है, पर निश्चित रूप से नहीं कह सकता। पुलिस ने बिना मुझे पढ़ाये, बयान पर मेरे हस्ताक्षर करवा लिये थे। मैंने यह कभी नहीं कहा कि वह अभिजीत ही था।"

   चैनसुख के बाद सुलेखा की माँ दमयन्ती से विजेन्द्र सिंह ने जिरह के दौरान पूछा- "आप और आपके पति दोनों  ही जब घर से बाहर गये हुए थे तो आप कैसे कह  सकती हैं कि गुनहगार अभिजीत ही है, जबकि अभिजीत के अनुसार वह उस दिन सुलेखा को ट्यूशन पढ़ाने गया ही नहीं था।  "

  "मेरी सुलेखा से फोन पर बात हुई थी तो उसने बताया था कि अभिजीत पढ़ाने के लिए आया है। हम जब बाहर से लौटे तो घर में हमारी बेटी की लाश पड़ी थी। पुलिस ने पोस्टमार्टम करवाया तो पता चला कि बलात्कार के बाद उसकी हत्या की गई है।"

  "लेकिन इससे यह तो जाहिर नहीं होता कि यह सब अभिजीत ने किया है। अभिजीत के घर वालों ने पुलिस को बताया था कि तबियत खराब होने से वह उस दिन घर से बाहर ही नहीं निकला था।"

  "झूठ कहा है इन्होंने! हमारी अनुपस्थिति में अभिजीत के अलावा और कोई आ ही नहीं सकता था। किसी अपरिचित के लिए मेरी बेटी दरवाज़ा कभी नहीं खोलती थी। यह लोग क्यों नहीं समझते कि बेटी को खोने का दर्द क्या होता है? विशाखा जी भी तो माँ हैं। इनके भी तो एक बेटी है। झूठ बोल कर यह अपने अपराधी बेटे को बचा लेंगी तो क्या वह चैन की नींद सो सकेंगी? पिछले छः महीनों की मेरी पीड़ा और हमारी जीवन भर की बेचैनी क्या इनसे हिसाब नहीं मांगेगी? मैं कई रातों सो नहीं सकी हूँ जज साहब!"... कुछ क्षणों के बाद विशाखा की ओर देख कर पुनः बोलीं- 'मेरी मासूम बच्ची की सिसकती आँखों से बहे आँसू मुझे सोने नहीं देते, जिनसे भीगा हुआ उसका शव मैंने देखा था।" -कहते-कहते दमयन्ती सुबक-सुबक कर रो पड़ीं।… दमयन्ती को अपनी ओर देखते पाकर विचलित विशाखा की भी आँखें भर आयीं। 

  अंतिम गवाही विशाखा की थी। सरकारी वकील ने विशाखा से जिरह करने की शुरुआत की- "विशाखा जी, देखिये, आपने पुलिस को दिये अपने बयान में अभिजीत का अस्वस्थ होना और वारदात के दिन उसके घर से बाहर नहीं निकलने का तर्क दिया था। अपने कथन के समर्थन में आपने डॉक्टर के उपचार का प्रमाण-पत्र भी दिया है। लेकिन सोचिये, आप भी एक बच्ची की माँ हैं। देखिये इस बिलखती माँ की तरफ, जिसने अपनी बच्ची को खोया है। यह सही है कि कटघरे में खड़ा शख़्स आपका बेटा है, लेकिन उस माँ की तरफ भी देखिये जो असमय ही चली गयी अपनी इकलौती बेटी के बलात्कार व मौत का इन्साफ़ मांग रही है। झूठ का सहारा लेकर न केवल आप इंसाफ़ में बाधा बन रही हैं, बल्कि इंसानियत के ख़िलाफ़ भी...।"

  "बस कीजिये वकील साहब, मैं अब कुछ नहीं सुन सकती। जज साहब!... हाँ, मेरा बेटा गुनहगार है। मैं उसे बचाने के लिए इस न्याय के मन्दिर में झूठ नहीं बोल सकती। वह उस दिन सुलेखा को पढ़ाने उसके घर गया था। जब वहाँ से लौटा तो वह बदहवास-सा था और घर आकर रो रहा था। जोर देकर मेरे पूछने पर उसने मुझे सच-सच बता दिया था। उसने पहले कभी कोई अपराध नहीं किया था, पर पहली बार में ही उससे इतना बड़ा अपराध... "

   वकील विजेन्द्र सिंह ने बीच में ही उन्हें टोका- "विशाखा जी, यह आप क्या अनाप-शनाप बोले जा रही हैं।" ,फिर जज साहब की ओर मुखातिब होकर बोले- मी लॉर्ड, मेरे मुवक्किल की गवाह अपने आपे में नहीं हैं। मैं अदालत से दरख़्वास्त करता हूँ कि गवाही के लिए अगली तारीख मुक़र्रर करे।"

 सरकारी वकील- "ऑब्जेक्शन मी लॉर्ड! तारीख मिलने पर गवाह को गुमराह किया जा सकता है।"

  "ऑब्जेक्शन सस्टेण्ड! यह अदालत गवाह को अपना बयान जारी रखने का हुक़्म देती है। हाँ, विशाखा जी, आप बोलती रहिये जो आप कहना चाहती हैं।"

   डबडबाती आँखों से जज साहब की ओर देखते हुए विशाखा ने अपनी बात आगे बढ़ाई- "जज साहब, मेरे बेटे ने उस बच्ची के साथ जबरदस्ती की थी, लेकिन उसका कहना है कि वह उसकी जान लेना नहीं चाहता था। उसने मुझे बताया कि सुलेखा द्वारा उसी समय पुलिस को फोन करने की कोशिश करते देख वह उत्तेजित हो गया और गुस्से में उसका गला दबाया और बिना इसका अंजाम देखे  चला आया। ... लेकिन जज साहब, जो भी हो, उसने गुनाह किया है और उसे इसकी सज़ा..." -अपनी बात पूरी करने से पहले ही विशाखा कटघरे पर झुक आई।

  विस्मय और क्षोभ भरी निगाहों से विशाखा की ओर देख रहे कमलेश व उनकी बेटी ने अर्दली की मदद से विशाखा को सम्हाला। वकील विजेंद्र सिंह भी उनके करीब आ गये। 

  जज साहब ने अभिजीत से पूछा- "अब भी तुम्हें अपने बचाव में कुछ कहना है?" 

  अभिजीत, जो अब तक विस्फारित नज़रों से अपनी माँ की ओर देखते हुए उनके द्वारा कही जा रही हर बात सुन रहा था, फीकी हँसी के साथ बोला- "नहीं जज साहब, 'मदर इण्डिया' ने जो कुछ कह दिया है, उसके बाद मुझे कोई सफाई नहीं देनी है। बस इतना कहना चाहता हूँ कि मेरा इरादा सुलेखा की हत्या करने का कतई नहीं था।"

   जज साहब ने अपना फैसला सुनाना शुरू किया- "गवाह चैनसुख के पक्षद्रोही बयान के बाद अभियुक्त को सन्देह का लाभ मिल सकता था, लेकिन गवाह विशाखा देवी के बयान ने मुकद्दमे का रुख बदल दिया है। अवसर दिये जाने के बाद भी अभियुक्त अपने बचाव में कुछ विशेष नहीं कह पाया है। ऐसी स्थिति में अदालत…”

  इससे पहले कि जज साहब अपना फैसला पूरा सुना पाते, अदालत कक्ष में एक चीख उभरी। सबने देखा विशाखा जी से लिपटी उनकी बेटी सोनाक्षी बिलख रही थी। हतप्रभ दमयन्ती भी सजल नेत्रों के साथ उनके पास चली आई थीं। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि विशाखा सच बोल देंगी और वह विशाखा के लिए इस सीमा तक घातक हो जाएगा।

  वकील विजेन्द्र सिंह ने जज साहब को बताया- “जज साहब, यहाँ एक हादसा हो गया है। हृदयाघात हो जाने से गवाह विशाखा देवी की मृत्यु हो गई है।”

   “ओह गॉड!... आज की अदालत बर्खास्त की जाती है। फैसला आगामी तारीख को सुनाया जाएगा।” -जज साहब यह कह कर अपनी सीट से उठ खड़े हुए। 

                                                               

                                                                  ************


टिप्पणियाँ

  1. बहुत दर्दनाक कथा है आदरणीय सर | ईश्वर विशाखा जैसी परीक्षा इसी माँ की ना ले | पर इस उदारमना माँ ने न्याय की गरिमा को अक्षुण रखा | और एक बेटी की माँ होने के नाते दूसरी बेटी को इन्साफ दिलाया | आपकी कथाएं स्तब्ध करती हैं | सादर

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    1. आपके भावुक ह्रदय को कहानी ने छुआ, यह देख कर मैं आल्हादित हूँ रेणु जी! आपकी समीक्षा अपने-आप में एक सुन्दर रचना हुआ करती है। आपका बहुत-बहुत आभार!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 30 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. अभिभूत हूँ आपके इस 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' के सुन्दर पटल पर अपनी रचना को आप द्वारा स्थान दिये जाने से ! मेरा आभार स्वीकारें महोदया!

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  3. आज फिर से कथा पढ़कर मन भावुक हुआ आदरणीय सर। बहुत मार्मिक कहानी है एक अभागी मां की, जिसे अप्रत्याशित परीक्षा देनी पड़ी और ममत्व के एवज में अपनी जान भी। पर न्याय की महिमा को अखंड रखा। सादर 🙏🙏

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    1. बहुत धन्यवाद रेणु जी! मूवी 'मदर इण्डिया' में माँ ने सत्य व न्याय की रक्षा के लिए अपने बेटे की जान ले ली थी। मेरी इस कहानी में बेटे को सज़ा तजवीज़ कर माँ ने अपनी भी जान दे दी। भारत में सम्भवतः माताएँ ऐसा कर सकती हैं।

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  4. बहुत मर्मस्पर्शी कहानी।
    एक माँ बेटे के विरुद्ध गवाही दे कर स्वयम ही नहीं सह पाई ।
    लेकिन यदि माएँ ऐसी हों जो बेटे के गुनाह पर पर्दा न डालें तो कुछ तो गुनाह होने कम हो सकते हैं ।

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