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मुझसे रूठी मेरी कविता (लघु कविता)

                 'मुझसे रूठी मेरी कविता'

                                                                                            

नैन  तुम्हारे किससे उलझे, क्यों पास मेरे तुम ना आती? 

तुम ऐसी छलना नारी हो, डगर-डगर फिरती मदमाती। 

हर दिन औ' हर रात-सवेरे, नई  राहों  से निकल जाती। 

मैं तुम्हारा  सन्त  उपासक, तुम औरों  के दर इठलाती। 

रातें  कितनी  भी  गहराएँ, आँखों  में  नींद  नहीं आती। 

काव्य-कविता नाम तुम्हारा,तुम रसिकों का मन बहलाती।

बाट जोहती कलम हमारी, क्यों हमको इतना तरसाती?

चाहे तुम कितना भी रूठो,लेकिन मुझको अब भी भाती। 

 

                                  *******


टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 31 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद... आभार बन्धु रवीन्द्र जी! अवश्य ही उपस्थित रहूँगा।

      हटाएं
  2. एक कवि का प्रेम कभी कम नहीं होता अपनी कविताओं से. वह आखिर रूठ कर जाएगा भी कहाँ तक
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (01-04-2022) को चर्चा मंच       "भारत ने सारी दुनिया को, दिया शून्य का ज्ञान"   (चर्चा अंक-4387)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी इस साधारण -सी रचना को चर्चा-मंच पर स्थान देने के लिए आभारी हूँ। मैं अवश्य उपास्थित रहूँगा महोदय!

      हटाएं
  4. बहुत सटीक ...कवि के लिए कविता प्रेयसी से कम नहीं...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद सुधा जी! कवि के लिए आराध्या है उसकी कविता!

      हटाएं
  5. सटीक। कवि के लिए तो कविता का आना एक प्रेमिका के आने के समान है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सच कहा बन्धु आपने! कविता वस्तुतः प्रेमिका से कमतर प्रेयसी नहीं।

      हटाएं

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