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पड़ोसी की बदहाली (व्यंग्य लेख)

         

पता नहीं, आप क्रिकेट के मैदान में रन कैसे बना लेते थे इमरान साहब! सियासत के मैदान पर तो आप लगातार क्लीन बोल्ड हो रहे हो। वैसे तो आपके मुल्क के अभी तक के सभी हुक्मरान उल्टी खोपड़ी के ही देखने में आए हैं। आप लोगों की हालत ऐसे आदमी जैसी है जिसके पास एक बीवी को खिलाने की औकात नहीं है और दो-तीन निकाह के लिये उतावला रहता है।

तो, बड़े मियां, मानोगे मेरी एक सलाह? मौके का फायदा उठा कर ज़बरदस्ती कब्जाया POK लौटा दो हमारे भारत को। वैसे भी कड़की भुगत रहा इन्सान अपने घर की चीजें बेच कर अपनी ज़रूरतें पूरी करने को मजबूर हो जाता है। ... और फिर POK तो आपका अपना माल भी नहीं है, देर-सवेर हम वापस ले ही लेंगे आपसे।

एक बात और कहूँ आप बुरा न मानें तो! देखिये, अमेरिका ने आपको घास डालनी बन्द कर दी है और आपको भी अच्छे-से पता है कि आपका वो गोद लिया पापा है न, क्या नाम है उसका, हाँ याद आया, 'चीन', तो वह तो मतलब का यार है आपका।...अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा आपके लिए! भुखमरी के आपके इन हालात में मैं आपको बमुश्किल दो-तीन हज़ार रुपये की अदद मदद कर सकता हूँ। सौ-पाँचसौ की बढ़ोतरी और भी करता, मगर क्या करूँ पेंशनयाफ्ता सरकारी नुमाइंदा जो ठहरा। आपके मुल्क का काम फ़िलहाल इससे चल जाता हो, तो मुझे बेशक फरमा दें आप! आखिर तो आपके पड़ोसी मुल्क का वाशिन्दा हूँ। देखिये, न तो हेंकड़ी रखियेगा और न शर्माइयेगा।

सोच लो... चाहो तो अपने छोटे भाई हमारे यहाँ के नवजोत सिद्धू से मशविरा कर लो!








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मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- मौसम बेरहम देखे, दरख्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार  आएगी  कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा  मेरा  जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

बेटी (कहानी)

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