क्या ईश्वर की सत्ता और उसके अस्तित्व के प्रति मन में संदेह रखना बुद्धि का परिचायक है? ईश्वर की सत्ता को नकारने वाला, कुतर्क युक्त ज्ञानाधिक्यता से ग्रस्त व्यक्ति वस्तुतः कहीं निरा जड़मति तो नहीं होता? आइये, विचार करें इस बिंदु पर।
मैं कोई नयी बात बताने नहीं जा रहा, केवल उपरोक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। हम जीव की उत्पत्ति से विचार करना प्रारम्भ करेंगे। इसे समझने के लिए हम मनुष्य का ही दृष्टान्त लेते हैं।
एक डिम्बाणु व एक शुक्राणु के संयोग से मानव की उत्पत्ति होती है। बाहरी संसार से पृथक, माता के गर्भ में एक नया जीवन प्रारम्भ होता है। जीव विज्ञान उसके विकास को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित तो करता है, किन्तु जीवन प्रारम्भ होने के साथ भ्रूण का बनना और उससे शिशु के उद्भव की प्रक्रिया जितनी जटिल होती है, इसे पूर्णरूपेण स्पष्ट नहीं कर सकता। शिशु का रूप लेते समय विभिन्न अंगों की उत्पत्ति व उनका विकास प्रकृति का गूढ़ रहस्य है। शिशु के हाथ वाले स्थान पर हाथ निर्मित होते हैं व पाँव वाले स्थान पर पाँव। आँखें, कान व नाक भी चेहरे पर ही बनते हैं, किसी अन्य स्थान पर नहीं। यदि प्राणी जगत की ही बात करें, तो स्त्री के गर्भ से बिल्ली या बिल्ली के गर्भ से कुत्ता जन्म नहीं लेता। इसी प्रकार प्राणी के गर्भ से प्राणी ही उत्पन्न होता है, पौधा नहीं एवं पौधा या वृक्ष कभी प्राणी को जन्म नहीं दे सकते।
मानव ने अन्तरिक्ष तक अपने हाथ पसार दिये हैं, प्रकृति के कई अनजाने रहस्यों की थाह वह पा चुका है। धरती पर बैठा वह स्वयं द्वारा निर्मित दुरूह यंत्रों को खिलौने की तरह संचालित कर लेता है, निर्माण से ले कर विध्वंस तक की प्रक्रियाएँ उसके बाँयें हाथ का खेल हैं, किन्तु प्रकृति के कई रहस्य अब भी उसके लिए अबूझ हैं।
अन्य अबोध्य विषयों की बात न कर हम अपने दैनिक जीवन के रहस्यों की ही बात करते हैं। क्या मानव जीवन (life) को उत्पन्न कर सका है? क्या वह मृत्यु के रहस्य को जान सका है? प्राणी जन्म लेने के पहले कहाँ था व मृत्योपरांत कहाँ जाता है? देह आत्मा नामक दिव्य तत्व के निकलते ही चेतनाविहीन क्यों हो जाती है, जबकि उसके सभी अंग विद्यमान रहते हैं? क्या जन्म व मृत्यु पर मानव विजय प्राप्त कर सका है?
उपरोक्त सभी प्रश्न अनुत्तरित हैं। इससे स्पष्ट है कि कोई न कोई दिव्य शक्ति अवश्य है, जो यह सब कुछ निर्धारित करती है।... और उसी को हम ईश्वर कहते हैं। विश्व का कोई भी सम्प्रदाय ऐसा नहीं है, जो उस सर्वशक्तिमान अलौकिक शक्ति के अस्तित्व को नहीं मानता हो। हाँ, यह बात अवश्य है कि सभी उसे पृथक नामों से जानते हैं, मानते हैं।
तो मित्रों, यदि उपरोक्त तर्कों से आप सभी सहमत हैं, तो क्यों न हम इस बात पर भी विचार करें कि हम अनुचित या अनैतिक काम क्यों करते हैं। (मनसा, वाचा कर्मणा च) मन से, वचन से और कर्म से, किसी भी प्रकार से किया गया अनुचित कृत्य अनुचित ही होता है। 'ईश्वर' नाम की वह शक्ति हमारी हर गतिविधि पर दृष्टि रखती है।
हममें से कुछ लोग चोरी करते हैं, डकैती करते हैं, अन्य के साथ विश्वासघात करते हैं, अपवित्र भावना रखते हैं या हिंसा (शारीरिक या मानसिक) का कार्य करते हैं। कुछ लोग साहित्यिक चोरी करते हैं। यथा, किसी अन्य लेखक (प्रतिष्ठित अथवा अस्थापित) की रचना को अथवा उसके कुछ भाग को चुरा कर कुछ फेर-बदल कर के फेसबुक, प्रतिलिपि, आदि पटलों पर प्रकाशित कर देते हैं अथवा किसी पत्रिका में प्रकाशित करवा देते हैं। इस साहित्यिक चोरी के उपरान्त, भले ही वह साहित्यिक चोर पुरस्कार ही क्यों न प्राप्त कर लें, उनकी आत्मा (यदि है) तो उन्हें धिक्कारेगी ही।
उपरोक्त वर्णित सभी कृत्य अपराध की श्रेणी में आते हैं, पाप कहलाते हैं। (दूषित भावना ही दूषित कर्म की जनक होती है, अतः यदि कोई व्यक्ति अपराध भले ही न करे, यदि उसके मन में दूषित भावना का उद्भव होता है तो भी वह एक अपराधी ही है।) ऐसे अपराधियों को, दुष्कर्मियों को समाज या कानून अपनी सीमित शक्ति के कारण कभी-कभी दण्डित नहीं कर पाते, किन्तु सर्वशक्तिमान, सर्वदृष्टा परमेश्वर उन्हें किसी न किसी रूप में दण्डित अवश्य करते हैं। हाँ, ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखने वाले अभागे मनुष्य दण्डित होने के बाद भी ईश्वरीय सत्ता को नकारेंगे ही। दयामय प्रभु उन्हें सत्य को समझने की शक्ति प्रदान करे, उनके लिए हम यही प्रार्थना कर सकते हैं।
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विचारणीय आलेख, गजेंद्र भाई। इस विषय पर मेरा लेख https://www.jyotidehliwal.com/2021/01/does-God-exist.html जरूर पढ़िएगा।
जवाब देंहटाएंजी ज्योति जी! आपका लेख अवश्य ही पढ़ना चाहूँगा
हटाएंसही कहा ईश्वरीय शक्ति के कितने ही उदाहरण है देश दुनिया में.. और सभी इसे मानते भी हैं बस अलग अलग नामों से।
जवाब देंहटाएंबहुत ही चिंतनपरक एवं विचारणीय लेख।
मेरे लेख के समर्थन में अपनी अभिव्यक्ति देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद!
हटाएंईश्वरीय शक्ति है , और सब मानते भी हैं लेकिन कुछ लोग मानते हुए भी कुतर्क करते हैं । विचारणीय लेख ।
जवाब देंहटाएंजी, धन्यवाद!
हटाएंबहुत ही सार्थक विषय पर चिंतनपूर्ण आलेख ।
जवाब देंहटाएंसभी को विचार करना चाहिए ।बहुत बधाई आपको ।
आपका हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-5-22) को क्या ईश्वर है?(चर्चा अंक-4445) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा