Skip to main content

मुंहासों का प्रभावी उपचार


    आज हम शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग की चर्चा करेंगे। निर्विवाद रूप से शरीर का प्रमुख और सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है चेहरा। चेहरे को मनुष्य सबसे अधिक प्यार करता है क्योंकि उसी से उस की पहचान होती है। वैसे तो चेहरे की देख-रेख के लिए वय-विशेष आधार नहीं हुआ करती, लेकिन युवावस्था में इसका ध्यान रखा जाना अधिक आवश्यक हो जाता है। युवावस्था मनुष्य के जीवन का वह स्वर्णिम काल होता है जब उसके मन-पंछी के उड़ान
की सीमा आकाश से भी परे होती है, जब वह अधिक से कहीं अधिक आकर्षक दिखना चाहता है। कल्पना-लोक में विचरण करते युवकों एवं युवतियों के सुन्दर चेहरे पर उम्र के इसी सुनहरे काल में अनायास ही एक अनचाहा मेहमान घर कर लेता है। 'मुंहासे' (Pimples) नामक इस बीमारी के आक्रमण से अधिकांश युवा बेचैनी के दौर से गुजर रहे होते हैं। युवा ही नहीं, मुंहासों की इस तकलीफ से अधिक उम्र वाले कुछ व्यक्ति भी पीड़ित रहते हैं।
     तो मित्रों, इन मुंहासों को हटाने के लिए मैं यहाँ एक ऐसा उपचार बताऊंगा जो पीड़ित लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला देगा। विशेष बात यह है कि आजमाया हुआ यह उपचार पूरी तरह से कारगर है और बहुत ही आसान है।
      आपको करना यह है-
     दालचीनी (Cinnamon) लगभग हर घर में मौजूद होती है। दालचीनी को बारीक़ पीस कर एक डिबिया में भर लें। इसमें से दो चुटकी मात्रा लें व आधा चम्मच (teaspoon) शहद (honey) मिला कर इसका पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को मुंहासों पर उंगली से हल्के दबाव के साथ लगाएं। इस पेस्ट को लगाने के 15 मिनट बाद चेहरे को धो लें। ऐसा सुबह-शाम दो बार करें। जल्द और अधिक अच्छे परिणाम के लिए दिन में एक बार एक अन्य पेस्ट भी लगायें। इस पेस्ट के लिए आधा चम्मच ताज़ा दही में आधा चम्मच शहद मिलाएं। इस पेस्ट को भी दालचीनी वाले पेस्ट की तरह ही मुंहासों पर लगाएं। 15 मिनट बाद अपना चेहरा धो लें। कुछ ही दिनों में आप आश्चर्यजनक परिणाम देखेंगे।
    मित्रों,  प्रयोग करने के बाद कृपया मेरे ब्लॉग में कमेन्ट करें और अपने अन्य मित्रों को भी बताएं।
नोट:- उपरोक्त प्रयोग में प्रयुक्त वस्तुओं / मिश्रण  से यदि आपको कोई एलर्जी हो तो सावचेत रहें और प्रयोग न करें। 

Comments

Popular posts from this blog

बेटी (कहानी)

  “अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी।  “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया।  “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...

तन्हाई (ग़ज़ल)

मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- तन्हाई मौसम बेरहम देखे, दरख़्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार आएगी कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा   मेरा   जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन  फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

दलित वर्ग - सामाजिक सोच व चेतना

     'दलित वर्ग एवं सामाजिक सोच'- संवेदनशील यह मुद्दा मेरे आज के आलेख का विषय है।  मेरा मानना है कि दलित वर्ग स्वयं अपनी ही मानसिकता से पीड़ित है। आरक्षण तथा अन्य सभी साधन- सुविधाओं का अपेक्षाकृत अधिक उपभोग कर रहा दलित वर्ग अब वंचित कहाँ रह गया है? हाँ, कतिपय राजनेता अवश्य उन्हें स्वार्थवश भ्रमित करते रहते हैं। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है, कुछ बुद्धिजीवी दलित भी अब तो आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं को अनुचित मानने लगे हैं। आरक्षण के विषय में कहा जा सकता है कि यह एक विवादग्रस्त बिन्दु है। लेकिन इस सम्बन्ध में दलित व सवर्ण समाज तथा राजनीतिज्ञ, यदि मिल-बैठ कर, निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कुछ विवेकपूर्ण दृष्टि अपनाएँ तो सम्भवतः विकास में समानता की स्थिति आने तक चरणबद्ध तरीके से आरक्षण में कमी की जा कर अंततः उसे समाप्त किया जा सकता है।  दलित वर्ग एवं सवर्ण समाज, दोनों को ही अभी तक की अपनी संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। सवर्णों में कोई अपराधी मनोवृत्ति का अथवा विक्षिप्त व्यक्ति ही दलितों के प्रति किसी तरह का भेद-भाव करता है। भेदभाव करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप स...