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केबीसी का सात करोड़ का सवाल (प्रहसन)

केबीसी में अमृता देवी एक करोड़ जीत चुकी थीं। सात करोड़ का सवाल पूछा जाने वाला था। अमृता जी पचपन वर्ष की सामान्य शक्ल-सूरत की प्रौढ़ महिला थीं। अमिताभ जी वैसे भी बोर हो रहे थे। उन्होंने अमृता जी को, जैसा कि वह हमेशा से करते आये हैं, चेताया- "आप एक करोड़ जीत रही हैं। आप चाहें तो यहीं से क्विट कर सकती हैं। अगर आप इस सवाल को हल नहीं कर पाईं, तो तीन लाख बीस हज़ार पर गिर जाएँगी।" अमृता जी ने सवाल पर एक बार और निगाह डाली।  सवाल में अमिताभ जी ने पूछा था- "कल रात डिनर में मैंने कौन-सी दाल खाई थी? आपके ऑप्शन हैं ये - (A) चने की दाल (B) मसूर की दाल (C) उड़द की दाल (D) काबुली चना  अमृता जी ने विचार किया। अमिताभ जी वयोवृद्ध व्यक्ति हैं। इस उम्र में चना, या उड़द की दाल कम से कम रात के वक्त तो नहीं ही खाते होंगे। चौथे ऑप्शन में दाल नहीं, काबुली चना है। अतः ले दे कर एक ही उत्तर सही बैठता है और वह है मसूर की दाल। वह विश्वास के साथ बोलीं- "जी सर, मैं खेलूँगी।"  अमृता जी के साथ गेम खेलते उनको लग रहा था कि अनावश्यक ही यह महिला अगले प्रतियोगी का चांस ख़राब कर रही है। उन्होंने मन ही मन (😊)

मोहब्बत की दुकान (व्यंग्य लघुकथा)

                                                     मोहब्बत की दुकान                                                     बाज़ार में टहलकदमी करते हुए एक दुकान के पास पहुँचते ही मेरे पाँव रुक गए। अजीब-सा नाम था उस दुकान का- 'मोहब्बत की दुकान'।  मैं यह जानने को उत्सुक हुआ कि आखिर इस दुकानदार द्वारा क्या माल बेचा जाता है। नाम देख कर काम जानने की इच्छा होना स्वाभाविक भी था ही। दुकानदार के चेहरे पर मुस्कान थी। असली थी या नकली, यह भला मेरे जैसा सीधा-सादा आदमी कैसे जान सकता था? पास जा कर मैंने पूछा- "भैया जी, क्या बेचते हो?" दुकान से बाहर आ कर मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया- "दुकान के बोर्ड पर जो नाम लिखा है, तुमने पढ़ा नहीं क्या?" "पढ़ा है भाई।" "क्या लिखा है उस पर?" "मोहब्बत की दुकान।" "मिठाई की दुकान पर जाते हो तो वहाँ क्या मिलता है?" "मिठाई! और क्या मिलेगा?" "वही तो! तो भाई साहब, इसी तरह हमारे यहाँ मोहब्बत मिलती है।" "वो तो ठीक है, लेकिन यह मोहब्बत भी कोई बेचने की चीज़ है?" "नही

एक नन्ही-सी कहानी

बदलू राम, अकड़ू राम, गोलू मल, पेटू चन्द, नौटंकी लाल, हेठी बाई, तेजी ताई, वगैरह-वगैरह चचेरे-ममेरे भाई-बहन एक कमरे में बैठे मीटिंग कर रहे थे। मुद्दा था, मोहल्ले के वर्तमान अध्यक्ष को हटा कर अपना अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के लिए नक्शा तैयार करना। सब की अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग - हर कोई अध्यक्ष बनने का इच्छुक, पर अपने मुँह से कहे कौन? कुछ रिश्तेदारों ने गोलू मल का नाम सुझाया, तो उसे अयोग्य मान कर नौटंकी लाल बिफर गया, क्योंकि वह तो खुद को ही सबसे अधिक योग्य मानता था। बदलू राम सहित दो-तीन अन्य रिश्तेदार भी, जो स्वयं अध्यक्ष बनने को बेचैन थे, गोलू मल के चुनाव से सहमत नहीं थे। लेकिन बेचारे कुछ कह नहीं पा रहे थे। किसी एक ने बदलू राम का नाम भी चलाया। बदलू राम के मन में तो लड्डू फूट रहे थे, पर बेचारा ‘ना-ना, मैं नहीं’, कहते हुए इंतज़ार कर रहा था कि और कोई भी आग्रह करे, लेकिन बात बनी नहीं।  इस बात से तो सब एकमत थे कि नया अध्यक्ष बनना चाहिए जो इन्हीं लोगों में से एक हो, किन्तु कौन हो, इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही थी। सभी रिश्तेदार आपस में कहीं न कहीं एक दूसरे से कुढ़ते थे, लेकिन मौ

केन्द्र सरकार से गुज़ारिश

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के अनुसार उन्हें इस दीपावली पर एक अनूठा विचार आया और उस विचार के आधार पर उन्होंने केन्द्र सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि भारतीय मुद्रा (नोट) के एक ओर गाँधी जी की तस्वीर यथावत रखते हुए दूसरी ओर भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की तस्वीर छपवाई जाए, ताकि देवी देवताओं का आशीर्वाद देश को प्राप्त हो (देश के लिए आशीर्वाद चाहते हैं या स्वयं के लिए, यह तो सभी जानते हैं 😉 )। इसके बाद आरजेडी दल की तरफ से एक प्रस्ताव आया कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर और दूसरी तरफ लालू यादव व कर्पूरी ठाकुर की तस्वीरें छपवाई जाएँ, ताकि डॉलर के मुकाबले रुपया ऊँचा उठे और देश का विकास हो (यानी कि अधिकतम मुद्रा चारा खरीदने के काम आए 😉 )। अब जब इस तरह के प्रस्ताव आये हैं, तो मेरी भी केन्द्र सरकार से गुज़ारिश है कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर तो यथावत रहे, किन्तु दूसरी तरफ मेरी तस्वीर छपवाई जाए, क्योंकि मेरी सूरत भी खराब तो नहीं ही है। मेरी दावेदारी का एक मज़बूत पक्ष यह भी है कि कल रात मुझे जो सपना आया, उसके अनुसार मैं पिछले जन्म में एक समर्पित स्वतंत्रता सैनानी था

बेरोज़गारी

     यह बीजेपी वाले खुद तो ढंग से लोगों को रोज़गार दे नहीं पा रहे हैं और जो लोग इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, उनकी आलोचना करते रहते हैं। अब देखिये न, इस निराशा के चलते एक पार्टी के सैकड़ों लोग केवल एक आदमी को रोज़गार दिलाने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा तक गली-गली में पैदल चल कर अपने पाँव रगड़ रहे हैं। इसी तरह एक और पार्टी के कर्ता-धर्ता अपनी पुरानी रोज़ी-रोटी छिन जाने के डर से नया रोज़गार पाने के लिए गुजरात की ख़ाक छान रहे हैं। इन्हें रोज़गार मिलेगा या नहीं, यह तो ईश्वर ही जाने, किन्तु बेचारे कोशिश तो कर ही रहे हैं न! इनकी मदद न करें तो न सही, धिक्कारें तो नहीं 😏 । *****

फेरी वाला (हास्य-व्यंग्य)

प्रातः बिस्तर से उठा ही था कि फेरी वाले की आवाज़ आई। अस्पष्ट होने से उसकी पूरी हांक समझ में नहीं आई, केवल बाद के दो शब्द सुनाई दे रहे थे - ".......ले लो, .......ले लो।" क्या बेच रहा है, जानने के लिए उठ कर बाहर आया। उसे रोक कर पूछा- "क्या बेच रहे हो भाई?" "अरे साहब, बेचेंगे तो तब न, जब कोई खरीदार हो! हम तो फ्री में दे रहे हैं, फिर भी कोई नहीं ले रहा। आप ही ले लो साहब!" -फेरी वाले ने जवाब में कहा। "केजरीवाल जी ने भेजा है क्या?" "अरे नहीं साहब, कॉन्ग्रेस आलाकमान से आया हूँ।" "ओह, तो क्या दे रहे हो भाई?" "कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद। ले लो साहब!" -बेहद आजिज़ी के स्वर में वह बोला। क्या करता मैं, आप ही बताइये!... भई, मैंने भी मना कर दिया- “नहीं चाहिए भाई, आगे जा कर पूछो।” *****

ओमिक्रॉन

             कितना सुन्दर नाम है 'ओमिक्रॉन'! पढ़-सुन कर लगता है, जैसे किसी अच्छे ब्रैण्ड का मोबाइल या कम्प्यूटर हो, लेकिन कम्बख़्त है यह एक दुखदायी वायरस!... बेड़ा गर्क हो इस मुँहजले बहरूपिये जीवाणु का😞😠! *****

पड़ोसी की बदहाली (व्यंग्य लेख)

           पता नहीं, आप क्रिकेट के मैदान में रन कैसे बना लेते थे इमरान साहब! सियासत के मैदान पर तो आप लगातार क्लीन बोल्ड हो रहे हो। वैसे तो आपके मुल्क के अभी तक के सभी हुक्मरान उल्टी खोपड़ी के ही देखने में आए हैं। आप लोगों की हालत ऐसे आदमी जैसी है जिसके पास एक बीवी को खिलाने की औकात नहीं है और दो-तीन निकाह के लिये उतावला रहता है। तो, बड़े मियां, मानोगे मेरी एक सलाह? मौके का फायदा उठा कर ज़बरदस्ती कब्जाया POK लौटा दो हमारे भारत को। वैसे भी कड़की भुगत रहा इन्सान अपने घर की चीजें बेच कर अपनी ज़रूरतें पूरी करने को मजबूर हो जाता है। ... और फिर POK तो आपका अपना माल भी नहीं है, देर-सवेर हम वापस ले ही लेंगे आपसे। एक बात और कहूँ आप बुरा न मानें तो! देखिये, अमेरिका ने आपको घास डालनी बन्द कर दी है और आपको भी अच्छे-से पता है कि आपका वो गोद लिया पापा है न, क्या नाम है उसका, हाँ याद आया, 'चीन', तो वह तो मतलब का यार है आपका।...अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा आपके लिए! भुखमरी के आपके इन हालात में मैं आपको बमुश्किल दो-तीन हज़ार रुपये की अदद मदद कर सकता हूँ। सौ-पाँचसौ की बढ़ोतरी और भी करता, मगर क्या करूँ पें

'एक पत्र दोस्तों के नाम'

     मेरे प्यारे दोस्तों, मैं अपने एक सहयोगी राजनैतिक मित्र के साथ मिल कर पिछले एक माह से एक नई राजनैतिक पार्टी बनाने की क़वायद कर रहा था। आपको जान कर खुशी होगी कि हम अपने इस अभियान में सफल हो गए हैं, खुशी होनी भी चाहिए😊। न केवल पार्टी की संरचना को मूर्त रूप दिया जा चुका है, अपितु इसका नामकरण भी किया जा चुका है।   मित्रों, हमारी इस नई राष्ट्रीय पार्टी का नाम है- 'अवापा'! कैसा लगा आपको हमारी पार्टी का नाम, बताइयेगा अवश्य। हमारी पार्टी का मुख्य उद्देश्य देशसेवा तो है ही, एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि जो राजनेता देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं, जिन्हें अन्य पार्टियों द्वारा तिरस्कृत किया गया है, उचित अवसर नहीं दिया गया है, उन्हें हमारी इस पार्टी में सही स्थान दिया जाए। हाँ, सही समझा आपने! यदि आप में से किसी भी शख़्स को किसी पार्टी से निराशा हासिल हुई है तो आपका स्वागत करेगी हमारी यह नई पार्टी, आपके जीवन में नई आशा का संचार करेगी।     कल के अखबार में निम्नांकित समाचार जब मैंने देखा तो सिद्धू जी की राजनीतिगत पीड़ा देख मन विह्वल हो उठा।                 मैं सिद्धू जी को भी आमन

'परिवर्तन' (लघुकथा)

                  X-पार्टी की पराजय के बाद एक सप्ताह पहले Y-पार्टी की सरकार बन गई थी।    X-पार्टी का कार्यकर्त्ता (अपनी ही पार्टी के एक छुटभैये नेता से)- "भाई साहब, एक बहुत ज़रूरी काम आन पड़ा है। ज़रा नेता जी से आपकी सिफारिश करवानी थी।" छुटभैया- "सॉरी भाई, आत्मा की आवाज़ पर अभी तीन दिन पहले मैंने Y-पार्टी जॉइन कर ली है। अब मेरी बात तुम्हारी X-पार्टी में कोई नहीं मानने वाला।"  "अरे भाई साहब, Y-पार्टी के नेता जी से ही तो सिफारिश करनी है। मैं भी Y-पार्टी में ही हूँ, कल मैंने भी इस पार्टी की सदस्यता ले ली थी। X-पार्टी में तो मेरा दम घुट रहा था।"                                                                              *****

'मेरी दूसरी रोटी?'

                         आज बहुत परेशान हूँ मैं। कल तक मैं दो चपाती सुबह और एक चपाती शाम को खाता था। आज सुबह मेरी प्लेट में एक चपाती ही रखी गई। चपाती ख़त्म कर ली तो मैंने दूसरी की मांग की। पत्नी जी ने साफ़ इन्कार कर दिया, कहने लगीं- "खाना सुबह-शाम मैं बनाती हूँ। आपसे इतना भी नहीं होता कि बर्तन मांजने और झाड़ू-पौंछा में ही कुछ मदद कर दो। अब आपको दोनों समय गुज़ारे लायक मात्र एक-एक रोटी ही मिलेगी।"   बची हुई सब्ज़ी ख़त्म की और हाथ धो कर उठ खड़ा हुआ। सोच रहा हूँ कि श्रीमती जी मेरी  व्यस्तता और ज़िम्मेदारियों को क्यों नहीं समझतीं। एक तरफ साहित्य की सेवा में कुछ अर्पण करना तो दूसरी तरफ फेसबुक और व्हाट्सएप्प से सम्बंधित ज़िम्मेदारियाँ निभाना। अकेली जान, आखिर क्या-क्या करूँ मैं? वह जानती हैं कि सुबह से रात तक हर समय मोबाइल और कंप्यूटर में सिर खपाता रहता हूँ, फिर भी उनका मन नहीं पसीजता।     मित्रों! आपके सिवा और कौन है, जिसे मैं अपना दुखड़ा सुनाऊँ? आप ही बताइये, आपका यह निरीह मित्र क्या करे? सुबह की मेरी दूसरी रोटी का जुगाड़ कैसे हो? पत्नी जी कोरोना के भय से मदद के लिए मेड नहीं रख पा रही हैं, इस

'KBC - एक हास्यान्वेषण'

                                                                 KBC के एपिसोड्स का गहन अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष:-  1) जया बच्चन इन दिनों बहुत खुश नज़र आ रही हैं। सम्भवतः इसलिए कि KBC में इस बार कोरोना-काल के चलते महानायक अमिताभ बच्चन व महिला प्रतिभागी परस्पर गले नहीं लग पा रहे हैं 😜 ।                                                                        *********  2) KBC में हॉट सीट पर आने वाले कई प्रतिभागी या तो उच्च आदर्शों वाले व त्याग और सद्भावना की प्रतिमूर्ति हुआ करते हैं जो अपने द्वारा जीती गई राशि का अधिकांश भाग परोपकार में लगाने का निश्चय किये होते हैं या फिर अपनी आर्थिक समस्याओं से इतना ग्रसित होते हैं 😜  कि न केवल अमिताभ जी की सहानुभूति का लाभ पाते हैं, अपितु कुछ भोले दर्शक भी चाहने लगते हैं कि वह वहाँ से अच्छी राशि ले कर जाएँ।                                                                         ********* 3) इस सीजन में अभी तक में केवल महिलाएँ करोड़पति बनी हैं। सम्भवतः पुरुष-वर्ग बॉर्नविटा खा कर नहीं आता 😜 ।                                                           

'कुत्ते की पूँछ' (हास्य-व्यंग्य)

                                                                    जानकारी मिली कि कोरोना का प्रकोप थोड़ा मंदा हुआ है, तो अपने मित्र, विमलेश से मिलने की प्रबल इच्छा हो आने से पहुँच गया एक दिन उनके घर।    मेरे सद्भावी मित्र परेशान न हों, मैंने बाकायदा मास्क लगा रखा था और हर राह चलते शख़्स से छः-सात फ़ीट की दूरी बनाये रखते हुए सर्पाकार गति से चलते हुए विमलेश के घर तक की एक किलोमीटर की दूरी तय की थी।    विमलेश के वहाँ पहुँचा तो उनके घर का दरवाज़ा संयोग से खुला मिला। भीतर जा कर देखा, वह महाशय अपने सिर को एक हाथ पर टिकाये कुर्सी पर उदास बैठे थे। मुझे देख कर सामने रखी एक अन्य कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए फीकी हँसी के साथ बोले- “आओ भाई, अच्छे आये तुम!” “क्या हुआ विमलेश जी, भाभी से झगड़ा हो गया या वह मायके गई हुई हैं?” -मैंने मुस्कराते हुए पूछा।  “नहीं यार, ऐसा कुछ भी नहीं है। वह तो अपने रूम में बैठी स्वैटर बुन रही हैं।” “तो फिर यूँ मुँह लटकाये क्यों बैठे हो? अगर दूध नहीं है घर में तो चिन्ता न करो, मैं चाय पी कर आया हूँ।”  “अरे नहीं भाई, बात कुछ और ही है। मेरा कुत्ता कहीं चला गया है।” “ओह,

-:दावत:-

                                                                             "यार, थोड़ा जल्दी तैयार हो जाओ न, भूख के मारे प्राण निकले जा रहे हैं।" -कुछ झुंझलाते हुए मैंने कहा।    "दो दिन का उपवास करने के लिए मैंने कहा था आपसे? तैयार होने में लेडीज़ को तो टाइम लगता ही है। आधे घंटे से कह रही हूँ कि पांच मिनट में तैयार हो रही हूँ और तुम हो कि जल्दी मचाये जा रहे हो। कम्बख़्त ढंग की साड़ी तो दिखे।" -वार्डरॉब में लटकी साड़ियों पर से नज़र हटा कर श्रीमती जी ने मेरी ओर आँखें तरेरीं।   अलमारी में रखी पचासों साड़ियों में से उनको कोई ढंग की साड़ी नज़र नहीं आ रही थी, इसका तो मेरे पास भी क्या इलाज था? गले में लटकी टाई को थोड़ा लूज़ करते हुए मैं कुर्सी पर बैठ गया। अभी तक तो साड़ी का चुनाव ही नहीं कर सकी हैं श्रीमती जी! साड़ी पसंद आने के बाद तैयार होने में और फिर तैयार हो कर शीशे में हर एंगल से दस-बीस बार निहारने में कम से कम एक घंटा तो और लगेगा ही उनको, यह मैं जानता था।   आधे-पौन घंटे बाद जब मैंने देखा कि अभी भी उनका मेक-अप तो बाकी ही है तो मैंने धीरे-से उन्हें मज़ाक में चेताया- "ऐस

मीडिया की गैरज़िम्मेदारी

                                                     मीडिया में कुछ अपराध-सीरियल्स में तथा कुछ अपराध-आधारित मूवीज़ में अपराध के विभिन्न तरीकों को दर्शाया जाता है। इन कहानियों से जन-जागृति तो नहीं होती, अपितु अपराध के तरीकों को देख कर सामान्य अपराधियों को भी उन्हें आजमाने की प्रेरणा मिलती है। यह सब जानने के बावज़ूद अख़बार वाले सबक नहीं लेते। गैरज़िम्मेदारी का प्रमाण देखिये कि अभी हाल ही में एक अखबार ने खबर छाप दी कि शहर में एक ही सप्ताह में कई लोगों को श्वानों ने काटा है। इधर इस खबर का छपना था कि हमारी कॉलोनी के सीधे-सादे श्वानों ने भी दो ही दिनों में चार लोगों को काट खाया।

"ऐ सांवली हसीना..."

सन 1964 में रिलीज़ हुई मूवी 'ज़िन्दगी' मैंने वर्ष 1965 में महाराजा कॉलेज में अध्ययन के दौरान कॉलेज से भाग कर मेटेनी शो में देखी थी। इस मूवी में शायर हसरत जयपुरी के गीत 'पहले मिले थे सपनों में' की दो पंक्तियाँ मुझे आज तक कंफ्यूज़ करती रही हैं। हसरत जयपुरी जी से मिलने का समय नहीं निकाल सका, इसलिए उनसे भी नहीं पूछ सका। वह पंक्तियाँ हैं- 'ऐ सांवली हसीना, दिल तूने मेरा छीना' तथा 'गोर बदन पर काला आँचल, और रंग ले आया' तो समझ में यह नहीं आया कि जो हसीना सांवली थी उसका बदन गोरा क्योंकर रहा होगा? मान भी लें कि वह हसीना सांवली ही पैदा हुई थी और बदन पर किसी प्रतिष्ठित कम्पनी का गोरा बनाने वाला क्रीम लगाती थी तो वह क्रीम उसने चेहरे पर क्यों नहीं लगाया? गाना गाते हुए हीरो की नज़र ज्यादातर तो उसके चेहरे पर ही रही होगी न! बस इतनी ही बात मानी जा सकती है कि या तो हसीना ने गलती की थी या फिर विधाता ने ही चेहरा और बदन अलग-अलग रंग का गढ़ दिया था और शायर ने हसीना को

डायरी के पन्नों से ... "एक रात..."

जो किशोरवय युवा अभी यौवनावस्था से गुज़र रहे हैं वह इसी काल को जीते हुए और जो इस अवस्था से आगे निकल चुके हैं वह तथा जो बहुत आगे निकल चुके हैं वह भी, कुछ क्षणों के लिए उस काल को जीने का प्रयास करें जिस काल को मैंने इस प्रस्तुत की जा रही कविता में जीया था।…     कक्षा-प्रतिनिधि का चुनाव होने वाला था। रीजनल कॉलेज, अजमेर में प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था मैंने उन दिनों। कक्षा के सहपाठी लड़कों से तो मित्रता (अच्छी पहचान ) लगभग हो चुकी थी, लेकिन लड़कियों से उतना घुलना-मिलना नहीं हो पाया था तब तक। अब चुनाव जीतने के लिए उनके वोट भी तो चाहिए थे, अतः उनकी नज़रों में आने के लिए थोड़ी तुकबंदी कर डाली। दोस्तों के ठहाकों के बीच एक खाली पीरियड में मैंने कक्षा में यह कविता सुना दी। किरण नाम की दो लड़कियों सहित कुल 12 लड़कियां थीं कक्षा में और उन सभी का नाम आप देखेंगे मेरी इस तुकबंदी वाली कविता में (अंडरलाइन वाले शब्द )। ... और मैं चुनाव जीत गया था।                     

बदन पर तीरों की बौछार...

        उफ़्फ़! कितना ह्रदय-विदारक था वह अहसास, रूह तक को कंपा देने वाला !          टैक्सास (अमेरिका ) में भयंकर तूफ़ान आया, विराट कोहली ने दोहरा शतक बनाया, बाबा राम रहीम को बलात्कार के जुर्म में बीस साल की कैद की सज़ा हो गई, यह ख़बरें अख़बार की सुर्खियाँ बन जाती हैं, लेकिन मुझे पता है मेरे साथ हुए प्राणान्तक हादसे को कोई तवज्जो नहीं देगा क्योंकि मैं एक आम आदमी हूँ, मेरी कोई पहुँच नहीं है।        तो मैं आपको बताऊँ कि मेरे साथ आज क्या गुज़री! आज सुबह जैसे ही मैं वॉशरूम में गया और नहाने के लिए नल (tap) खोला, बदन पर तीरों की बौछार पड़ी। हाँ, तीरों की बौछार ही तो थी यह क्योंकि यह सब अप्रत्याशित रूप से हुआ था। दरअसल नल का सिरा पहले से ही शॉवर वाली दिशा की तरफ था और ऑन करते ही अचानक जबरदस्त ठण्डे पानी की बौछार तीर की मानिन्द मेरे बदन पर पड़ी, वरना तो मैं धीरे-धीरे नहाने की ओर कदम बढ़ाता।...काँप उठी थी मेरी आत्मा !       तीन दिन से लगातार हो रही बारिश के चलते छत की टंकी का पानी बर्फ़ीला हो चला था और ऐसे बर्फ़ीले ठण्डे पानी से नहाने की पीड़ा वही जान सकता है जिसने इसे भुगता हो। पिछले एक सप्ताह से गीज़