सन 1964 में रिलीज़ हुई मूवी 'ज़िन्दगी' मैंने वर्ष 1965 में महाराजा कॉलेज में अध्ययन के दौरान कॉलेज से भाग कर मेटेनी शो में देखी थी। इस मूवी में शायर हसरत जयपुरी के गीत 'पहले मिले थे सपनों में' की दो पंक्तियाँ मुझे आज तक कंफ्यूज़ करती रही हैं। हसरत जयपुरी जी से मिलने का समय नहीं निकाल सका, इसलिए उनसे भी नहीं पूछ सका। वह पंक्तियाँ हैं-
'ऐ सांवली हसीना, दिल तूने मेरा छीना'
तथा
'गोर बदन पर काला आँचल, और रंग ले आया'
तो समझ में यह नहीं आया कि जो हसीना सांवली थी उसका बदन गोरा क्योंकर रहा होगा? मान भी लें कि वह हसीना सांवली ही पैदा हुई थी और बदन पर किसी प्रतिष्ठित कम्पनी का गोरा बनाने वाला क्रीम लगाती थी तो वह क्रीम उसने चेहरे पर क्यों नहीं लगाया? गाना गाते हुए हीरो की नज़र ज्यादातर तो उसके चेहरे पर ही रही होगी न!
बस इतनी ही बात मानी जा सकती है कि या तो हसीना ने गलती की थी या फिर विधाता ने ही चेहरा और बदन अलग-अलग रंग का गढ़ दिया था और शायर ने हसीना को देख कर गीत की यह पंक्तिया लिख डाली (क्योंकि शायर तो ग़लती कर नहीं सकता न!)।
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