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यह मुद्दा सदैव ज्वलंत ही रहने वाला है...

   
  "कॉंग्रेस ने उनके शासन के दौरान कुछ नहीं किया, केवल गलत ही गलत काम किये।"
 पहले हम गलत कामों की बात करें तो उन्हें सही करने से वर्तमान शासन को कौन रोक रहा है? बीजेपी वाले जितना करते हैं उससे दस गुना जताते हैं और कॉंग्रेस के कामों को नकारते हैं, यह बात कुछ जंचती नहीं। हर इंसान में खामियां होती हैं तो इंसान से गलती होना भी अवश्यम्भावी है। भारत ने अभी तक की जिन बुलन्दियों को छुआ है, वह सब क्या बीजेपी का करा-धराया है? नेहरू जी, इंदिरा जी और नरसिंहराव जी ने देश के लिए जो कुछ किया, उसे कौन नकार सकता है? इंदिरा जी के बांगला देश के उद्भव के साहसी निर्णय का ही परिणाम है कि पूर्व की तरफ से पाक की नापाक हरकतों से महफूज़ हैं हम। युगपुरुष अटल जी ने तो उन्हें 'दुर्गा' (माता) तक कह दिया था। मैं कॉंग्रेस का समर्थक नहीं हूँ (पर केजरीवाल जी का अवश्य हूँ)। 
     मानता हूँ कि मोदी जी का अभी कोई विकल्प नहीं है, लेकिन अभी उन्हें अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करनी होगी। 
     क्यों निकम्मे और अपराधी कुछ तत्व सांसदों के रूप में उनकी टीम में हैं? संसद में मात्र हुड़दंग का काम करने वाले सांसदों को दिए जाने वाले मोटे वेतन, मोटे भत्ते और अनाप-शनाप सुविधाएँ ख़त्म क्यों नहीं की जातीं? पांच साल में करोड़ों-अरबों की कमाई कर लेने वाले माननीयों को पेंशन किस बात की दी जाती है? सांसदों-विधायकों की अरबों की सम्पत्ति की जाँच क्यों नहीं करवाई जाती? आम आदमी के वोट से चयनित जनसेवक शासक-सा आचरण क्यों करने लगता है? मोदी जी अपने वेतन का मात्र एक रुपया लेते हैं, ऐसी भ्रामक बातें फैलाकर उन्हें महिमामण्डित क्यों किया जाता है? वेतन के  रूप में एक रुपया  प्रधानमंत्री  बनने के बाद मोदी जी ने लेना शुरु किया या प्रारम्भ से ही एक रुपया वेतन लेते आये हैं? उनकी आय का और कौन सा स्रोत है जिससे उनका गुजारा होता है? लोगों का तो बीस हजार मासिक से भी गुजारा नहीं होता ऐसा मेरी जानकारी में है फिर...?  
    ऐसे कई अनुत्तरित प्रश्न आज आम भारतीय के जेहन में पैदा होते हैं, दफ़न होते हैं, लेकिन उसे समाधान नहीं मिलता। 
       ....तो मत कहिये कि केवल कॉन्ग्रेस ही गलत थी। 
    ईमानदार राजनीति में सफल नहीं हो पाता, और संदिग्ध को संसद/विधानसभा में भेजना प्रजातान्त्रिक विवशता है। प्रजातन्त्र अपने मूल रूप में एक आदर्श व्यवस्था है , लेकिन इस व्यवस्था ने जो परिणिति पाई है वह किसी अन्य विकल्प की सोच का आधार बन रही है। 

    एक उदहारण निम्नांकित shared खबर में सांसद पांडा जी का दिखाई देता है। क्या इनका अनुकरण करने का ज़मीर अन्य के पास है???

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