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ख़्वाब / हकीकत (प्रहसन)

   मैं भी न दोस्तों, कैसे-कैसे अजीब सपने देखने लगा हूँ! कल सपने में मैं आह-आह पार्टी में था और वाह-वाह पार्टी को भला-बुरा कह रहा था। आज के सपने में देखा कि वाह-वाह पार्टी में शामिल हो कर आह-आह पार्टी को गालियाँ दे रहा हूँ 🙂🙃।

छलावा (कहानी)

  प्रवेश की सुगमता की दृष्टि से शहर का ‘गवर्नमेंट कॉलेज’ विद्यार्थियों की पहली पसंद था। समृद्ध पृष्ठभूमि की लड़की धर्मिष्ठा उस कॉलेज में फाइनल ईयर आर्ट्स में पढ़ती थी। पढाई में तो वह ठीक थी ही, सुन्दर भी बहुत थी। बोलती, तो लगता जैसे आवाज़ में मिश्री घुली हो। कॉलेज में सब के आकर्षण का केन्द्र थी वह। कई लड़के उसके दीवाने थे, किन्तु वह उन्हें घास भी नहीं डालती थी। मितभाषी लड़की मधुमिता उसकी विश्वसनीय सहेली थी जिससे वह अपनी हर बात साझा करती थी और सामान्यतः कॉलेज में उसके साथ ही रहती थी। मधुमिता के अलावा प्रायः चार-पाँच सहपाठियों के साथ ही वह मिलती-जुलती थी। इस तरह से बहुत ही छोटी मित्र-मंडली थी उसकी। उसके उन मित्र सहपाठियों में एक शर्मीला लड़का सोमेश भी था, जो पढ़ने में बहुत होशियार था। सुन्दर नहीं, तो बदसूरत भी नहीं कहा जा सकता था उसे। हाँ, एक सुगठित बदन व सौम्य स्वभाव का मालिक अवश्य था वह। कॉलेज में पढाई करते अच्छा वक्त गुज़र रहा था उन सब का।  एक दिन कॉलेज में क्लास ख़त्म होने के बाद सोमेश कॉलेज कम्पाउण्ड में पहुँचा ही था कि उसने अपने पीछे से आती एक सुरीली आवाज़ सुनी- “अकेले-अकेले कहाँ जा रहे हो,

बँटवारा (लघुकथा)

केशव अपने कार्यालय से थका-मांदा घर आया था। पत्नी अभी तक उसकी किटी पार्टी से नहीं लौटी थी। बच्चे भी घर पर नहीं थे। चाय पीने का बहुत मन था उसका, किन्तु हिम्मत नहीं हुई कि खुद चाय बना कर पी ले। मेज पर अपना मोबाइल रख कर वहाँ पड़ी एक पत्रिका उठा कर ड्रॉइंग रूम में ही आराम कुर्सी पर बैठ गया और बेमन से पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। एक छोटी-सी कहानी पर उसकी नज़र पड़ी, तो उसे पढ़ने लगा। एक परिवार के छोटे-छोटे भाई-बहनों की कहानी थी वह। कुछ पंक्तियाँ पढ़ कर ही उसका मन भीग-सा गया। बचपन की स्मृतियाँ मस्तिष्क में उभरने लगीं।   'मैं और छोटा भाई माधव एक-दूसरे से कितना प्यार करते थे? कितनी ही बार आपस में झगड़ भी लेते थे, किन्तु किसी तीसरे की इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि दोनों में से किसी के साथ चूँ भी कर जाए। दोनों भाई कभी आपस में एक-दूसरे के हिस्से की चीज़ में से कुछ भाग हथिया लेते तो कभी अपना हिस्सा भी ख़ुशी-ख़ुशी दे देते थे। ... और आज! आज हम एक-दूसरे को आँखों देखा नहीं सुहाते। दोनों की पत्नियों के आपसी झगड़ों से परिवार टूट गया। दो वर्ष हो गये, माधव पापा के साथ रहता है और मैं उनसे अलग। पापा के साथ काम करते रह

सज्जनता का दण्ड (कहानी)

(1) हिन्द-पाक सीमा पर चौकी नं. CZ 3, संध्या-काल — सांझ का धुंधलका गहरा रहा था। स. उप निरीक्षक रामपाल सिंह एवं हैड कॉन्स्टेबल अब्दुल हनीफ़ पांच सिपाहियों के साथ इस महत्वपूर्ण चौकी पर तैनात थे। इस क्षेत्र में सीमा पर तार की बाड़बंदी नहीं थी। तीन सिपाहियों को इमर्जेन्सी के कारण एक अन्य चौकी पर भेजा गया था। इस समय चौकी पर रामपाल व हनीफ़ के अलावा केवल दो सिपाही थे। एक सिपाही खाना बना रहा था तथा हनीफ़ एक सिपाही के साथ चौकी के बाहर चारपाई पर बैठा था। आज शाम की गश्त रामपाल के जिम्मे थी, अतः वह गश्त पर बाहर निकला था। दिन के समय पाक सैनिकों के इधर आने की सम्भावना कम थी, जबकि रात होते-होते उनके द्वारा घुसपैठ किये जाने की सम्भावना बढ़ जाती थी। यह इलाका घने वृक्षों व झाड़ियों से आच्छादित था, जिन के पार देख पाना दिन में भी कठिन हुआ करता था, जबकि इस समय तो कुछ भी दिखाई देना असंभव के समान था। रामपाल अपने साथियों व अफसरों की निगाहों में निहायत ही विश्वसनीय व होशियार मुलाजिम था। सभी लोग उसकी बहादुरी के साथ ही उसकी श्रवण-शक्ति व तीव्र दृष्टि का लोहा मानते थे।  वीरानी के सन्नाटे को चीरती हुई झींगुरों की आवाज़ वा