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'हिन्दी भाषा' (कविता)

हिंदी भाषा   हिन्दी भाषा की जो आन-बान है,  किसी और की कब हो सकती है! मेरे देश को परिभाषित करती, हिन्दी तो स्वयं माँ सरस्वती है। अपनी उपरोक्त छोटी-सी रचना से प्रारम्भ कर के मैं हमारी मातृभाषा हिन्दी के सम्मान में कुछ और भी कहूँगा - मेरे देश के कुछ अहिन्दीभाषी क्षेत्रों में किसी हिन्दीभाषी व्यक्ति को ढूंढ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है, जबकि हिन्दी हमारी मातृभाषा है। पूर्णतः वैज्ञानिक, तार्किक एवं साहित्यिक समृद्धि से परिपूर्ण हमारी हिंदी भाषा हमारे ही देश में इस तरह तिरस्कृत हो रही है, इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? वहीं, यह बात कुछ सांत्वना देने वाली है कि 'हिन्दी' के प्रति रुझान बढ़ाने हेतु इसके प्रचार-प्रसार का उच्चतम प्रयास सरकारी स्तर पर किया गया है। 'हिन्दी-दिवस' के पावन अवसर पर रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, अजमेर में अध्ययन के प्रारम्भिक काल में मेरे द्वारा लिखी गई कविता ---                                                       ...

मुझसे रूठी मेरी कविता (लघु कविता)

                                  'मुझसे रूठी मेरी कविता'                                                                                              नैन  तुम्हारे किससे उलझे, क्यों पास मेरे तुम ना आती?  तुम ऐसी छलना नारी हो, डगर-डगर फिरती मदमाती।  हर दिन औ' हर रात-सवेरे, नई  राहों  से निकल जाती।  मैं तुम्हारा  सन्त  उपासक, तुम औरों  के दर इठलाती।  रातें  कितनी  भी  गहराएँ, आँखों  में  नींद  नहीं आती।  काव्य-कविता नाम तुम्हारा, रसिकों का मन बहलाती। बाट जोहती कलम हमारी,  क्यों हमको इतना तरसाती ? चाहे तुम कितना भी रूठो, मुझको तुम अब भी भाती।           ...

एक नन्ही कविता

चलते-चलते बस यूँ ही 😊...            कल अचानक तपती दुपहर में, ठंडी-भीनी    फुहार   आ  गई, बारिश नहीं, यह तुम आई थी,  जलते दिल  में  बहार आ गई।    ***

डायरी के पन्नों से ... "चुनावी मौसम आ रहा है..."

चुनाव से पहले एक बार फिर सावधान करता हूँ दोस्तों!  दस  आगे,  दस  पीछे  लेकर, वह  तुम्हें  रिझाने  आयेंगे।  चिकनी-चुपड़ी बातें कह कर, कुछ सब्ज बाग़ दिखलायेंगे। कौन सही है, कौन छली है, सोच-समझ कर निर्णय करना, भस्मासुर  पैदा  मत   करना, अब  हरि  न  बचाने  आयेंगे।।

फिर दिल्ली में ---Posted on Facebook...on Dt.20-4-13---'फिर दिल्ली में'

Gajendra Bhatt April 20 फिर दिल्ली में --- गुड़िया, तुम पर ज़ुल्म हुआ,  और दरिन्दा जिंदा है। राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध का,  देश आज शर्मिंदा है।।