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'परिवर्तन' (लघुकथा)

              



   X-पार्टी की पराजय के बाद एक सप्ताह पहले Y-पार्टी की सरकार बन गई थी। 

  X-पार्टी का कार्यकर्त्ता (अपनी ही पार्टी के एक छुटभैये नेता से)- "भाई साहब, एक बहुत ज़रूरी काम आन पड़ा है। ज़रा नेता जी से आपकी सिफारिश करवानी थी।"

छुटभैया- "सॉरी भाई, आत्मा की आवाज़ पर अभी तीन दिन पहले मैंने Y-पार्टी जॉइन कर ली है। अब मेरी बात तुम्हारी X-पार्टी में कोई नहीं मानने वाला।" 

"अरे भाई साहब, Y-पार्टी के नेता जी से ही तो सिफारिश करनी है। मैं भी Y-पार्टी में ही हूँ, कल मैंने भी इस पार्टी की सदस्यता ले ली थी। X-पार्टी में तो मेरा दम घुट रहा था।"

                                                                             *****

टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब आदरणीय सर | दलबदलू नेताओं की आत्मा भी आसानी से बदल जाती है | पार्टी की सत्ता गयी तो छुटटभइये अपने भविष्य की संभावनाएं तलाशने नयी पार्टी के वफादार बन जाते हैं | सादर --

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    1. आपकी इस सुन्दर टिप्पणी के लिए आभार रेणु जी!

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  2. आदरणीय सर, सादर प्रणाम। बहुत ही सटीक और कठोर प्रहार, सरकार के परिवर्तन के साथ स्वार्थी दलबदलू नेताओं की आत्मा का भी परिवर्तन हो जाता है और सत्ता के लालच में वह पार्टी बदल लेते हैं, इसिलए सरकार परिवर्तन तो होता है पर देश की स्थिति और बढ़ते हुए भ्रष्टाचार में कोई परिवर्तन नहीं आता।

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  3. हार्दिक धन्यवाद अनन्ता जी! राजनीति में आई कुटिलता धीरे-धीरे समाजिक चरित्र को भी दूषित कर रही है। पता नहीं आगे क्या होने वाला है।

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