सुनने में आया है कि कॉन्ग्रेस समर्थित सम्पत पाल नामक महिला अपनी महिला गुलाबी गेंग की मदद से डॉ कुमार विश्वास को अमेठी और रायबरेली में घुसने पर डंडे मारने की धमकी दे रही है। क्या उम्दा प्रजातंत्र है यह ! क्या इन दोनों क्षेत्रों में कानून का शासन नहीं है या वहाँ इंसाफ-पसंद कोई मानव-समूह नहीं है कि यह सब हो पायेगा ? क्या भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को खड़ा कर विजय प्राप्त करने की कूटनीति आज के समय में भी काम आ जायेगी ? क्या इस तरीके से कॉन्ग्रेस लोकसभा की चुनाव-वैतरणी पार कर सकेगी ? क्या लोकसभा में केवल इन दो सीटों के साथ प्रवेश करना चाहती है कॉन्ग्रेस ? क्या महात्मा गांधी की कॉन्ग्रेस है यह ?
और सबसे बड़ा प्रश्न- क्या मैं, इन पंक्तियों का लेखक अब से कुछ वर्षों पहले तक इसी कॉन्ग्रेस का समर्थक हुआ करता था ?
“Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ, तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी। **********
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