"मैडम जी, मैं आपसे ज़्यादा सुन्दर हूँ न?"
"यह किसने बोला तुमसे?"
"जी, साहब कह रहे थे।"
मैडम जी ने घूर कर देखा काम वाली बाई को और फिर शीशे के पास जा कर खुद को देखा।
उल्लेखनीय यह नहीं है कि उस दिन साहब के साथ क्या गुज़री, हाँ, अगले दिन काम वाली बाई को घर से ज़रूर निकाल दिया गया।
जो हुआ सो हुआ, हैरानी इस बात की है कि लोग सच को बर्दाश्त क्यों नहीं कर पाते😜।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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मेरे इस प्रहसन को 'पांच लिंकों का आनन्द' का हिस्सा बनाने के लिए बहुत आभार भाई रवीन्द्र जी!
हटाएंहा हा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंबहुत ही बढ़िया आदरणीय एक बड़ा संदेश
जवाब देंहटाएंजी, बहुत धन्यवाद महोदया!
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार!
हटाएंबहुत सुंदर संदेशप्रद सृजन ।
जवाब देंहटाएंअंतरतम से धन्यवाद जी!
हटाएं🤣🤣🤣🤣🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बंधुवर!
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