“अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी। “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया। “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 सितंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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"पांच लिंकों का आनन्द" के पटल पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार भाई रवीन्द्र जी! मैं अवश्य उपस्थित होऊँगा
हटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंआभार महोदया!
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-09-2022) को "भंग हो गये सारे मानक" (चर्चा अंक 4554) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद शुभा जी!
हटाएंचर्चा मंच के पटल पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार डॉ. शास्त्री जी! मैं अवश्यमेव उपस्थित होऊँगा
जवाब देंहटाएंवाह! गागर में सागर भर दिया है। इन चंद पंक्तियों में हिंदी के प्रति प्रेम और भक्ति झलक रही है
जवाब देंहटाएंबहुत आभार महोदया!
हटाएंसच कहा सर आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव।
सादर प्रणाम
प्रणाम आ. अनीता जी... आभार!
हटाएंहिंदी के प्रति अप्रतिम भाव ।
जवाब देंहटाएंजी, हार्दिक धन्यवाद!
हटाएंभावप्रवण सुंदर लघु रचना।
जवाब देंहटाएंहिन्दी तो स्वयं मां सरस्वती है ... बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंजी, धन्यवाद!
हटाएंवाह !!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब।
हार्दिक आभार सुधा जी!
हटाएंबहुत ही सुंदर भाव...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी!
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