माननीय प्रधान मन्त्री जी, मेरी आप से गुजारिश है :-
1) दिल्ली के पुलिस-महकमे को समाप्त करवा दीजिये क्योंकि अब इसकी ज़रूरत नहीं रही। पीड़ित को रूपया देकर मामला रफ़ा-दफ़ा करने की पेशक़श तो अपराधी के रिश्तेदार ही कर लेंगे जो अभी पुलिस के कुछ अधिकारी कर रहे हैं।
2) मानवाधिकार- संस्था को भी हटा दीजिये क्योंकि पीड़ित की पीड़ा से अधिक चिंता इसे अपराधी के लिए रहती है जब भी अपराधी को कठोर सज़ा देने की बात उठती है।
3) ऐसे मुख्य मंत्रियों को सचिवालयों से हटाकर उनके घर भेज दीजिये जो आतंकवादियों / अपराधियों को सज़ा नहीं देने की वक़ालत करते हैं, ताकि वह अपनी खेती-बाड़ी सम्हालें।
4) हमारे देश का क़ानून बहुत कमज़ोर है इसलिए इसमें बदलाव करके कठोरतम बनवायें और ऐसा न कर सकें तो गुनहगारों को जनता को सुपुर्द करवा दें ताकि जनता उन दरिन्दों को उचित सजा दे; पांच वर्ष की मासूम बच्ची से दुष्कर्म करने वाले नर-पिशाच के शरीर में उसी तरह बोतल डाल सके जैसा उसने उस बच्ची के साथ किया।
5) अन्तिम प्रार्थना यह है कि कृपया अपना मौन त्यागें और कुछ ऐसा बदलाव व्यवस्था में कराएँ कि हम निडर होकर इस देश में रह सकें, जीना दूभर हो गया है माननीय! आप की संवेदना क्या कहती है नहीं पता, मेरी आँखों से तो आंसू सूख नहीं रहे हैं।
1) दिल्ली के पुलिस-महकमे को समाप्त करवा दीजिये क्योंकि अब इसकी ज़रूरत नहीं रही। पीड़ित को रूपया देकर मामला रफ़ा-दफ़ा करने की पेशक़श तो अपराधी के रिश्तेदार ही कर लेंगे जो अभी पुलिस के कुछ अधिकारी कर रहे हैं।
2) मानवाधिकार- संस्था को भी हटा दीजिये क्योंकि पीड़ित की पीड़ा से अधिक चिंता इसे अपराधी के लिए रहती है जब भी अपराधी को कठोर सज़ा देने की बात उठती है।
3) ऐसे मुख्य मंत्रियों को सचिवालयों से हटाकर उनके घर भेज दीजिये जो आतंकवादियों / अपराधियों को सज़ा नहीं देने की वक़ालत करते हैं, ताकि वह अपनी खेती-बाड़ी सम्हालें।
4) हमारे देश का क़ानून बहुत कमज़ोर है इसलिए इसमें बदलाव करके कठोरतम बनवायें और ऐसा न कर सकें तो गुनहगारों को जनता को सुपुर्द करवा दें ताकि जनता उन दरिन्दों को उचित सजा दे; पांच वर्ष की मासूम बच्ची से दुष्कर्म करने वाले नर-पिशाच के शरीर में उसी तरह बोतल डाल सके जैसा उसने उस बच्ची के साथ किया।
5) अन्तिम प्रार्थना यह है कि कृपया अपना मौन त्यागें और कुछ ऐसा बदलाव व्यवस्था में कराएँ कि हम निडर होकर इस देश में रह सकें, जीना दूभर हो गया है माननीय! आप की संवेदना क्या कहती है नहीं पता, मेरी आँखों से तो आंसू सूख नहीं रहे हैं।
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