सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कितना बड़ा कंफ्यूज़न है !!!



     कितना बड़ा कंफ्यूज़न है ! या तो जनता की पाचनशक्ति बहुत ही अच्छी है या फिर अजीर्ण के बाद भी डकार नहीं ले पाने की विवशता है। जनता में से ही बुद्धिजीवी वर्ग से एक अराजनैतिक दल बनाने का प्रावधान क्यों नहीं रखा जा सकता जिसमें से चुना गया एक प्रतिनिधिमण्डल सर्वशक्तिमान राजनेताओं से पूछे कि जनता अपने दिए हुए वोट का खामियाजा कब तक भुगतेगी और उसे भस्मासुर बनने के लिए क्यों प्रेरित किया जा रहा है ?
     बात कर कर रहा हूँ मैं प्रधानमंत्री मोदी जी और विपक्षी नेताओं के मध्य चल रहे शीत-युद्ध की। राहुल गाँधी और केजरीवाल जी मोदी जी पर गुजरात के मुख्यमंत्रित्व-काल में करोड़ों के अनैतिक लेनदेन का आरोप लगाते हुए निरंतर प्रहार कर रहे हैं और मोदी जी हैं कि अन्य सभी क्षेत्रों में तो मुखर हैं लेकिन इस मसले पर मौन साधे हुए हैं। प्रश्न यह उठता है कि यदि आरोप सही हैं तो विपक्षी पुख़्ता साक्ष्य एकत्र कर कोर्ट में मोदी जी के विरुद्ध मुकद्दमा क्यों नहीं दायर करते हैं और यदि आरोप मिथ्या हैं तो मोदी जी उन पर मान-हानि का मुकद्दमा क्यों नहीं करते ? ड्रॉ होने देने के लिए घिनौनी राजनीति का यह दूषित खेल कब तक खेला जाता रहेगा ?
     राजनीति के प्रति बढ़ती जा रही अश्रद्धा एवं अनास्था को समाप्त कर सम्मान बहाल किया जाना क्या अब ज़रूरी नहीं हो गया है ?
     समझ नहीं पा रहा हूँ कि सोशल मीडिया में जो बात-बहादुर अपने-अपने आराध्य को ईश्वर का अवतार मान कर विपक्षी के आराध्य को नारकीय कीड़ा बताने की पुरजोर कोशिश कर अपनी दिमागी गंदगी बिखेरते हैं, सत्यान्वेषण के लिए सोचने की फुर्सत उनके पास क्यों नहीं है ?
    कब तक मेरी और मेरे जैसे अन्य लोगों की लेखनी निष्प्राण होती जा रही प्रजातान्त्रिक अवधारणा को देख-देख कर बिलखती रहेगी ...चीखती रहेगी ..... ???




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

व्यामोह (कहानी)

                                          (1) पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक छोटा सा, खूबसूरत और मशहूर गांव है ' मलाणा ' । कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र वहीं से मिला था। उस गाँव में दो बहनें, माया और विभा रहती थीं। अपने पिता को अपने बचपन में ही खो चुकी दोनों बहनों को माँ सुनीता ने बहुत लाड़-प्यार से पाला था। आर्थिक रूप से सक्षम परिवार की सदस्य होने के कारण दोनों बहनों को अभी तक किसी भी प्रकार के अभाव से रूबरू नहीं होना पड़ा था। । गाँव में दोनों बहनें सबके आकर्षण का केंद्र थीं। शान्त स्वभाव की अठारह वर्षीया माया अपनी अद्भुत सुंदरता और दीप्तिमान मुस्कान के लिए जानी जाती थी, जबकि माया से दो वर्ष छोटी, किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटने वाली विभा चंचलता का पर्याय थी। रात और दिन की तरह दोनों भिन्न थीं, लेकिन उनका बंधन अटूट था। जीवन्तता से भरी-पूरी माया की हँसी गाँव वालों के कानों में संगीत की तरह गूंजती थी। गाँव में सबकी चहेती युवतियाँ थीं वह दोनों। उनकी सर्वप्रियता इसलिए भी थी कि पढ़ने-लिखने में भी वह अपने सहपाठियों से दो कदम आगे रहती थीं।  इस छोटे

पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह