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पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही

उरी (कश्मीर) में सैन्य शिविर पर अभी हुए आतंकी हमले में 17 जवान शहीद हो गए। निरन्तर हो रहे अनुत्तरित प्रहारों के आघात से देश की आत्मा कराह उठी है, देश का जन-मानस उद्वेलित है। वतन की रक्षा के लिए तैनात फौजियों की फड़कती भुजाएँ पैरों में पड़ी बेड़ियों के हटने कीे प्रतीक्षा कर रहीं हैं, लेकिन हमारे राजनैतिक कर्णधार दिशाविहीन हैं...
फिर भी जन-आक्रोश को देखते हुए एक उच्चस्तरीय बैठक में पाकिस्तान के सिरुद्ध कड़ी कार्यवाही के लिए विचार-विमर्श हुआ है।
लगता है इस बार पाकिस्तान की शामत आ गई है और...और उसे हमारी ओर से अब तक के सबसे कड़े शब्दों के प्रहार को झेलना होगा।

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     'दलित वर्ग एवं सामाजिक सोच'- संवेदनशील यह मुद्दा मेरे आज के आलेख का विषय है।  मेरा मानना है कि दलित वर्ग स्वयं अपनी ही मानसिकता से पीड़ित है। आरक्षण तथा अन्य सभी साधन- सुविधाओं का अपेक्षाकृत अधिक उपभोग कर रहा दलित वर्ग अब वंचित कहाँ रह गया है? हाँ, कतिपय राजनेता अवश्य उन्हें स्वार्थवश भ्रमित करते रहते हैं। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है, कुछ बुद्धिजीवी दलित भी अब तो आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं को अनुचित मानने लगे हैं। आरक्षण के विषय में कहा जा सकता है कि यह एक विवादग्रस्त बिन्दु है। लेकिन इस सम्बन्ध में दलित व सवर्ण समाज तथा राजनीतिज्ञ, यदि मिल-बैठ कर, निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कुछ विवेकपूर्ण दृष्टि अपनाएँ तो सम्भवतः विकास में समानता की स्थिति आने तक चरणबद्ध तरीके से आरक्षण में कमी की जा कर अंततः उसे समाप्त किया जा सकता है।  दलित वर्ग एवं सवर्ण समाज, दोनों को ही अभी तक की अपनी संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। सवर्णों में कोई अपराधी मनोवृत्ति का अथवा विक्षिप्त व्यक्ति ही दलितों के प्रति किसी तरह का भेद-भाव करता है। भेदभाव करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से धिक्कारा जाने व कठो