(तनिक संशोधन के साथ, एक मित्र की फेसबुक पोस्ट से साभार !...तर्क की हर कसौटी पर खरा, सटीक सत्य!)
पानी ने दूध से मित्रता की और उसमें समा गया. जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा, "मित्र, तुमने अपने स्वरूप का त्याग कर मेरे स्वरूप को धारण किया है। अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हें अपने मोल बिकवाऊंगा"। दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है, "अब मेरी बारी है, मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा।" उबलते वक्त दूध से पहले पानी उड़ जाता है। जब दूध मित्र को अलग होते देखता है तो वह भी उफन कर गिरता है और अलगाव के लिए जिम्मेदार आग को बुझाने लगता है। अब, जब पानी की बूंदे उफनते दूध पर छिड़क कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है, तब वह फिर शांत हो जाता है। इस अगाध प्रेम में थोड़ी सी खटास ( निम्बू की दो-चार बूँद ) डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं।
मित्रों, इसी तरह से थोड़ी सी भी मन की खटास अटूट प्रेम को मिटा देती है।
"सच्ची मित्रता से बढ़ कर कोई दूसरा रिश्ता नहीं हो सकता। इस रिश्ते को और अन्य रिश्तों को भी किसी भी प्रकार की खटास से बचाएं।"
"सच्ची मित्रता से बढ़ कर कोई दूसरा रिश्ता नहीं हो सकता। इस रिश्ते को और अन्य रिश्तों को भी किसी भी प्रकार की खटास से बचाएं।"
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