अभी हाल की खबर है कि चिली के एक चिड़ियाघर में एक जाहिल व्यक्ति आत्महत्या के इरादे से शेरों के बाड़े में कूद पड़ा। आसपास के लोगों ने देखा और शोर मच गया। आनन-फानन में रक्षक-दल वहां आया और उस व्यक्ति को बचाने का अन्य कोई चारा न देख दो शेरों को गोली मार दी। एक निकम्मे इन्सान को बचाया गया निरपराध जानवरों की जान की कीमत पर।
एक अन्य घटना में अमेरिका के सिनसिनाटी शहर के एक चिड़ियाघर में एक चार वर्षीय बच्चा उत्सुकतावश सुरक्षा-बाड़ से सप्रयास निकलकर गोरिल्ला के बाड़े में पानी में गिर गया। वहां मौज़ूद नर गोरिल्ला 'हराम्बे' बच्चे को पकड़ कर पानी में खेलने लगा। यद्यपि गोरिल्ला का बच्चे पर आक्रमण करने का कोई इरादा नज़र नहीं आ रहा था, तथापि खतरे की सम्भावना मानकर गोरिल्ला को गोली मार दी गई।
यहाँ 1986 की ऐसी ही एक घटना का विवरण देना असामयिक नहीं होगा जिसमें अपने बाड़े में गिरे एक बच्चे को एक गोरिल्ला ने संरक्षण देकर सुरक्षित रखा था तथा उसके बाद अभिभावकों व जन्तुशाला-कर्मियों ने बच्चे को सुरक्षित बाहर निकाल लिया था। स्पष्टतः गोरिल्ला शान्त स्वभाव का प्राणी है बशर्ते कि उसे उकसाया नहीं जाय।
पहली घटना में शेरों के आगे कूदने का पागलपन एक सिरफिरे ने किया था तो दूसरी घटना में माता-पिता की लापरवाही से बच्चा गोरिल्ला के बाड़े में गिरा था। और फिर चिड़ियाघर के सुरक्षा- इन्तज़ाम भी क्या सवालों के घेरे में नहीं आते ? दोनों ही घटनाओं में इन मूक पशुओं का क्या अपराध था ?
अपने आप को विकसित और बुद्धिमान कहने-मानने वाले स्वार्थी मनुष्य जाति के प्राणियों ने इन वनचर प्राणियों की आज़ादी छीनकर इन्हें पिंजरों में डाल दिया ताकि मासूम जानवरों की अठखेलियाँ और कभी इनका आक्रोश-प्रदर्शन उनके मनोरंजन का कारण बन सके। प्रकृति (ईश्वर) की रचना मनुष्य भी हैं तो पशु-पक्षी भी। इन निरीह प्राणियों को अपने इशारों पर नचाने का, इन पर अत्याचार करने का, इनकी जान लेने का अधिकार मनुष्य को किसने दिया ? आत्मरक्षा के लिए प्रतिकार या प्रत्याक्रमण का अधिकार तो वैसे भी विधिसम्मत है, चाहे वह मनुष्य के विरुद्ध हो चाहे पशु के, लेकिन अपनी ही भूल के लिए पशुओं को दण्डित करने वाले मनुष्य को 'मनुष्य' कैसे कहा जा सकता है ? मनुष्यों के द्वारा बनाये गए क़ानून! मनुष्यों की अदालत! कहाँ फरयाद करे यह पशु-समाज ?
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