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ख़्वाब / हकीकत (प्रहसन)

   मैं भी न दोस्तों, कैसे-कैसे अजीब सपने देखने लगा हूँ! कल सपने में मैं आह-आह पार्टी में था और वाह-वाह पार्टी को भला-बुरा कह रहा था। आज के सपने में देखा कि वाह-वाह पार्टी में शामिल हो कर आह-आह पार्टी को गालियाँ दे रहा हूँ 🙂🙃।

CAA के विरोध का औचित्य?

         भारत के बाहर विदेशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्ला देश) में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग (गैर मुस्लिम) वहां की सरकारों व मुस्लिम जनता के द्वारा लगातार प्रताड़ित किये जाते रहे हैं। अपने धर्म, अपनी अस्मिता, अपनी सम्पत्ति और यहाँ तक कि अपने आस्तित्व की रक्षा कर पाना उनके लिए दूभर हो रहा है। ऐसी स्थिति में, जिनसे बन पड़ा, उन देशों से भाग कर भारत में आ गए और वर्षों से यहाँ शरणार्थी का जीवन जीते रहे हैं। उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिल सकी थी। वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाई और ऐसे लोगों को एक सम्मानजनक व निर्भीक जीवन जी सकने का मार्ग प्रशस्त किया एवं तदर्थ दिसम्बर सन् 2019 में 'नागरिकता (संशोधन) अधिनियम' (CAA) बनाया, जिसे दि. 12 दिसम्बर, 2019 को राष्ट्रपति ने भी मान्यता दे दी। विभिन्न विचारधाराओं एवं राजनैतिक विरोधियों की प्रतिरोधात्मक अभिवृत्ति से जूझने के बाद अन्ततः दि. 11 मार्च, 2024 को अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया।  अभी भी कुछ लोग व राजनैतिक दल CAA लागू होने को अपनी पराजय मान कर छटपटा रहे हैं

केन्द्र सरकार से गुज़ारिश

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के अनुसार उन्हें इस दीपावली पर एक अनूठा विचार आया और उस विचार के आधार पर उन्होंने केन्द्र सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि भारतीय मुद्रा (नोट) के एक ओर गाँधी जी की तस्वीर यथावत रखते हुए दूसरी ओर भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की तस्वीर छपवाई जाए, ताकि देवी देवताओं का आशीर्वाद देश को प्राप्त हो (देश के लिए आशीर्वाद चाहते हैं या स्वयं के लिए, यह तो सभी जानते हैं 😉 )। इसके बाद आरजेडी दल की तरफ से एक प्रस्ताव आया कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर और दूसरी तरफ लालू यादव व कर्पूरी ठाकुर की तस्वीरें छपवाई जाएँ, ताकि डॉलर के मुकाबले रुपया ऊँचा उठे और देश का विकास हो (यानी कि अधिकतम मुद्रा चारा खरीदने के काम आए 😉 )। अब जब इस तरह के प्रस्ताव आये हैं, तो मेरी भी केन्द्र सरकार से गुज़ारिश है कि मुद्रा (नोट) के एक तरफ गाँधी जी की तस्वीर तो यथावत रहे, किन्तु दूसरी तरफ मेरी तस्वीर छपवाई जाए, क्योंकि मेरी सूरत भी खराब तो नहीं ही है। मेरी दावेदारी का एक मज़बूत पक्ष यह भी है कि कल रात मुझे जो सपना आया, उसके अनुसार मैं पिछले जन्म में एक समर्पित स्वतंत्रता सैनानी था

सज्जनता का दण्ड (कहानी)

(1) हिन्द-पाक सीमा पर चौकी नं. CZ 3, संध्या-काल — सांझ का धुंधलका गहरा रहा था। स. उप निरीक्षक रामपाल सिंह एवं हैड कॉन्स्टेबल अब्दुल हनीफ़ पांच सिपाहियों के साथ इस महत्वपूर्ण चौकी पर तैनात थे। इस क्षेत्र में सीमा पर तार की बाड़बंदी नहीं थी। तीन सिपाहियों को इमर्जेन्सी के कारण एक अन्य चौकी पर भेजा गया था। इस समय चौकी पर रामपाल व हनीफ़ के अलावा केवल दो सिपाही थे। एक सिपाही खाना बना रहा था तथा हनीफ़ एक सिपाही के साथ चौकी के बाहर चारपाई पर बैठा था। आज शाम की गश्त रामपाल के जिम्मे थी, अतः वह गश्त पर बाहर निकला था। दिन के समय पाक सैनिकों के इधर आने की सम्भावना कम थी, जबकि रात होते-होते उनके द्वारा घुसपैठ किये जाने की सम्भावना बढ़ जाती थी। यह इलाका घने वृक्षों व झाड़ियों से आच्छादित था, जिन के पार देख पाना दिन में भी कठिन हुआ करता था, जबकि इस समय तो कुछ भी दिखाई देना असंभव के समान था। रामपाल अपने साथियों व अफसरों की निगाहों में निहायत ही विश्वसनीय व होशियार मुलाजिम था। सभी लोग उसकी बहादुरी के साथ ही उसकी श्रवण-शक्ति व तीव्र दृष्टि का लोहा मानते थे।  वीरानी के सन्नाटे को चीरती हुई झींगुरों की आवाज़ वा

'हिन्दी दिवस' (लघु कविता)

हिन्दी भाषा की जो आन-बान है,  किसी और की कब हो सकती है!   मेरे देश को परिभाषित करती,   हिन्दी तो स्वयं मां सरस्वती है। *****

हकीकत तो यह है...

                                                                     हम स्वयं को इस बात का दिलासा कतई नहीं दे सकते कि हमारे तो 23 सैनिक ही शहीद हुए हैं जबकि उधर 43 चीनी सैनिक हताहत हुए हैं, क्योंकि एक बहादुर इन्सान की मौत के मुकाबले हज़ारों कीड़े-मकोड़ों की मौत भी कोई मायने नहीं रखती।

'नई चुनौती'

                                                                  अभी-अभी की ताज़ा खबर है कि लद्दाख में भारतीय व चीनी सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया के दौरान हुई एक झड़प में हमारी सेना का एक अफ़सर तथा दो सैनिक शहीद हो गये हैं। एक ओर दोनों देशों के फौजी उच्चाधिकारियों के मध्य स्थिति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया के लिए बातचीत हो रही है वहीं दूसरी ओर लद्दाख में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना होना चिंता का विषय है।    हमारा शान्तिप्रिय देश जहाँ एक ओर कोरोना के कारण उत्पन्न हुई विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है तो दूसरी ओर सीमाओं पर विस्तारवादी चीन और आतंकपोषी पाकिस्तान जैसे कुटिल दुश्मनों के साथ एक नया नाम नेपाल का भी जुड़ गया है। वह नेपाल, जिसकी संस्कृति हमारे देश के अधिक निकट की रही है, गुमराह हो कर सम्भवतः चीन की शह पर ही हमें आँखें दिखाने लगा है।    स्थिति गम्भीर होती जा रही है। हमने देश के तीन सपूतों को खो दिया है। राजनैतिक स्तर पर हमारी सरकार व सीमा पर डटी हमारी बहादुर सेना, दोनों ही, स्थिति के समाधान के लिए मोर्चे पर डटी हुई हैं। अब हमें अपने स्तर पर यह सोचना चाहिए कि हम अपनी

कश्मीरियत सुरक्षित रहे - 'एक चिन्तन'

                                                 हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित धारा 370 को समाप्त/अप्रभावी किये जाने के विषय पर साहसिक निर्णय ले ही लिया। दिनांक 5 अगस्त, 2019 को  देश की जनता की चिरप्रतीक्षित साध पूरी हुई। कुछ मंद-बुद्धि व भ्रमित या यूँ कहें कि निहित स्वार्थ से ग्रसित व्यक्तियों के अलावा भारत देश के हर शहर, हर गाँव में समस्त जन-समुदाय ख़ुशी से चहक रहा था, सब का चेहरा गर्व और सन्तोष की आभा से दसमक रहा था। अन्ततः पुरानी, परिस्थितिजन्य भूल का परिमार्जन हो गया व जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के दूषित बन्धन से मुक्त कर उससे लद्दाख को पृथक किया गया तथा दोनों को केन्द्र-शासित राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा गया जो राज्य-सभा में उसी दिन पारित हो गया। कल लोक-सभा में भी इसे बहस के बाद पारित कर दिया गया तथा राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर के बाद वैधानिक रूप से मान्य हो गया है।      धारा 370 के प्रभावी रहते देश के जम्मू-कश्मीर राज्य को कुछ ऐसी शक्तियाँ मिली हुई थीं कि भारत का राज्य होते हुए भी भारतीय संविधान के कई प्रावधान वहाँ अ

डायरी के पन्नों से..."मेरे आँगन में धूप नहीं आती..."

     समर्पित है मेरी यह कविता, CRPF के उन वीर जवानों को जो पुलवामा (कश्मीर) में  कुछ गद्दारों व आतंककारियों के कुचक्र की चपेट में आकर  काल-कवलित हो गये , जो चले गए यह कसक लेकर कि काश, जाने से पहले दस गुना पापियों को ऊपर पहुँचा पाते ! 'मेरे आँगन में धूप नहीं आती...'     मेरे आँगन के छोटे-बड़े पौधे जिन्हें लगाया है पल्लवित किया है  मेरे परिवार ने, बड़े जतन से, जो दे रहे हैं  मुझे जीवन। चिन्ताविहीन हूँ  कि वह जी रहे हैं  मेरे लिए।  वह जी रहे हैं मेरे लिए, पर उन्हें भी तो चाहिए  मेरा  प्यार, दुलार  और संरक्षण।  मैं नहीं दे रहा जो उन्हें चाहिए                मुझे तो   बस उन्हीं से चाहिए,                              अपेक्षा है  तो उन्हीं से।  अपनी पंगुता पर, अपनी विवशता पर झुंझलाता हूँ जब, तो  दोषी ठहराता हूँ  दूर गगन के  बादलों को।  हाँ,  दोषी हैं वह भी, ढँक लेते हैं  सूरज को और  नहीं मिल पाती धूप, मेरे आँगन के पौधों को।  कुम्हला जाते हैं मेरे पौधे, गिर जाते हैं कभी-कभी  सूख कर धरती पर। मेरी नज़र

डायरी के पन्नों से ... "चुनावी मौसम आ रहा है..."

चुनाव से पहले एक बार फिर सावधान करता हूँ दोस्तों!  दस  आगे,  दस  पीछे  लेकर, वह  तुम्हें  रिझाने  आयेंगे।  चिकनी-चुपड़ी बातें कह कर, कुछ सब्ज बाग़ दिखलायेंगे। कौन सही है, कौन छली है, सोच-समझ कर निर्णय करना, भस्मासुर  पैदा  मत   करना, अब  हरि  न  बचाने  आयेंगे।।

डायरी के पन्नों से ... शौर्य-गान- "यह कश्मीर हमारा है"

    देश  के दुश्मनों के विरुद्ध आह्वान है मेरा देश के हर नौनिहाल से, क्योंकि दिन-ब-दिन सीमा पर जान गंवाने वाले शहीदों का लहू मुझे उद्वेलित करता है, मुझे चैन से सोने नहीं देता! समर्पित है उनको मेरी यह कविता- "यह कश्मीर हमारा है" कण-कण से आवाज़ उठी है,    यह कश्मीर हमारा है।। दया दिखाते दुश्मन को पर,  सीना वज्र भयंकर है। हर बच्ची वीर भवानी है, हर बच्चा शिवशंकर है। जितेन्द्रिय है,अविनाशी है, मृत्युंजय,  प्रलयंकर है। हमने उसे उबार लिया है, जिसने हमें पुकारा है।             "कण-कण से... " नहीं कभी हम डिगने वाले, आतंकी  फुफकारों  से। नहीं कभी हम डरने वाले, गोली  की  बौछारों  से। नहीं  कटेंगे वक्ष हमारे, बरछी, तीर, कटारों से। जान लगा देंगेअपनी हम, देश जान से प्यारा है।             "कण-कण से..." कश्मीर को तो भूल ही जा, हम पीओके भी ले लेंगे।  हमारे नन्हे-मुन्ने कल को, लाहौर कबड्डी खेलेंगे।  दिन दूर नहीं जब हम तेरे  चीनी अब्बा को पेलेंगे।  देख हमारी आँखों में अब, दहक रहा अंगारा है।  &q

'हमारा भारत महान'

  अक्सर यह व्यंग्य करते आये हैं लोग कि  '100 में से 99 बेईमान, फिर भी हमारा भारत महान!'- शायद कटु-सत्य है भी यह, लेकिन आज हम सच में ही सगर्व कह सकते हैं - "एशिया में सबसे पहले हमारी मंगल तक सफल उड़ान,  विश्व-गुरु, सबसे न्यारा, 'हमारा भारत महान'।"              वन्दे मातरम् !!!

छोटी-सी गुज़ारिश !

    एक टोकरी में अंगूर, एक टोकरी में आम, एक टोकरी में ताज़ा संतरे और एक टोकरी में मिश्रित फल रखे हुए थे। अंगूरों वाली टोकरी में 40%, आम वाली टोकरी में 70%, संतरों वाली टोकरी में 1 से 2% तथा मिश्रित फलों वाली टोकरी में 95% फल सड़े हुए थे। मैंने अपने एक मित्र से जो काफी सुलझे व्यक्तित्व का मालिक था, पूछा- 'दोस्त, अपने लिए किस टोकरी के फल चुनोगे ?'    मित्र बोला- 'यह कैसा प्रश्न है ? निश्चित ही संतरों वाली टोकरी के।'    मैंने प्रश्न को संशोधित किया- 'लेकिन यदि संतरों वाली या किसी भी अन्य टोकरी के फल तुम्हारी ज़रुरत से कम हों तो क्या करोगे ?'   मित्र ने हँसते हुए जवाब दिया- 'भाई तुम भी यार कुछ बोर्नवीटा वाला दूध पीया करो। कैसा सवाल पूछते हो ? सीधी-सी बात है, 95% सड़े फलों वाली टोकरी को तो हाथ ही नहीं लगाऊंगा और शेष तीनों टोकरियों में से सड़े फलों के अलावा सभी फलों को अपने लिए छांट लूंगा, वेरायटी भी होगी और अलग-अलग स्वाद भी।'     मैं प्रशंसा-भाव से उसकी ओर देखता ही रह गया।    मेरे अच्छे दोस्तों, उपरोक्त वाकये ने मुझे कुछ सोचने को मजबूर कर दिया। आज के राजन

बेशर्मी का यह दौर.…

 अपराधियों और दागियों को लोकसभा के टिकट दिए जा रहे हैं। राजनैतिक दल हद-दर्जे के निर्लज्ज होते जा रहे हैं, इन्हें जिताऊ उम्मीदवार चाहिए चाहे वह खूनी या बलात्कारी ही क्यों न हो। जिस विपक्षी पार्टी को पानी पी-पी कर कोसते हैं उसी से आये भगोड़ों को अपने में आत्मसात करने में कोई शर्म-झिझक नहीं। जनता को ठेंगे पर रखते हैं, बेवकूफ समझते हैं यह लोग। बहुत हो गया.....अब जनता को ही पहचाननी है इनकी असलियत। फिर भी...फिर भी अगर ऐसे लोगों को वोट जनता ने दिया तो उसे भुगतना ही होगा अगले पांच वर्षों तक.…और.…और.....जारी रहेगा यह सिलसिला आगे भी , ऐसे ही.… 

मंत्री जी की आपत्तिजनक टिप्पणी

  राजस्थान के जनजाति विकास मंत्री नन्दलाल मीणा के द्वारा ब्राम्हण-बनियों के विरुद्ध की गई अनर्गल टिपण्णी से दोनों वर्गों में जबर्दस्त आक्रोश है। स्वयं की नहीं तो कम से कम अपने संवैधानिक पद की गरिमा का तो ध्यान उन्हें रखना ही चाहिए था। जाट व क्षत्रिय समाज का साथ इस मुद्दे पर ब्राम्हण-बनिया वर्ग को नहीं मिल रहा है, आश्चर्य है। क्षत्रिय समाज को सिद्धांत और नैतिकता के इस गम्भीर विषय पर चिन्तन करना चाहिए और समझना चाहिए कि क्यों नन्दलाल मीणा ने अपने विष-वमन में क्षत्रियों का नाम नहीं उछाला। शायद मीणा जी ने जाटों व क्षत्रियों को इसलिए नहीं लपेटा क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री राजे जी का लिहाज आड़े आ गया होगा।     इस विषय में प्रबुद्ध मीणा बंधुओं से भी मेरी अपेक्षा है कि हिन्दू-समाज को तोड़ने वाली नंदलाल मीणा के द्व्रारा की गई टिप्पणी के विरुद्ध आवाज़ उठाकर राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने में भागीदार बनें। 

अपनी क्षमता को पहचानें....

   जब कोई कांटा अपने पांव में चुभता है तो हमसे दर्द बर्दाश्त नहीं होता, फिर हम किसी और की राह में कांटे क्यों बिछाते हैं। राजस्थान की मुख्यमंत्री कहती हैं कि जो काम 66 वर्षों में नहीं हुए उन कामों को 66 दिनों में पूरा करने की उम्मीद उनसे क्यों की जा रही है ? बात बिलकुल सही है, लेकिन इसमें थोड़ी सी विसंगति यह है कि अकेली कॉन्ग्रेस का शासन 66 वर्षों तक न तो देश में, न ही राजस्थान में रहा है। गत 66 वर्षों में से कुछ वर्ष बीजेपी के हिस्से में भी तो आये हैं, इसे क्यों भूला जाए ?     अब दिल्ली की बात की जाय। दिल्ली में 'AAP' के शासन की आलोचना दोनों विपक्षी दल किस आधार पर कर रहे थे, जबकि चारों ओर से घेरे जाने के बावज़ूद उनका 49 दिनों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा-पूरा है।  उनकी सादगी का अनुकरण कर अन्य राज्यों की सरकारों ने भी अपना दामन पाक-साफ़ करने का प्रयास किया है। विपक्ष तो विपक्ष, कॉन्ग्रेस भी समर्थन देने के बावज़ूद पूरी तरह से विपक्षी दल की भूमिका ही निभा रही थी। यहाँ तक कि जनता के हितार्थ लाया जाने वाला 'जनलोकपाल बिल' भी स्वार्थ और दूषित मनोवृत्ति की भेंट चढ़ गया। 'A

अच्छी राजनीति ग्राह्य क्यों नहीं ?

  मैं समझ नहीं पा रहा कि किसी नए नेता या पार्टी का उदय लोग पचा क्यों नहीं पाते। क्यों पहले से जमे हुए राजनेता किसी नये को उभरने  देना नहीं चाहते ? क्या राजनीति और सत्ता केवल पूर्व में स्थापित कुछ नेताओं की बपौती है ? 'AAP' का अभ्युदय हुए कुछ ही दिन हुए हैं, उन्हें सत्ता पर काबिज़ हुए भी बमुश्किल दो सप्ताह हुए हैं और उनके काम-काज की आलोचना कुछ विघ्न-संतोषी इस तरह कर रहे हैं जैसे कि इस पार्टी को काम करते हुए चार-पांच साल हो गए हों। जो कुछ केजरीवाल जी की इस सेना ने किया है उसका दशांश भी तो पूर्व की दिल्ली-सरकार और अन्य हालिया चयनित सरकारें नहीं कर पाई हैं अब तक। शायद उनकी अकर्मण्यता का यही बोझ उनके अनुयायियों को अनर्गल प्रलाप के लिए प्रेरित कर रहा है। 'AAP' के कार्यालय पर कुछ अराजक तत्वों द्वारा आक्रमण तथा अमेठी में डॉ. कुमार विश्वास के साथ किया गया दुर्व्यवहार इसका ज्वलंत उदाररण हैं।   एक नये उत्साह और कुछ कर गुजरने की तमन्ना लेकर आये इन नौजवानों को कुछ करने का अवसर तो दो मित्रों ! यदि यह लोग भी निराश करते हैं तो जनता के पास शक्ति है न इन्हें भी उखाड़ फेंकने की। स्वस्थ