सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अगर नहीं रहना साथ तो...

 तो दे दो इन्हें पृथक आदिवासी राज्य! ऐसा राज्य दे दो इन्हें जहाँ केवल आदिवासी जनता हो, केवल आदिवासी कर्मचारी-अधिकारी हों और सभी मंत्री भी आदिवासी हों। यदि मिश्रित समाज एवं सहबन्धुत्व की भावना से इन्हें इतना ही परहेज है तो दे ही दो इन्हें पृथक राज्य!    इस तरह की मांग करने वाले पृथकतावादी क्यों भूल जाते हैं कि विभाजन कितना कष्टदायी होता है, 1947 के भारत-विभाजन का दंश नासूर बनकर अभी तक भी हर देशवासी को कितनी पीड़ा दे रहा है! दे दो इन्हें पृथक राज्य, लेकिन भारत-विभाजन के समय विभाजन के मूल उद्देश्य को जिस तरह से दरकिनार कर दिया गया था,   उस भूल की पुनरावृत्ति न हो। आदिवासी राज्य हो, लेकिन हो वह केवल आदिवासियों का।              (कृपया अवलोकन करें राजस्थान पत्रिका, दि. 24 -12-2016 से ली गई निम्नांकित  खबर का)

कितना बड़ा कंफ्यूज़न है !!!

      कितना बड़ा कंफ्यूज़न है ! या तो जनता की पाचनशक्ति बहुत ही अच्छी है या फिर अजीर्ण के बाद भी डकार नहीं ले पाने की विवशता है। जनता में से ही बुद्धिजीवी वर्ग से एक अराजनैतिक दल बनाने का प्रावधान क्यों नहीं रखा जा सकता जिसमें से चुना गया एक प्रतिनिधिमण्डल सर्वशक्तिमान राजनेताओं से पूछे कि जनता अपने दिए हुए वोट का खामियाजा कब तक भुगतेगी और उसे भस्मासुर बनने के लिए क्यों प्रेरित किया जा रहा है ?      बात कर कर रहा हूँ मैं प्रधानमंत्री मोदी जी और विपक्षी नेताओं के मध्य चल रहे शीत-युद्ध की। राहुल गाँधी और केजरीवाल जी मोदी जी पर गुजरात के मुख्यमंत्रित्व-काल में करोड़ों के अनैतिक लेनदेन का आरोप लगाते हुए निरंतर प्रहार कर रहे हैं और मोदी जी हैं कि अन्य सभी क्षेत्रों में तो मुखर हैं लेकिन इस मसले पर मौन साधे हुए हैं। प्रश्न यह उठता है कि यदि आरोप सही हैं तो विपक्षी पुख़्ता साक्ष्य एकत्र कर कोर्ट में मोदी जी के विरुद्ध मुकद्दमा क्यों नहीं दायर करते हैं और यदि आरोप मिथ्या हैं तो मोदी जी उन पर मान-हानि का मुकद्दमा क्यों नहीं करते ? ड्रॉ होने देने के लिए घिनौनी राजनीति का यह दूषित खेल कब तक खे

यह मुद्दा सदैव ज्वलंत ही रहने वाला है...

      "कॉंग्रेस ने उनके शासन के दौरान कुछ नहीं किया, केवल गलत ही गलत काम किये।"  पहले हम गलत कामों की बात करें तो उन्हें सही करने से वर्तमान शासन को कौन रोक रहा है? बीजेपी वाले जितना करते हैं उससे दस गुना जताते हैं और कॉंग्रेस के कामों को नकारते हैं, यह बात कुछ जंचती नहीं। हर इंसान में खामियां होती हैं तो इंसान से गलती होना भी अवश्यम्भावी है। भारत ने अभी तक की जिन बुलन्दियों को छुआ है, वह सब क्या बीजेपी का करा-धराया है? नेहरू जी, इंदिरा जी और नरसिंहराव जी ने देश के लिए जो कुछ किया, उसे कौन नकार सकता है? इंदिरा जी के बांगला देश के उद्भव के साहसी निर्णय का ही परिणाम है कि पूर्व की तरफ से पाक की नापाक हरकतों से महफूज़ हैं हम। युगपुरुष अटल जी ने तो उन्हें 'दुर्गा' (माता) तक कह दिया था। मैं कॉंग्रेस का समर्थक नहीं हूँ (पर केजरीवाल जी का अवश्य हूँ)।       मानता हूँ कि मोदी जी का अभी कोई विकल्प नहीं है, लेकिन अभी उन्हें अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करनी होगी।       क्यों निकम्मे और अपराधी कुछ तत्व सांसदों के रूप में उनकी टीम में हैं? संसद में मात्र हुड़दंग का काम करने वाले सां

पदस्थापन हेतु विज्ञप्ति :-

   निम्नांकित पद के लिए उत्साही युवाओं के आवेदन आमन्त्रित हैं - पद नाम -  आतंकवादी पदों की संख्या -  असीमित अनुभव -  आग्नेयास्त्र चलाने में दक्षता। अनुभव नहीं होने पर भी आवेदन स्वीकार्य, यदि प्रार्थी होनहार है। (तीव्र राष्ट्र-द्रोह की भावना रखने वालों को प्राथमिकता) कार्यक्षेत्र -  सम्पूर्ण भारतवर्ष वेतन -  मनचाहा (पाकिस्तान के सौजन्य से मिलेगा) अन्य लाभ (हिन्दुस्तान से मिल सकेंगे) - 1) पेन्शन स्वरूप मरणोपरान्त एक मुश्त राशि,  2) शहीद का दर्जा भी मिल सकता है (यदि प्रार्थी का कोई रहनुमा हुआ तो)।   इच्छुक आवेदक साक्षात्कार हेतु अविलम्ब मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर सरकार,  ;) श्रीनगर  में उपस्थित हों। नोट - सफल अभ्यर्थी को आने का इकतरफा किराया-खर्च देय होगा। (राजस्थान पत्रिका, दि. 14 -12 -2016 में छपी इस खबर से प्रेरित)

यही तो है गीता का ज्ञान ...

क्या लेकर आया था, क्या लेकर जायेगा ? जो आज तेरा है वह कल किसी और का होगा। इसलिए हे प्राणी! तू कल की चिंता छोड़ दे! बैंक में तेरे पास कितना रुपया है यह भूल जा और जितना आज मिल रहा है (या नहीं मिल रहा है), उसी को अपना भाग्य समझ! भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि कलियुग में वह 'कल्कि' अवतार लेंगे। तो अपने ज्ञान-चक्षु खोलो मित्रों, 'कल्कि' अवतार हो चुका है।

साहस के कुछ कदम और...

   आज अपने शहर के व्यस्ततम चौराहे से निकलते हुए मैं अपनी कार को बांयीं ओर मोड़ने जा रहा था और इसके लिए मुड़ने का संकेत भी दे चुका था लेकिन मेरी कार के बांयें से आ रहे वाहन जिन्हें सीधा सामने की ओर जाना था, लगातार निकले चले जा रहे थे। मैंने कार को कुछ बांयीं ओर मोड़ा भी लेकिन फिर भी पीछे से आ रही एक और कार ने कुछ बांयें होते हुए अपनी कार को आगे बढ़ा ही दिया। मेरा आक्रोश सीमा लांघ रहा था। एकबारगी तो इच्छा हुई कि उस कार से भिड़ा ही दूँ, लेकिन ऐसा कर नहीं सका मैं। मेरे विवेक ने सावधान किया मुझे कि यदि मैंने ऐसा किया तो मेरी कार को भी क्षति पहुंचेगी।    ऐसी ही बानगी हमारे प्रधानमंत्री जी की विवशता के मामले में नज़र आती है। अभी हाल पांच सौ और एक हज़ार रुपये के नोटों को अचानक चलन से बाहर कर देने की घोषणा कर उन्होंने जो अप्रतिम साहस दिखाया है, क्या ऐसा वह अन्य वांछनीय क्षेत्रों में कर सकते हैं?...शायद नहीं।    प्रधानमंत्री की उपरोक्त घोषणा से जनता में खलबली मच गई। बड़े नोटों से भरे भंडारों के स्वामी भी कुलबुला गए तो मान्य मुद्रा (छोटे नोट) की कमी के चलते दैनिक जीवन-यापन की सामग्री का जुगाड़ न कर प

सर्वमान्य मुद्दा

       हमारे देश की संसद में कुछ मुद्दे (प्रस्ताव या सिफारिशें ) ऐसे होते हैं जो विवाद के विषय नहीं होते, सर्वमान्य होते हैं। पक्ष ने सुझाया तो भी मान्य और विपक्ष ने सुझाया तो भी मान्य। बात अजीब सी लग सकती है, लेकिन है सही। सन्दर्भ है मेरे द्वारा यहाँ साझा (copy-paste) की गई खबर!    पहले हम 'सर्वमान्य' मुद्दे के मूल को समझें - प्रजातन्त्र को परिभाषित किया जाता है - "जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता का।  ठीक इसी तरह संसद में पारित सर्वमान्य फैसले के बारे में कहा जा सकता है - माननीयों के द्वारा, माननीयों के लिए, माननीयों का।    जिस फैसले के प्रति सभी (पक्ष के भी, विपक्ष के भी) माननीय एकमत हों, वह सर्वमान्य और अंतिम फैसला तो हो ही जाता है, क्योंकि अन्य 'अमाननीयों' को तो विरोध करने का अधिकार है नहीं। ('अमाननीयों' के सभी अधिकार तो वोट देने मात्र तक ही सीमित होते हैं।)   अतः अविवादित मुद्दे पर विवाद खड़ा करना मेरा उद्देश्य नहीं होना चाहिए, है भी नहीं। मुझे तो इस खबर में निहित विसंगति पर हैरानी है। राष्ट्रपति के लिए प्रस्तावित रु.५ लाख का मासिक वेतन

क्या यह सब-कुछ चौंकाने के लिए पर्याप्त नहीं?

     हमारे देश की जनसंख्या हमें प्राप्त जानकारी के अनुसार 1.25 (सवा)अरब के लगभग है और मेरे द्वारा शेयर की गई निम्नांकित खबर के अनुसार 1.7 अरब आधार कार्ड देश में जारी किये जा चुके हैं। मौजूदा कानून के अनुसार एक वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए आधार कार्ड बनवाया नहीं जा सकता और हालात जब यह हैं कि शत-प्रतिशत वयस्कों ने ही अपने आधार कार्ड नहीं बनवाये हैं तो आधार कार्ड बनने की शुरुआत के बाद पैदा हुए समस्त (लगभग एक करोड़) शिशुओं के आधार कार्ड बनवा लिए गए हों, इतनी जागरूक तो इस देश की जनता है नहीं। पहला आधार कार्ड सितम्बर, 2010 में बना था। तो फिर जनसंख्या और बनाये गए आधार कार्ड के आँकड़ों के अनुसार भारत के लगभग 45 करोड़ व्यक्ति आधार कार्ड बनवाने के बाद पिछले छः वर्षों में दिवंगत हो चुके हैं। क्या ऐसा सम्भव है? क्या यह सब-कुछ चौंकाने के लिए पर्याप्त नहीं?

केजरीवाल जी के नाम सन्देश---

   आ. केजरीवाल जी, मैं जो कुछ लिख रहा हूँ शायद आपको रुचिकर न लगे, लेकिन लिखूंगा ज़रूर।    कई दिनों से मैं देख रहा हूँ कि प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रति आपका व्यवहार कुछ ज़्यादा ही तल्ख़ हो रहा है। अब देखिये, मैं आप से उम्र में बड़ा हूँ फिर भी आपके ओहदे, आपके रसूख, आपकी ईमानदार छवि और उससे भी बढ़कर आपकी काबिलियत के मद्देनज़र आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ और यह आपके प्रति मेरे सम्बोधन से भी स्पष्ट है।    तो केजरीवाल सा., आपके राजनैतिक प्रतिद्वन्दी मोदी जी उम्र में, राजनैतिक अनुभव में और पद में आपसे बहुत बड़े हैं और न केवल यह कि एक बड़ा जन-समुदाय उनमें प्रगाढ़ आस्था रखता है, बल्कि यह भी कि वह देश के प्रधानमंत्री हैं। मानता हूँ, और आपके आलोचक ऊपर से मानें न मानें, जानते ज़रूर हैं कि केन्द्र ने आपको दिल्ली की राजनीति में पंगु सत्ताधारी बना रखा है (और ऐसा क्यों न हो, आपने प्रचण्ड बहुमत के साथ दिल्ली-चुनाव जो जीता था)। आप अपनी विशाल सेना के बावजूद खुल कर काम नहीं कर पा रहे हैं, उपराज्यपाल के माध्यम से विघ्न भी डाले जा रहे हैं लेकिन, आप मोदी जी के प्रति असम्मानजनक व्यवहार में ही अपना समाधान क्यों देख र

पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही

उरी (कश्मीर) में सैन्य शिविर पर अभी हुए आतंकी हमले में 17 जवान शहीद हो गए। निरन्तर हो रहे अनुत्तरित प्रहारों के आघात से देश की आत्मा कराह उठी है, देश का जन-मानस उद्वेलित है। वतन की रक्षा के लिए तैनात फौजियों की फड़कती भुजाएँ पैरों में पड़ी बेड़ियों के हटने कीे प्रतीक्षा कर रहीं हैं, लेकिन हमारे राजनैतिक कर्णधार दिशाविहीन हैं... फिर भी जन-आक्रोश को देखते हुए एक उच्चस्तरीय बैठक में पाकिस्तान के सिरुद्ध कड़ी कार्यवाही के लिए विचार-विमर्श हुआ है। लगता है इस बार पाकिस्तान की शामत आ गई है और...और उसे हमारी ओर से अब तक के सबसे कड़े शब्दों के प्रहार को झेलना होगा।

हमें यह जानने की आवश्यकता है...

ऑस्ट्रेलिया-भारत महिला हॉकी मैच! मैच आज सायं 7. 30 बजे प्रारम्भ हुआ। ऑस्ट्रेलिया ने इकतरफा अंदाज़ में गोल करना शुरू किया- एक...दो...तीन...चार...पाँच और फिर मैच समाप्त होने के कुछ मिनट पहले छठा गोल! निरीह भारतीय टीम बदहवास सी हो उठी थी। केवल तीसरे क्वार्टर में ही हमारी टीम कुछ संघर्ष दिखा सकी थी। पूरे मैच में जैसे ही 'डी' के पास हमारी कोई फॉरवर्ड पहुंचती, या तो विपक्षी द्वारा बॉल छीन ली जाती या उसको सहयोग देने के लिए कोई एकाध साथी खिलाड़ी ही वहां मौज़ूद दिखाई देती थी। सफलता मिलती भी तो कैसे? न तो सही पास देना हमारी खिलाडियों के बस का दिख रहा था और न ही विपक्षी खिलाड़ियों जैसा स्टेमिना ही इनमें था। छठा गोल होने के बाद मैच की समाप्ति से लगभग 15 सेकण्ड पहले कातर स्वरों में मैं ऑस्ट्रेलियन टीम से कह पड़ा- 'रहम...रहम ! रहम करो हमारी टीम पर, एक गोल तो करने दो हमें अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए !' और तब जाकर उन्होंने एक गोल करने दिया हमारी टीम को मैच-समाप्ति के 8 सेकण्ड पहले। अब जाकर टीम इण्डिया के फीके चेहरे पर थकी-थकी मुस्कान की एक रेखा झलकी। न...न...न.....!  सारा दोष खिलाड़ियों

मेरे शहर के मवेशी

शहर की यातायात व्यवस्था को दुरुस्त रख रहे हैं मेरे शहर के मवेशी। उन छोटे-छोटे चौराहों-तिराहों पर जहाँ यातायात-कर्मी नहीं होते हैं, मवेशी बीचों-बीच बैठकर दाएं-बाएं का यातायात व्यवस्थित रखते हैं और कहीं-कहीं तो सड़क के बीच कतार में खड़े हो कर या बैठ कर बाकायदा डिवाइडर भी बनाये रखते हैं। सड़कों पर बेतहाशा दौड़ रहे वाहनों की तीव्र गति को सीमित करने के लिए यदा-कदा यह मवेशी सड़कों पर इधर-उधर टहलते भी रहते हैं। प्रशासनिक अधिकारी भी सन्तुष्ट हैं संभवतः यही सोच कर कि यातायात-व्यवस्था की देख-रेख में इतनी मुस्तैदी तो यातायात-कर्मी भी नहीं दिखा पाते हैं। तो दोस्तों, आओ और देखो हमारे शहर की इस सुव्यवस्था को... 'दो दिन तो गुज़ारो हमारे शहर में ***********

मज़ाक बना रखा है...

    सरकार में मंत्री और ऐसे ही अन्य पद ग्रहण करते समय तथा अदालतों में फरयादी और मुल्जिम द्वारा ईश्वर के नाम पर ली जाने वाली शपथ की उपयोगिता मेरी समझ में तो नहीं आती। दोनों ही मामलों में अधिकांश लोगों के द्वारा झूठी और केवल झूठी शपथ ली जाती है और ऐसा झूठ बाद में प्रमाणित हो जाने पर भी झूठ बोलने के लिए कोई सजा नहीं दी जाती। ऐसी शपथ हास्यास्पद ही नहीं, पाप की श्रेणी में आती है।    बेहतर तो यह है कि शपथ में तो कम से कम सच्चाई रहे और इसके लिए शपथ का प्रारूप निम्नानुसार होना चाहिए - " मैं ईश्वर के नाम पर शपथ लेता / लेती हूँ कि मैं जो कुछ कहूंगा / कहूँगी अथवा करूँगा / करुँगी वह केवल और केवल मेरे और मेरे परिवार के हित के लिये होगा ( देश, समाज और मानवता जायें गुइयाँ के खेत में )।"

आखिर कब तक...?

 प्रिय संपादक जी,   हर बात को इतनी गंभीरता से क्यों लेते हैं आप? जब आप जानते हैं कि हमारे यहाँ सांप निकलने के बाद लाठी पीटी जाती है तो मान भी लीजिये न कि ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होता रहेगा। आप भी नेताओं की तरह से अपनी चमड़ी मोटी क्यों नहीं कर लेते?  गृह मंत्रालय यदि दावा करता रहा है कि बिना इज़ाज़त परिन्दा भी पर नहीं मार सकता तो उसका दावा ग़लत कहाँ है? परिन्दों ने तो वाकई कोई आतंकी वारदात नहीं की, वारदात करने वाले तो वह नामाकूल विदेशी इन्सान थे। अलावा इसके यदि गृहमंत्री जी ने यह कहा कि अगर पडोसी देश के वहां से एक भी गोली चली तो हम अपनी गोलियाँ नहीं गिनेंगे, तो इसमें भी ग़लत क्या कहा है? अरे भाई, हम अपनी तरफ से आगे बढ़कर गोली चलाएंगे तो ही तो गिनेंगे न! हमें तो दुनिया में अपने -आप को अच्छा साबित करना है सो यही कोशिश करे जा रहे हैं...।  रहा सवाल शहीदों का तो हमारे यहाँ शहीद होने के लिए जवानों की क्या कमी है, हमारी जनसंख्या के हिसाब से तो चिंता की ज़रुरत ही नहीं है। हमारे एक-एक नेता के लुभावने भाषणों से हजारों जवान अपने प्राण न्यौछावर करने आगे बढे चले आते हैं। बाद में उनके निर्जीव शरीरों

क्या अपराध है इनका ?

   अभी हाल की खबर है कि चिली के एक चिड़ियाघर में एक जाहिल व्यक्ति आत्महत्या के इरादे से शेरों के बाड़े में कूद पड़ा। आसपास के लोगों ने देखा और शोर मच गया। आनन-फानन में रक्षक-दल वहां आया और उस व्यक्ति को बचाने का अन्य कोई चारा न देख दो शेरों को गोली मार दी। एक निकम्मे इन्सान को बचाया गया निरपराध जानवरों की जान की कीमत पर।      एक अन्य घटना में अमेरिका के सिनसिनाटी शहर के एक चिड़ियाघर में एक चार वर्षीय बच्चा उत्सुकतावश सुरक्षा-बाड़ से सप्रयास निकलकर गोरिल्ला के बाड़े में पानी में गिर गया। वहां मौज़ूद नर गोरिल्ला 'हराम्बे' बच्चे को पकड़ कर पानी में खेलने लगा। यद्यपि गोरिल्ला का बच्चे पर आक्रमण करने का कोई इरादा नज़र नहीं आ रहा था, तथापि खतरे की सम्भावना मानकर गोरिल्ला को गोली मार दी गई।       यहाँ 1986 की ऐसी ही एक घटना का विवरण देना असामयिक नहीं होगा जिसमें अपने बाड़े में गिरे एक बच्चे को एक गोरिल्ला ने संरक्षण देकर सुरक्षित रखा था तथा उसके बाद अभिभावकों व जन्तुशाला-कर्मियों ने बच्चे को सुरक्षित बाहर निकाल लिया था। स्पष्टतः गोरिल्ला शान्त स्वभाव का प्राणी है बशर्ते कि उसे उकसाय

नैनीताल हाईकोर्ट का अभूतपूर्व निर्णय...

नैनीताल हाईकोर्ट का अभूतपूर्व निर्णय...अभिवादन/सलाम/सैल्यूट!.... कहीं ख़ुशी, कहीं गम! देखना यह है कि किसकी ख़ुशी की उम्र लम्बी होगी। फिलहाल इस निर्णय को कोई भी अपनी हार या जीत मानता है तो वह उसकी नादानी है।...पर जीत तो अवश्य हुई है, जीत हुई है न्यायपालिका की, जीता है न्याय! प्रजातान्त्रिक ढंग से चुनी हुई राज्य-सरकारों को सत्ता की भूख के चलते सत्ता के अहंकार ने पहले भी कई बार धराशायी किया है। इस कुटिल संस्कृति की जनक यही पार्टी 'कॉंग्रेस' है जो अब अपने ही पनपाये भस्मासुर के द्वारा स्वयं जलने चली थी। अब उत्तराखण्ड में शासन किसका होगा- यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण वह है जो अब तक हुआ है। काश! पहले ही किसी न्यायपालिका ने अपना यह रौद्र रूप दिखा दिया होता तो प्रजातन्त्र के साथ यों खिलवाड़ तो नहीं होता रहता। देर-आयद, दुरुस्त आयद! अन्ततः न्यायपालिका रूपी हनुमान ने अपनी सुषुप्त शक्ति को जगा लिया है।

लो... निकल गया वह

   लो... निकल गया वह      थानेदार की गश्त के दौरान एक चोर ने जमकर चोरी की। थानेदार का तबादला हो गया और नया थानेदार आया। जनता, मीडिया, आदि ने नए थानेदार को सूचना दी। नया थानेदार मुँह फेरकर खड़ा हो गया और चोर भाग गया। लोग तो लोग हैं, पानी पी-पी कर अगले-पिछले दोनों थानेदारों को गालियां दे रहे हैं।     हमें जहाँ तक जानकारी है चोर न तो तैरना-उड़ना जानता था (उड़ाता ज़रूर था) और न ही मिस्टर इण्डिया था, तो भाई, ज़रूर जमीन में सुरंग खोदकर भागा होगा वह। तो ..... तो भाइयों! अब तो लकीर पीटते रहिये, सांप तो निकल चुका है।    ...... श्श्श्श! ...  सुना है चोर की दोनों थानेदारों के साथ अच्छी घुटती थी।    छोड़िये न, अभी तो ऐसे कई चोर मौज़ूद हैं ..... उन्हें हम भी देख रहे हैं और थानेदार भी। 

आरक्षण रूपी दानव

 आरक्षण-व्यवस्था को संविधान में स्थान मिलने का गुणगान लोग, विशेषकर सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ भले ही करते हों, मैं तो इसे बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल मानता हूँ। उद्देश्य कितना ही अच्छा क्यों न रहा हो, तब की यह नादान भूल आज देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गई है। इस व्यवस्था का लाभ शुरुआत में अजा-अजजा वर्गों के लोगों को तो मिल ही रहा था, धीरे-धीरे अन्य वर्गों की जीभ भी लपलपाने लगी इस शहद के छत्ते को पाने के लिए। सत्तासीन सरकारों की सीमाओं और जनता की सुविधा-असुविधा के विवेक को अनदेखा कर समय-समय पर भारतीय समाज के कुछ अन्य वर्गों ने भी अपने-अपने लिए आरक्षण की न केवल मांग की, अपितु इसे प्राप्त करने के लिए किये गए आन्दोलन को जन-बल के आधार पर अराजक और हिंसक रूप देने में भी कोई संकोच नहीं किया। आरक्षण के लिए गुर्जरों के द्वारा हिंसक आन्दोलन किये जाने के बाद पटेलों द्वारा और अब जाटों के द्वारा यह पुनीत कार्य किया गया। हद तो यह हो रही है कि कर्फ्यू के दौरान आधी रात को लोगों के घरों में घुस कर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ भी इनके आंदोलन का हिस्सा बन गई थी। पशुता की पराकाष्ठा तो यहाँ तक हो गई कि आन्दोलनकारियों में

यह जहरीले संपोले ...

      नहीं होते कुछ लोग सहानुभूति के क़ाबिल, दया के क़ाबिल। बांग्ला देश को पूर्वी पाकिस्तान ही रहने देना चाहिए था भूखा और नंगा। भूल गया यह कृतघ्न देश हमारी मेहर, भूल गया कि उसकी आज़ादी के लिए हमें क्या क़ीमत चुकानी पड़ी थी। क्या थोड़ा भी हमारे प्रति वफादार रह सका यह नामाकूल देश ? हुक्मरान तो चलो मानते हैं कि सियासत के खेल में बेग़ैरत हो जाते हैं (कोई भी देश इससे अछूता नहीं, हमारा देश भी नहीं), लेकिन अवाम ? उसमें तो कुछ शर्मो-हया होनी चाहिए न ?     बात कर रहा हूँ क्रिकेट के खेल की। अभी कल ही एशिया-कप के फाइनल में भारत के हाथों चित्त हुए बांग्ला देश के एक सिरफिरे ने इस फ़ाइनल मैच के कुछ पहले ट्वीट करते हुए इस तरह दिखाया कि भारतीय कप्तान धोनी के कटे सिर को उसने अपने हाथ में ले रखा है। हार-जीत को खेल-भावना से लिया जाना चाहिए लेकिन इस बात को सामान्य व्यक्ति ही नहीं, कई बार तो खिलाड़ी भी भूल जाते हैं- यह सच है, किन्तु इस तरह का विष-वमन करने का काम तो दुश्मन ही कर सकते हैं। बांग्ला देश को आज़ाद करा के हमने पड़ोस में दूसरा दुश्मन पैदा कर लिया है।