प्रातः बिस्तर से उठा ही था कि फेरी वाले की आवाज़ आई। अस्पष्ट होने से उसकी पूरी हांक समझ में नहीं आई, केवल बाद के दो शब्द सुनाई दे रहे थे - ".......ले लो, .......ले लो।"
क्या बेच रहा है, जानने के लिए उठ कर बाहर आया। उसे रोक कर पूछा- "क्या बेच रहे हो भाई?"
"अरे साहब, बेचेंगे तो तब न, जब कोई खरीदार हो! हम तो फ्री में दे रहे हैं, फिर भी कोई नहीं ले रहा। आप ही ले लो साहब!" -फेरी वाले ने जवाब में कहा।
"केजरीवाल जी ने भेजा है क्या?"
"अरे नहीं साहब, कॉन्ग्रेस आलाकमान से आया हूँ।"
"ओह, तो क्या दे रहे हो भाई?"
"कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद। ले लो साहब!" -बेहद आजिज़ी के स्वर में वह बोला।
क्या करता मैं, आप ही बताइये!... भई, मैंने भी मना कर दिया- “नहीं चाहिए भाई, आगे जा कर पूछो।”
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-09-2022) को "शीत का होने लगा अब आगमन" (चर्चा-अंक 4566) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय डॉ. शास्त्री 'मयङ्क' जी!
हटाएंबहुत ही सटीक व्यंग। इतने बुरे दिन किसी पार्टी के न आए।
जवाब देंहटाएंहा हा... सही है। धन्यवाद ज्योति जी!
हटाएंलाजवाब व्यंग्य । हाल तो सच में यही है ।
जवाब देंहटाएंजी, संगीता जी! आभार आपका!
हटाएंवाह! गज़ब कहा सर 👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका अनीता जी!
हटाएंवाह !!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब 👌👌
जी, हार्दिक धन्यवाद!
हटाएंबहुत बढियां अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंवाह! गहरा कटाक्ष
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी!
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