'मुझसे रूठी मेरी कविता'
नैन तुम्हारे किससे उलझे, क्यों पास मेरे तुम ना आती?
तुम ऐसी छलना नारी हो, डगर-डगर फिरती मदमाती।
हर दिन औ' हर रात-सवेरे, नई राहों से निकल जाती।
मैं तुम्हारा सन्त उपासक, तुम औरों के दर इठलाती।
रातें कितनी भी गहराएँ, आँखों में नींद नहीं आती।
काव्य-कविता नाम तुम्हारा,तुम रसिकों का मन बहलाती।
बाट जोहती कलम हमारी, क्यों हमको इतना तरसाती?
चाहे तुम कितना भी रूठो,लेकिन मुझको अब भी भाती।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 31 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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धन्यवाद... आभार बन्धु रवीन्द्र जी! अवश्य ही उपस्थित रहूँगा।
हटाएंएक कवि का प्रेम कभी कम नहीं होता अपनी कविताओं से. वह आखिर रूठ कर जाएगा भी कहाँ तक
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत- बहुत धन्यवाद महोदया!
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (01-04-2022) को चर्चा मंच "भारत ने सारी दुनिया को, दिया शून्य का ज्ञान" (चर्चा अंक-4387) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी इस साधारण -सी रचना को चर्चा-मंच पर स्थान देने के लिए आभारी हूँ। मैं अवश्य उपास्थित रहूँगा महोदय!
हटाएंबहुत सटीक ...कवि के लिए कविता प्रेयसी से कम नहीं...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
धन्यवाद सुधा जी! कवि के लिए आराध्या है उसकी कविता!
हटाएंसटीक। कवि के लिए तो कविता का आना एक प्रेमिका के आने के समान है।
जवाब देंहटाएंसच कहा बन्धु आपने! कविता वस्तुतः प्रेमिका से कमतर प्रेयसी नहीं।
हटाएंबहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनोज जी!
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