कल TV पर एक मूवी देखी। दक्षिण भारतीय एक सुपर स्टार से सजी हुई यह मूवी यूँ तो एक साधारण फॉर्मूला मूवी थी, लेकिन इसके कथानक में जुड़ी दो आदर्शपरक बातें दिल की गहराइयों में बस गईं।
1) फ़िल्म का नायक एक व्यक्ति की कुछ मदद करता है और जब वह व्यक्ति उसका शुक्रिया अदा करता है तो नायक उससे कहता है कि उसे धन्यवाद नहीं चाहिए बल्कि इस मदद के बदले में वह तीन आदमियों की मदद करे और उन्हें इसी तरह का सन्देश देकर अन्य तीन-तीन आदमियों की मदद करने के लिए कहे।
नायक से मदद प्राप्त करने वाला एक सुपात्र व्यक्ति था। उसने नायक के निर्देशानुसार कार्य किया और समयान्तर में इस सद्प्रेरणा के प्रचार-प्रसार से हज़ारों लोगों का मन-मस्तिष्क मदद की भावना से सुवासित होता चला गया।
परिणामतः नायक के उस शहर में सत्कर्म लोगों की जीवनचर्या बन गया।
2) पांवों से विकलांग कुछ बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए उनकी दौड़-प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। प्रतियोगी बच्चों में से चार-पांच बच्चे लक्ष्य के क़रीब ही थे कि कुछ पीछे रह गए बच्चों में से एक ट्रेक पर गिर पड़ा और चोट लगने से उसके मुख से चीख निकल पड़ी। जैसे ही लक्ष्य के समीप पहुँचे बच्चों ने चीख सुनी और पीछे मुड़कर देखा, तुरत ही पलट कर लौट पड़े। उन्होंने ज़मीन पर गिरे हुए उस बच्चे को उठाकर उसकी बैसाखियाँ उसे थमाई और तब सभी बच्चे मिल कर एक-दूसरे के हाथों में हाथ डालकर मुस्कुराते हुए पुनः साथ-साथ लक्ष्य की और दौड़ चले।भले ही यह दृश्य फ़िल्म का हिस्सा था लेकिन सामान्य स्थिति वाले बच्चों में मुश्किल से ही ऐसा उदाहरण मिल सकता है।
काश ! उपरोक्त जैसे वाकिये हमें जब-तब वास्तविक जीवन में भी देखने को मिलते……
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