आपको उद्वेलित कर देगी मेरी यह कहानी!... बहुत भोला होता है बचपन! कभी-कभी वास्तविकता से परे काल्पनिक रचनाओं, समाज में व्याप्त आडम्बरों और भ्रान्त विश्वासों का अवाञ्छित प्रभाव बाल-मन को दुष्प्रेरित कर अनर्थ के गर्त में धकेल देता है और पीछे रह जाती है परिजनों की अपरिमार्जनीय व्यथा! प्रस्तुत है एक बालक के मनोवेग का चित्रण करती यह करुण कहानी- 'ख़याली दुनिया' .....
प्रेरणा अपने ऑफिस में बैठी एक महत्वपूर्ण फाइल देखने में व्यस्त थी कि टेबल पर रखा उसका मोबाइल फोन फिर बज उठा। अभी-अभी में तीन-चार जगह से कॉल आ चुके थे सो उसने झुंझला कर बिना देखे ही फोन काट दिया। पाँच-सात सेकंड में दुबारा मोबाइल घनघनाया। 'ओफ्फोह' उसके मुँह से निकला और फोन उठा लिया। उधर से उसके पति सुदेश की उखड़ी-उखड़ी आवाज़ आई- "प्रेरणा, फोन क्यों काट रही हो? जल्दी से जनरल हॉस्पिटल पहुँचो।"
"अरे, क्या हो गया? ठीक तो हो तुम?"- घबरा कर प्रेरणा ने पूछा।
" हाँ, मैं ठीक हूँ, पर तुम तुरन्त रवाना हो जाओ और हॉस्पिटल के मेडिकल वॉर्ड नंबर 3A में पहुँचो।"
प्रेरणा कुछ और पूछती इसके पहले ही सुदेश ने फोन काट दिया था। सुदेश की घबराई हुई आवाज़ ने उसे बेचैन कर दिया।
अपने ब्रांच-मैनेजर से पूछे बिना ही वह पड़ोस की सीट पर बैठे सहकर्मी को सूचित कर ऑफिस से निकल गई। स्कूटी पर जाते हुए एक ही ख़याल उसके दिमाग को झकझोरता रहा, 'पापा बीमार हैं, पर आज सुबह ही तो उनसे बात हुई थी। कहीं अधिक बिगड़ तो नहीं गई उनकी तबियत, क्या पता गाँव से भैया उन्हें यहाँ हॉस्पिटल लाये हों! हे भगवान, रक्षा करना उनकी।'
हॉस्पिटल पहुँच कर प्रेरणा दनदनाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ कर गैलरी से होते हुए वार्ड 3A में पहुंचे। सामने ही एक पलंग के पास सुदेश और एक डॉक्टर तथा नर्स खड़े दिखाई दे गए। वह तेज़ क़दमों से सुदेश के पास पहुंची। पलंग की और देखा तो उसके होश उड़ गए- पलंग पर हरित, उसका प्यारा बेटा, अचेत पड़ा हुआ था। उसके दाएं हाथ में ड्रिप लगी थी।
"क्या हुआ हरित को? यह बेहोश क्यों पड़ा है? बोलो सुदेश!"- रोते-रोते प्रेरणा ने सुदेश को झिंझोड़ दिया।
सुदेश ने उसके कंधे पर हाथ रखा। वह कुछ कहते उसके पहले ही डॉक्टर ने पलट कर प्रेरणा की ओर देखा और बोला- "आप धीरज रखें, हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। आपके बच्चे ने कोई जहरीली चीज़ खाई है।"
"यह कैसे हो सकता है? क्या खाया है इसने?"
"अभी हम कुछ नहीं कह सकते। कल तक जांच-रिपोर्ट आ जाएगी तभी कुछ पता लगेगा। मैं दो-एक घंटे में वापस आकर बच्चे को देखूंगा।" -डॉक्टर ने कहा और फिर नर्स को पेशेंट का ध्यान रखने व आधे-आधे घंटे में बी.पी. की जांच करते रहने का निर्देश दे कर चला गया।
प्रेरणा लगातार रोये जा रही थी, उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
"पता नहीं क्या खाया होगा इसने और क्या वजह रही होगी! सुबह तो अच्छा-भला स्कूल गया था। हरित ने यहाँ लाने के बाद वॉमिट किया था। इन लोगों ने उसका सैम्पल लैब में जांच के लिए भेजा है, उसकी रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ पता लगेगा। रोओ मत प्रेरणा, डॉक्टर ठीक से देख रहे हैं, सब अच्छा ही होगा। " सुदेश ने उसे ढाढ़स बांधते हुए कहा।
नर्स ने सुदेश से कहा कि दोनों में से एक इंसान ही यहाँ पेशेंट के पास बैठ सकता है, दूसरे को वार्ड से बाहर जाना होगा।
प्रेरणा ने अपने आंसू पोंछ कर हरित के सिर को सहलाते हुए नर्स से कहा- "अभी तो हम दोनों यहीं रहेंगे। हम डॉक्टर से बात कर लेंगे।"
नर्स ने मेडिकल स्टोर से दवा व इंजेक्शन लाने के लिए डॉक्टर की लिखी पर्ची सुदेश को दी व अजीब-सा मुंह बना कर दूसरे पेशेंट के बैड की ओर चली गई।
सुदेश और प्रेरणा इक्की-दुक्की बात करने के अलावा हरित के पास खामोश बैठे थे।
सुदेश ने प्रेरणा को बताया- "मेरे पास पडोसी महावीर जी का फ़ोन आया था कि हरित घर पर बेहोश पड़ा है। यह भी बताया कि उनका बेटा हरित से मिलने गया था तो उसे वह घर पर बेहोशी की हालत में मिला। मैं तुरत घर पर गया और उसे लाकर डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने तुरत भर्ती करने को कहा। मैंने तुम्हें उसी समय फोन लगाया था पर घंटी जाती रही और तुमने फ़ोन नहीं उठाया। भर्ती कर के हरित को वार्ड में लाये, उसके बाद मैंने फिर वापस दो बार तुम्हें फ़ोन किया तब जाकर अपनी बात हुई।"
प्रेरणा ने बताया कि मोबाइल उसके बैग में था जो टेबल के ड्रावर में रखा था और वह लंच-ब्रेक में सहकर्मियों के साथ हॉल में थी, इसलिए फ़ोन आने का पता ही नहीं चला। प्रेरणा ने हरित की ओर करुण दृष्टि से देखा और सुदेश से डॉक्टर की लिखी दवा ले आने को कहा।
सुदेश के दवा लेकर लौटने के लगभग एक घंटे बाद दोनों ने देखा, हरित की साँस उखड़ रही थी। बेहोशी में भी उसे बेचैनी हो रही है, ऐसा लग रहा था। प्रेरणा फिर रोने लगी। सुदेश ने नर्स को आवाज़ लगा कर तुरत डॉक्टर को बुलाने को कहा। पाँच मिनट में ही डॉक्टर आ गया। नाड़ी चैक करने के बाद उसने स्वयं ने हरित का बी.पी. चैक किया। डॉक्टर की मुखमुद्रा देख कर सुदेश ने पूछा- "डॉक्टर, कैसी हालत है अब हरित की?"
"ठीक ही है पर बी.पी. डाउन हो रहा है। उसे साँस लेने में भी दिक्कत हो रही है। बच्चे को वेंटिलेटर पर लेना पड़ेगा।"
"जो भी करना पड़े करें पर मेरे बेटे को बचा लीजिये डॉक्टर साहब!"- प्रेरणा ने विकल होकर डॉक्टर से अनुनय की। डॉक्टर ने सिर हिला कर प्रेरणा को आश्वस्त करने की कोशिश की और नर्स को बुलाकर हरित को शीघ्र ही आई.सी.यू. में शिफ्ट करने की हिदायत दे कर ICU वार्ड की ओर चला गया।
नर्स ने फॉर्म भर के सुदेश के हस्ताक्षर करवाये तथा स्ट्रेचर मंगवाया। सुदेश व वार्ड बॉय की मदद से हरित को स्ट्रेचर पर लिटाया और सभी लोग आई.सी.यू. वार्ड की ओर बढ़ चले। कुछ ही दूर यह लोग चले थे कि हरित ने तेज़ साँस के साथ एक हिचकी ली और वापस खामोश हो गया। नर्स ने तुरत हरित की नाडी देखी और घबरा कर डॉक्टर को बुलाने दौड़ पड़ी।
प्रेरणा जिसके आंसू अभी सूख भी नहीं पाए थे, फिर से फफक पड़ी। सुदेश किन्कर्तव्यविमूढ से खड़े थे। डॉक्टर ने आकर हरित को देखा, उसकी नाड़ी चैक की और जो-जोर से हरित के सीने पर अपने हाथों से तीन-चार बार दबाव डाला। एक बार फिर उसकी नाड़ी चैक की और निराशा में सिर हिला कर कहा-"सॉरी, हम बच्चे को नहीं बचा सके।" प्रेरणा के चीख-चीख कर रोने-बिलखने की आवाज़ के बीच डॉक्टर ने सुदेश के कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना देने की कोशिश की- "प्लीज़ अपने आपको और अपनी पत्नी को सम्हालिए।"
रात हो गई थी, दोनों लुटे-पिटे से हरित के निर्जीव शारीर को घर ले आये। पड़ोस के महावीर जी व उनकी पत्नी के अलावा एक और दम्पति भी आ गए थे जो दो-एक घंटे बाद लौट गए थे। रात-भर प्रेरणा रोती रही। बार-बार वह हरित के निर्जीव चेहरे को निहारती, उसे पुकारती और बिलखती रहती।
हरित के अंतिम-संस्कार के तीन दिन बाद सभी रिश्तेदार, वगैरह अपने-अपने घर चले गये।
रात के दस बज रहे थे। सुदेश पलंग पर लेटे प्रेरणा को देख रहे थे, वह बिस्तर पर पड़ी छत की ओर ताक रही थी । प्रेरणा को वैसे भी नींद कुछ कम आती थी, और इन दिनों तो वह सो ही नहीं पाई थी। सुदेश परेशान थे, इस तरह तो प्रेरणा बीमार हो जाएगी! इन चार-पाँच दिनों में उसका चेहरा एकदम कुम्हला गया था। वह उठे और दूसरे कमरे में जाकर दवाइयों वाली आलमारी खोली। उन्होंने प्रेरणा के लिए रखी नींद की गोलियों की शीशी उठाई। शीशी देख कर चौंक पड़े वह, खाली पड़ी थी शीशी! अभी एक सप्ताह पहले ही तो बीस गोलियां लाये थे वह और केवल दो-तीन बार एक-एक गोली खाई थी प्रेरणा ने।
सुदेश को सारा माजरा समझ में आ गया। क्यों किया होगा हरित ने ऐसा, किस बात से परेशान था वह, सुदेश कुछ भी अनुमान नहीं लगा पाए। उन्होंने उस समय प्रेरणा से कुछ भी नहीं कहा। प्रेरणा के सोने की प्रतीक्षा करते देर रात कब उन्हें नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
अगले दिन सुबह सुदेश ने प्रेरणा को बताया कि हरित ने क्या किया था।
प्रेरणा जो आश्चर्य और दुःख मिश्रित भाव से सुनती जा रही थी, बोली- "क्यों किया होगा उसने ऐसा? कुछ तो बतलाता वह, तुम्हें नहीं तो मुझे ही बताता। हम भी कैसे माँ-बाप हैं, अपने बच्चे की तकलीफ ही नहीं समझ सके! कोई यूँ ही थोड़े ही आत्म-हत्या कर लेता है, ज़रूर कोई बहुत बड़ी पीड़ा होगी उसके मन में। हे ईश्वर! यह क्या हो गया...."
सुबक-सुबक कर विलाप कर रही थी प्रेरणा और सुदेश ...सुदेश उसी प्रश्न को सुलझाने की कोशिश में थे।
"प्रेरणा, मैं हरित के स्कूल जा रहा हूँ।"
प्रेरणा की खोजती निगाहों को भाँप कर भी सुदेश कुछ बोले नहीं और घर से हरित के स्कूल की ओर निकल पड़े। शहर के इस प्रतिष्ठित सेकेंडरी स्कूल में हरित पांचवीं क्लास में पढता था।
प्रिन्सिपल साहब को तो कुछ पता नहीं था पर अध्यापकों के अनुसार हरित स्कूल में दो-एक दिन से कुछ अनमना-सा देखा गया था। उसके सहपाठियों से भी और कोई विशेष बात सुदेश को मालूम नहीं हुई।
सुदेश के घर लौटते ही प्रेरणा ने प्रश्न किया- "क्या हुआ, कुछ जानकारी मिली?"
"नहीं कुछ विशेष नहीं, केवल यह पता लगा कि एक-दो दिन उसकी मनःस्थिति कुछ ठीक नहीं थी।"
घर पर इधर-उधर हरित के सामान, कपड़ों आदि को दोनों ने ध्यान से देखा। पूरे घर को छान मारा उन्होंने पर कोई सुराग नहीं मिला जिससे पता चले कि हरित ने नींद की गोलियाँ क्यों खाई थीं। थक-हार कर दोनों सोफे पर आ कर पसर गए। एकाएक प्रेरणा के दिमाग में एक और विचार आया। वह सोफा छोड़ कर उठी और हरित का स्कूल बैग लेकर वापस सुदेश के पास आई।
"अरे भई, बैग में क्या मिलने वाला है?"
"जब सब जगह देखा है तो इसे भी देख लेते हैं, हर्ज़ क्या है?"- प्रेरणा को हल्की-फुल्की आशा नज़र आ रही थी।
कुछ चार-पाँच किताबें-नोटबुक्स टटोलने के बाद हरित की होम वर्क की एक नोटबुक में हरित का उसके नाम लिखा हुआ एक पत्र मिल गया। दोनों ने उसे एक साथ पढ़ा।
"मेरी प्यारी मम्मी, जो कुछ मैं कर रहा हूँ वह जान कर शायद आपको ताज्जुब होगा। मैंने अभी चार-पाँच दिन पहले 'मेरी परलोक यात्रा-एक सत्य कथा' नाम से एक कहानी पढ़ी थी। उस कहानी में एक आदमी मर जाता है। मरने के बाद कुछ देर तक तो उसकी आत्मा शरीर के आस-पास चक्कर काटती रहती है, उसे ताज्जुब होता है कि लोग उसके शरीर के पास बैठे रो क्यों रहे हैं!। वह अपने बेटे से और अपनी पत्नी से बात करने की कोशिश करता है पर कोई उसकी बात का जवाब नहीं देता,उसकी तरफ देखता भी नहीं है। उसको इस बात पर बहुत गुस्सा आता है। इतने में एक यमदूत आकाश से एक भैंसे पर बैठ कर उसके पास आता है। यमदूत बहुत दूर से आता है न तो उसको टाइम लग जाता है। फिर यमदूत उसे अपने साथ ले जाता है।

वह कई रास्तों से घुमा-फिर कर उसे पहले एक नर्क में ले जाता है। कुछ देर वहाँ रुक कर वह उसके जैसे ही दूसरे यमदूतों से कुछ बातें करता है। वहाँ से चल कर वह दोनों स्वर्गलोक में पहुँचते हैं। वहाँ उस आदमी को कुछ दूसरे प्रकार के यमदूत नज़र आते हैं। उनमे से एक यमदूत कई सारी बातें उससे पूछता है। फिर एक पोथी में कुछ पढ़ कर वह उस आदमी को लाने वाले यमदूत को डाँटता है और बोलता है- 'तुम किसी और के बदले में इसको गलती से ले आये हो। अभी इसकी मौत नहीं लिखी है। अब ले ही आये हो तो कुछ देर इसको यहाँ घुमाओ-फिराओ और फिर वापस धरती पर इसे इसके घर छोड़ कर आना। ध्यान रखना, इसको यहाँ कोई तकलीफ मत होने देना।' यमदूत उसे वहाँ के बाग़-बगीचे, सुन्दर-सुन्दर झरने, रंग-बिरंगे पक्षी, सुन्दर परियां, वगैरह कई अच्छी-अच्छी चीजें दिखाता है।
कुछ देर बाद जब यमदूत के साथ वह अपने शरीर के पास पहुँचता है तो देखता है कि अब सिर्फ कुछ औरतें ही रो रही थीं और दो-तीन आदमी उसके शरीर को रस्सियों से बांध रहे थे। उसने जोर से चिल्ला कर कहा कि मुझे मत बांधो, मैं वापस आ गया हूँ, पर किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। यमदूत ने जैसे ही उसका हाथ छोड़ा, उसने अपने शरीर में प्रवेश कर लिया। उसका शरीर हिलने लगा तो सब लोग डर कर दूर चले गये। उसने जब कहा कि भाई मुझे यमदूत गालती से ले गया था इसलिए वापस छोड़ गया है, तब जाकर उन्होंने उसकी रस्सियां खोलीं। मैंने आपको शॉर्ट में सारी कहानी बता दी है।
मम्मी, मैंने सुना है कि नींद की गोलियाँ अधिक खा लेने से इन्सान मर जाता है। आपकी नींद की गोलियाँ जो शीशी में पड़ी है वह सारी मैं अभी खा लूँगा ताकि एक बार मैं भी मर जाऊँगा और फिर स्वर्गलोक का चक्कर लगा कर वापस आ जाऊंगा। सोचो, कितना मज़ा आएगा! पर मम्मी, स्वर्गलोक चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, मैं वापस ज़रूर आऊंगा। मैं आप दोनों से बहुत प्यार करता हूँ, मैं आपसे दूर अकेला वहाँ थोड़े ही रह सकता हूँ। मैं तुरत लौट आऊंगा, आप बिल्कुल चिंता मत करना। मुझे यमदूत वहाँ रोकेंगे भी नहीं क्योंकि जिसकी मृत्यु नहीं लिखी होती है न,उसे वह वहां नहीं रख सकते।
आपको ध्यान है न मम्मी, पाँच-छः महीने पहले आप और पापा मुझे एक ज्योतिषी जी के पास ले गए थे तो उन्होंने मेरी उम्र जन्मपत्री के अनुसार 87 वर्ष की बताई थी, इसलिए मैं पक्का वापस आऊंगा ही।
मैं जो कुछ भी वहाँ जा कर देखूंगा, वापस आ कर सब-कुछ आपको व पापा को बताऊंगा।
पापा को कहना वह मेरे स्कूल में एक दिन की छुट्टी की एप्लीकेशन ज़रूर दे दें, भूलें नहीं।
पहली बार आप लोगों से दूर जा रहा हूँ न मम्मी, इसलिए दुःख भी हो रहा है पर जल्दी ही लौट कर मिलता हूँ। पापा को मेरा प्रणाम कहना।
-आपका लाड़ला बेटा!
अरे, एक बात कहना तो भूल ही गया मम्मी, लोगों से कह देना कि मेरे शरीर को रस्सी से बांधें नहीं, मैं दो-तीन घंटों में ही वापस आ जाऊंगा।"
सुदेश और प्रेरणा दोनों पत्र पढ़ रहे थे और उनकी आखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था। उनका बेटा उसकी ख़याली दुनिया की भेंट चढ़ चुका था।
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