आंसू थम नहीं रहे हैं ...बलात्कारी दरिन्दों ने दिल्ली में मेडिकल की छात्रा के साथ जो बहशियाना हरकत की है और उनकी जिस पैशाचिक पराकाष्ठा ने उस मासूम की सांसें भी छीन ली हैं उसे देखते हुए उन राक्षसों के अंग विच्छेद कर दिए जाने चाहियें। नहीं, यह सजा कम होगी, उन्हें फांसी या सूली पर चढ़ा दिया जाना चाहिये। नहीं, उनके टुकड़े-टुकड़े कर के चील-कौओं के सामने फ़ेंक दिया जाना चाहिए। नहीं, नहीं, नहीं ...उनके पाप के लिए ये सजाएं काफी नहीं होंगी, कोई बताये हमारे देश के रहनुमाओं को, न्याय के रक्षकों को या फिर मानवाधिकार के अनुयाइयों को, कि मानवता पर कलंक, उन जंगली भेड़ियों ( भेड़िये क्षमा करें इस तुलना के लिए) के लिए क्या सजा तजवीज हो ? प्रश्न है मेरा- 'क्या उम्र-कैद की वर्तमान अधिकतम सजा उन हैवानों के लिए काफी होगी ?'
“Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ, तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी। **********
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