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डायरी के पन्नों से... "स्वर्ग मैंने देख लिया है"

     सन् 1971 की मेरी यह कृति "स्वर्ग मैंने देख लिया है" जगन्नियता ईश्वर की सुन्दरतम रचना 'नारी' के लिए है।  नारी उसके हर रूप में श्लाघनीय है, स्तुत्य है- इसी भावना को मैंने अपनी इस कविता में उकेरा है...








 "स्वर्ग मैंने देख लिया है"

'स्वर्ग  मैंने   देख   लिया  है।

हाँ, स्वर्ग   भी  देख  लिया है।'


होठों   से    मीठी   लोरी    गाते,

शिशु  को  अपना स्तन्य  पिलाते,

आँखों   से  अपनी, मधु बरसाते,

माता   की    ममता    में   मैंने,

हाँ,   स्वर्ग  भी   देख   लिया  है।

'स्वर्ग मैंने...।।'


कुंकुम   ले   अपने   हाथों   में,

बहना   के   कोमल  हाथों  से,

भैया   के   कर   में  बंधी  हुई,

राखी   के   नन्हे    धागों   में,

हाँ, स्वर्ग   भी  देख  लिया है।

'स्वर्ग मैंने...।।'


पिया नज़र में नज़र डाल कर,

अपना सब-कुछ वहीं वार कर,

पिय की  सुन्दर  सेज सजाते,

रमणी  की चञ्चल चितवन में,

हाँ,  स्वर्ग  भी  देख लिया है।

'स्वर्ग मैंने...।।'


अरमानों  में आग  लगा   कर, 

अपने कुल की लाज बचा कर,

कष्टों    का   अम्बार    झेलती,

विधवा   के   सूखे   अधरों  में,

 हाँ,  स्वर्ग  भी   देख  लिया है।

'स्वर्ग मैंने...।।'


इस दुनिया में कहीं नर्क को,

इस दुनिया से  परे स्वर्ग को,

नहीं   कभी   मैंने   देखा  है,

पर, नारी  की   हर  मूरत में,

हाँ, स्वर्ग  भी  देख  लिया है।

'स्वर्ग मैंने...।।'



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