कितना बड़ा कंफ्यूज़न है ! या तो जनता की पाचनशक्ति बहुत ही अच्छी है या फिर अजीर्ण के बाद भी डकार नहीं ले पाने की विवशता है। जनता में से ही बुद्धिजीवी वर्ग से एक अराजनैतिक दल बनाने का प्रावधान क्यों नहीं रखा जा सकता जिसमें से चुना गया एक प्रतिनिधिमण्डल सर्वशक्तिमान राजनेताओं से पूछे कि जनता अपने दिए हुए वोट का खामियाजा कब तक भुगतेगी और उसे भस्मासुर बनने के लिए क्यों प्रेरित किया जा रहा है ?
बात कर कर रहा हूँ मैं प्रधानमंत्री मोदी जी और विपक्षी नेताओं के मध्य चल रहे शीत-युद्ध की। राहुल गाँधी और केजरीवाल जी मोदी जी पर गुजरात के मुख्यमंत्रित्व-काल में करोड़ों के अनैतिक लेनदेन का आरोप लगाते हुए निरंतर प्रहार कर रहे हैं और मोदी जी हैं कि अन्य सभी क्षेत्रों में तो मुखर हैं लेकिन इस मसले पर मौन साधे हुए हैं। प्रश्न यह उठता है कि यदि आरोप सही हैं तो विपक्षी पुख़्ता साक्ष्य एकत्र कर कोर्ट में मोदी जी के विरुद्ध मुकद्दमा क्यों नहीं दायर करते हैं और यदि आरोप मिथ्या हैं तो मोदी जी उन पर मान-हानि का मुकद्दमा क्यों नहीं करते ? ड्रॉ होने देने के लिए घिनौनी राजनीति का यह दूषित खेल कब तक खेला जाता रहेगा ?
राजनीति के प्रति बढ़ती जा रही अश्रद्धा एवं अनास्था को समाप्त कर सम्मान बहाल किया जाना क्या अब ज़रूरी नहीं हो गया है ?
समझ नहीं पा रहा हूँ कि सोशल मीडिया में जो बात-बहादुर अपने-अपने आराध्य को ईश्वर का अवतार मान कर विपक्षी के आराध्य को नारकीय कीड़ा बताने की पुरजोर कोशिश कर अपनी दिमागी गंदगी बिखेरते हैं, सत्यान्वेषण के लिए सोचने की फुर्सत उनके पास क्यों नहीं है ?
कब तक मेरी और मेरे जैसे अन्य लोगों की लेखनी निष्प्राण होती जा रही प्रजातान्त्रिक अवधारणा को देख-देख कर बिलखती रहेगी ...चीखती रहेगी ..... ???
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