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'हिन्दी भाषा' (कविता)




हिंदी भाषा 



हिन्दी भाषा की जो आन-बान है, 
किसी और की कब हो सकती है!
मेरे देश को परिभाषित करती,
हिन्दी तो स्वयं माँ सरस्वती है।



अपनी उपरोक्त छोटी-सी रचना से प्रारम्भ कर के मैं हमारी मातृभाषा हिन्दी के सम्मान में कुछ और भी कहूँगा -

मेरे देश के कुछ अहिन्दीभाषी क्षेत्रों में किसी हिन्दीभाषी व्यक्ति को ढूंढ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है, जबकि हिन्दी हमारी मातृभाषा है। पूर्णतः वैज्ञानिक, तार्किक एवं साहित्यिक समृद्धि से परिपूर्ण हमारी हिंदी भाषा हमारे ही देश में इस तरह तिरस्कृत हो रही है, इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? वहीं, यह बात कुछ सांत्वना देने वाली है कि 'हिन्दी' के प्रति रुझान बढ़ाने हेतु इसके प्रचार-प्रसार का उच्चतम प्रयास सरकारी स्तर पर किया गया है।


'हिन्दी-दिवस' के पावन अवसर पर रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, अजमेर में अध्ययन के प्रारम्भिक काल में मेरे द्वारा लिखी गई कविता ---


     
    


                    
                                                                  
 सिमटी-सी वह खड़ी धरा पर

                  मानो  चाँद  उतर आया।

       पतझड़  मानो  बीत  चला हो,

                  नया बसंत निखर आया।

      या  ऊषा   ने   ली   अंगडाई,

                  नया प्रभात उभर आया।

     नदिया कोई  उमड़  पड़ी या

                  झरना  कोई  झर आया।

     परी  एक  उतरी  नभ से  या

                 कण-कण ने सौरभ पाया।

      या फूल  बाग़ में  महक उठे,

                 प्यार पराग  बिखर आया।

                                                       जैसे  कोई  निबिड़ तमस में,

                 दीपक  एक  नज़र आया।

      या  कोई फूलों  में  छुप कर,

                  धीमे - धीमे      मुस्काया।

       छवि अंकित है मन में इसकी,

                 मैं अभिनन्दन करता हूँ।

      चित्र लिए पलकों में प्रतिपल,

                   इसका वन्दन  करता हूँ।

      माँ  इसकी  देवों  की  भाषा,

                   यह जननी सारे जग की।

     और   सभी    भाषाएँ   ऐसी,

                  'खग जाने भाषा खग की'।

      इसके  खातिर  ही  जीने की

                  और मरण की अभिलाषा।

      नारी  की  तस्वीर नहीं  यह,

                   है   मेरी   हिन्दी   भाषा।

   
              ******* 

Comments

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 सितंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    ReplyDelete
    Replies
    1. "पांच लिंकों का आनन्द" के पटल पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार भाई रवीन्द्र जी! मैं अवश्य उपस्थित होऊँगा

      Delete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-09-2022) को  "भंग हो गये सारे मानक"   (चर्चा अंक 4554)  पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शुभा जी!

      Delete
  4. चर्चा मंच के पटल पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार डॉ. शास्त्री जी! मैं अवश्यमेव उपस्थित होऊँगा

    ReplyDelete
  5. वाह! गागर में सागर भर दिया है। इन चंद पंक्तियों में हिंदी के प्रति प्रेम और भक्ति झलक रही है

    ReplyDelete
  6. सच कहा सर आपने।
    बहुत ही सुंदर भाव।
    सादर प्रणाम

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रणाम आ. अनीता जी... आभार!

      Delete
  7. हिंदी के प्रति अप्रतिम भाव ।

    ReplyDelete
  8. भावप्रवण सुंदर लघु रचना।

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  9. हिन्दी तो स्वयं मां सरस्वती है ... बहुत खूब.

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  10. वाह !!!
    बहुत लाजवाब।

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सुंदर भाव...

    ReplyDelete

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