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धर्मनिरपेक्षता - एक आवरण (उद्बोधन)



हम सब जानते हैं कि लगभग चार सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन विधर्मी शासकों के द्वारा भारत के कई हिंदुओं का बलपूर्वक धर्मांतरण करवाया गया था। परिणामतः कई लोगों ने भयवश धर्म बदल लिया, लेकिन कई धर्मप्राण, दृढ़प्रतिज्ञ हिन्दुओं ने भीषण अत्याचार सह कर भी अपने धर्म की रक्षा की। कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने धर्म तो मन ही मन बदल लिया, किन्तु न तो अपने नाम बदले और न ही अपना रहन-सहन। हाँ, उनकी मानसिकता अवश्य विधर्मी हो गई। पीढ़ियाँ गुज़र गईं, लेकिन वह मानसिकता अब भी ज़िन्दा है। 

कालान्तर में यह अवसरवादी लोग स्वयं को प्रगतिशील व आदर्श मानने लगे और धर्मनिरपेक्ष कहलाने में गर्व महसूस करने लगे। 

धर्मनिरपेक्षता वस्तुतः एक सात्विक आचरण का नाम है, किन्तु दुर्भाग्यवश अवसरवादी धर्मनिरपेक्षता अपना विकृत रूप लिए राजनीति में भी समाविष्ट हो गई है। 

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