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'हिन्दी दिवस' (लघु कविता)



हिन्दी भाषा की जो आन-बान है, 

किसी और की कब हो सकती है!

  मेरे देश को परिभाषित करती,

  हिन्दी तो स्वयं मां सरस्वती है।



*****

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 सितंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    उत्तर
    1. "पांच लिंकों का आनन्द" के पटल पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार भाई रवीन्द्र जी! मैं अवश्य उपस्थित होऊँगा

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-09-2022) को  "भंग हो गये सारे मानक"   (चर्चा अंक 4554)  पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

    जवाब देंहटाएं
  3. चर्चा मंच के पटल पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार डॉ. शास्त्री जी! मैं अवश्यमेव उपस्थित होऊँगा

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह! गागर में सागर भर दिया है। इन चंद पंक्तियों में हिंदी के प्रति प्रेम और भक्ति झलक रही है

    जवाब देंहटाएं
  5. सच कहा सर आपने।
    बहुत ही सुंदर भाव।
    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  6. हिंदी के प्रति अप्रतिम भाव ।

    जवाब देंहटाएं
  7. भावप्रवण सुंदर लघु रचना।

    जवाब देंहटाएं
  8. हिन्दी तो स्वयं मां सरस्वती है ... बहुत खूब.

    जवाब देंहटाएं

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