सुनने में आया है कि कॉन्ग्रेस समर्थित सम्पत पाल नामक महिला अपनी महिला गुलाबी गेंग की मदद से डॉ कुमार विश्वास को अमेठी और रायबरेली में घुसने पर डंडे मारने की धमकी दे रही है। क्या उम्दा प्रजातंत्र है यह ! क्या इन दोनों क्षेत्रों में कानून का शासन नहीं है या वहाँ इंसाफ-पसंद कोई मानव-समूह नहीं है कि यह सब हो पायेगा ? क्या भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को खड़ा कर विजय प्राप्त करने की कूटनीति आज के समय में भी काम आ जायेगी ? क्या इस तरीके से कॉन्ग्रेस लोकसभा की चुनाव-वैतरणी पार कर सकेगी ? क्या लोकसभा में केवल इन दो सीटों के साथ प्रवेश करना चाहती है कॉन्ग्रेस ? क्या महात्मा गांधी की कॉन्ग्रेस है यह ?
और सबसे बड़ा प्रश्न- क्या मैं, इन पंक्तियों का लेखक अब से कुछ वर्षों पहले तक इसी कॉन्ग्रेस का समर्थक हुआ करता था ?
“अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी। “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया। “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...
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