1) डोकलाम विवाद को लेकर चीनी सेना ने भारत को चेतावनी दी है- भारत को किसी तरह की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. अपने इलाके की सुरक्षा के चीन के इरादे को कोई हिला नहीं सकता। एक पहाड़ को हिलाना आसान है, चीनी सेना को नहीं।
2) चीनी विचार समूह के एक विश्लेषक ने रविवार को कहा कि जिस तरह भूटान की ओर से सिक्किम सैक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क निर्माण से चीनी सेना को भारतीय सेना ने रोका, उसी तर्क का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के आग्रह पर कश्मीर में 'तीसरे देश' की सेना घुस सकती है।
.... भारत के मज़बूत रुख की प्रतिक्रिया में चीन लगातार इस तरह की भड़काऊ धमकियाँ दे रहा है।
हमारे रक्षा मंत्री जेटली ने अपने बयानों में चीन को अभी हाल ही
संकेत दिया है कि भारत अब सन् 1962 वाला भारत नहीं रहा है, हमारा मीडिया भी चीन की धमकी को 'गीदड़-भभकी' की संज्ञा दे रहा है, लेकिन क्या हमें चीन को इतना हल्के में लेना चाहिए ? हमें ध्यान रखना होगा कि चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी सेना है, बेहतरीन हथियार तथा युद्ध के साजोसामान हैं और वह आज विश्व के किसी भी देश को चुनौती देने में समर्थ ही नहीं है, चुनौती दे भी रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शक्तिशाली होने के साथ ही वह दम्भी भी है और पिछले कुछ समय से एक निरंकुश सांड की तरह आचरण कर विश्व को आतंकित करने का प्रयास कर रहा है।
संकेत दिया है कि भारत अब सन् 1962 वाला भारत नहीं रहा है, हमारा मीडिया भी चीन की धमकी को 'गीदड़-भभकी' की संज्ञा दे रहा है, लेकिन क्या हमें चीन को इतना हल्के में लेना चाहिए ? हमें ध्यान रखना होगा कि चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी सेना है, बेहतरीन हथियार तथा युद्ध के साजोसामान हैं और वह आज विश्व के किसी भी देश को चुनौती देने में समर्थ ही नहीं है, चुनौती दे भी रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शक्तिशाली होने के साथ ही वह दम्भी भी है और पिछले कुछ समय से एक निरंकुश सांड की तरह आचरण कर विश्व को आतंकित करने का प्रयास कर रहा है।
हमारे मीडिया की टिप्पणी एवं रक्षा मन्त्री के बयान देश की जनता को आश्वस्त रखने में कामयाब हो सकते हैं, कवियों को जोशीली कविता लिखने में मदद कर सकते हैं, लेकिन हकीकत की जमीन पर यह कितना वजन रखते हैं- यह देखने वाली बात है।
यद्यपि हमारे प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अब तक कई देशों की यात्रा कर उनके साथ अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये हैं, तथापि उन्हें आपसी रिश्तों में कूटनीतिक बदलाव की आवश्यकता को और अधिक समझना होगा। यह सच है कि कोई भी राष्ट्र हमें सैन्य-सहायता नहीं दे पायेगा, लेकिन अधिक शक्तिशाली हथियार प्राप्त करने के पूरे प्रयास तो हम कर ही सकते हैं। तब विशाल विश्व जनमत तो हमारे साथ होगा ही, सामरिक दृष्टि से भी हम अधिक मज़बूत हो सकेंगे। सर्वशक्तिमान अमेरिका ही नहीं, इज़राइल, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और रूस के साथ भी हमें अपने सम्बन्धों को ऊंचाइयां देनी होंगी। इसी तरह पड़ौसी (पाकिस्तान के अलावा) देशों के साथ हमें बड़े भाई की तरह नहीं, एक मित्र की तरह व्यवहार कर उन्हें अपना हितैषी बनाना भी आवश्यक है।
आकाश को छूते हमारी सेना के मनोबल को पंख लग जायेंगे जब विश्व की बड़ी-बड़ी शक्तियां हमारे साथ होंगी। तब ...और केवल तब ही हम अहंकारी चीन का फन कुचल सकेंगे।
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