ऑस्ट्रेलिया-भारत महिला हॉकी मैच!
मैच आज सायं 7. 30 बजे प्रारम्भ हुआ। ऑस्ट्रेलिया ने इकतरफा अंदाज़ में गोल करना शुरू किया- एक...दो...तीन...चार...पाँच और फिर मैच समाप्त होने के कुछ मिनट पहले छठा गोल! निरीह भारतीय टीम बदहवास सी हो उठी थी। केवल तीसरे क्वार्टर में ही हमारी टीम कुछ संघर्ष दिखा सकी थी। पूरे मैच में जैसे ही 'डी' के पास हमारी कोई फॉरवर्ड पहुंचती, या तो विपक्षी द्वारा बॉल छीन ली जाती या उसको सहयोग देने के लिए कोई एकाध साथी खिलाड़ी ही वहां मौज़ूद दिखाई देती थी। सफलता मिलती भी तो कैसे? न तो सही पास देना हमारी खिलाडियों के बस का दिख रहा था और न ही विपक्षी खिलाड़ियों जैसा स्टेमिना ही इनमें था।
छठा गोल होने के बाद मैच की समाप्ति से लगभग 15 सेकण्ड पहले कातर स्वरों में मैं ऑस्ट्रेलियन टीम से कह पड़ा- 'रहम...रहम ! रहम करो हमारी टीम पर, एक गोल तो करने दो हमें अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए !'
और तब जाकर उन्होंने एक गोल करने दिया हमारी टीम को मैच-समाप्ति के 8 सेकण्ड पहले।
अब जाकर टीम इण्डिया के फीके चेहरे पर थकी-थकी मुस्कान की एक रेखा झलकी।
न...न...न.....! सारा दोष खिलाड़ियों को न दें मित्रों ! हमें यह जानने की आवश्यकता है कि इन खिलाड़ियों को ओलम्पियन्स के स्तर का तैयार करने में हमारी सरकार कितनी जागरूक है ? क्या विश्वस्तरीय सही मैदान, सही खुराक और अन्य संसाधन खिलाड़ियों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं ? किसी भी विदेशी खिलाड़ी से कम प्रतिभावान नहीं हैं हमारे खिलाड़ी, लेकिन उत्तरदायी तत्वों का विशालकाय उदर इनके लिए कुछ बचने ही नहीं देता तो क्या किया जाय ?
क्या अनुत्तरित ही रहेंगे यह प्रश्न ?
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