नैनीताल हाईकोर्ट का अभूतपूर्व निर्णय...अभिवादन/सलाम/सैल्यूट!....
कहीं ख़ुशी, कहीं गम! देखना यह है कि किसकी ख़ुशी की उम्र लम्बी होगी। फिलहाल इस निर्णय को कोई भी अपनी हार या जीत मानता है तो वह उसकी नादानी है।...पर जीत तो अवश्य हुई है, जीत हुई है न्यायपालिका की, जीता है न्याय! प्रजातान्त्रिक ढंग से चुनी हुई राज्य-सरकारों को सत्ता की भूख के चलते सत्ता के अहंकार ने पहले भी कई बार धराशायी किया है। इस कुटिल संस्कृति की जनक यही पार्टी 'कॉंग्रेस' है जो अब अपने ही पनपाये भस्मासुर के द्वारा स्वयं जलने चली थी। अब उत्तराखण्ड में शासन किसका होगा- यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण वह है जो अब तक हुआ है।
काश! पहले ही किसी न्यायपालिका ने अपना यह रौद्र रूप दिखा दिया होता तो प्रजातन्त्र के साथ यों खिलवाड़ तो नहीं होता रहता। देर-आयद, दुरुस्त आयद! अन्ततः न्यायपालिका रूपी हनुमान ने अपनी सुषुप्त शक्ति को जगा लिया है।
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