नहीं होते कुछ लोग सहानुभूति के क़ाबिल, दया के क़ाबिल। बांग्ला देश को पूर्वी पाकिस्तान ही रहने देना चाहिए था भूखा और नंगा। भूल गया यह कृतघ्न देश हमारी मेहर, भूल गया कि उसकी आज़ादी के लिए हमें क्या क़ीमत चुकानी पड़ी थी। क्या थोड़ा भी हमारे प्रति वफादार रह सका यह नामाकूल देश ? हुक्मरान तो चलो मानते हैं कि सियासत के खेल में बेग़ैरत हो जाते हैं (कोई भी देश इससे अछूता नहीं, हमारा देश भी नहीं), लेकिन अवाम ? उसमें तो कुछ शर्मो-हया होनी चाहिए न ?
बात कर रहा हूँ क्रिकेट के खेल की। अभी कल ही एशिया-कप के फाइनल में भारत के हाथों चित्त हुए बांग्ला देश के एक सिरफिरे ने इस फ़ाइनल मैच के कुछ पहले ट्वीट करते हुए इस तरह दिखाया कि भारतीय कप्तान धोनी के कटे सिर को उसने अपने हाथ में ले रखा है। हार-जीत को खेल-भावना से लिया जाना चाहिए लेकिन इस बात को सामान्य व्यक्ति ही नहीं, कई बार तो खिलाड़ी भी भूल जाते हैं- यह सच है, किन्तु इस तरह का विष-वमन करने का काम तो दुश्मन ही कर सकते हैं। बांग्ला देश को आज़ाद करा के हमने पड़ोस में दूसरा दुश्मन पैदा कर लिया है।
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