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'हिन्दी दिवस' (लघु कविता)

हिन्दी भाषा की जो आन-बान है,  किसी और की कब हो सकती है!   मेरे देश को परिभाषित करती,   हिन्दी तो स्वयं मां सरस्वती है। *****

मुझसे रूठी मेरी कविता (लघु कविता)

                 'मुझसे रूठी मेरी कविता'                                                                                              नैन  तुम्हारे किससे उलझे, क्यों पास मेरे तुम ना आती?  तुम ऐसी छलना नारी हो, डगर-डगर फिरती मदमाती।  हर दिन औ' हर रात-सवेरे, नई  राहों  से निकल जाती।  मैं तुम्हारा  सन्त  उपासक, तुम औरों  के दर इठलाती।  रातें  कितनी  भी  गहराएँ, आँखों  में  नींद  नहीं आती।  काव्य-कविता नाम तुम्हारा,तुम रसिकों का मन बहलाती। बाट जोहती कलम हमारी, क्यों हमको इतना तरसाती? चाहे तुम कितना भी रूठो,लेकिन मुझको अब भी भाती।                                       *******

एक नन्ही कविता

चलते-चलते बस यूँ ही 😊...      कल अचानक तपती दुपहर में, ठंडी-भीनी    फुहार   आ  गई, बारिश नहीं, यह तुम आई थी,  जलते दिल  में  बहार आ गई।   ***

डायरी के पन्नों से ... "चुनावी मौसम आ रहा है..."

चुनाव से पहले एक बार फिर सावधान करता हूँ दोस्तों!  दस  आगे,  दस  पीछे  लेकर, वह  तुम्हें  रिझाने  आयेंगे।  चिकनी-चुपड़ी बातें कह कर, कुछ सब्ज बाग़ दिखलायेंगे। कौन सही है, कौन छली है, सोच-समझ कर निर्णय करना, भस्मासुर  पैदा  मत   करना, अब  हरि  न  बचाने  आयेंगे।।

डायरी के पन्नों से ... "कविता क्या है?"

  कविता क्या है? -  चार पंक्तियों में मेरी अभिव्यक्ति (नई रचना)---  छोटे गड्ढे, कुछ नालों से, नहीं कभी सरिता बनती। कुछ शब्दों की तुकबंदी से, कभी नहीं कविता रचती। पत्थर-दिल को  पिघला दे जो, रोते को बहलाती है। कायर दिल में शोला भर दे,वह कविता कहलाती है।।

फिर दिल्ली में ---Posted on Facebook...on Dt.20-4-13---'फिर दिल्ली में'

Gajendra Bhatt April 20 फिर दिल्ली में --- गुड़िया, तुम पर ज़ुल्म हुआ,  और दरिन्दा जिंदा है। राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध का,  देश आज शर्मिंदा है।।