द्रौपदी का चीर-हरण हो रहा है कौरवों के दरबार में। कई दुशासन दे रहे हैं अंजाम इस निर्लज्जता को और अपनी ही विवशता से सिर झुकाये कुछ पांडव असहाय से सह रहे हैं इस दुराचार को। निरीह द्रौपदी की आँखें पथरा गई हैं बिलखते-बिलखते, लेकिन इस कौरव-सभा में कोई उसका मददगार नज़र नहीं आ रहा। हमने इस भारत-भूमि को इतना अपवित्र कर दिया है कि श्रीकृष्ण भी शायद अवतरित होना नहीं चाहते यहाँ। आह…
द्रौपदी का चीर-हरण हो रहा है कौरवों के दरबार में। कई दुशासन दे रहे हैं अंजाम इस निर्लज्जता को और अपनी ही विवशता से सिर झुकाये कुछ पांडव असहाय से सह रहे हैं इस दुराचार को। निरीह द्रौपदी की आँखें पथरा गई हैं बिलखते-बिलखते, लेकिन इस कौरव-सभा में कोई उसका मददगार नज़र नहीं आ रहा। हमने इस भारत-भूमि को इतना अपवित्र कर दिया है कि श्रीकृष्ण भी शायद अवतरित होना नहीं चाहते यहाँ। आह…
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जवाब देंहटाएंपढ़ा मैंने इस लिंक पर जाकर। लेकिन बन्धुवर, वह आलेख अधिक स्पष्ट नहीं है, ऐसा लगा मुझे। वैसे मेरा यह उद्बोधन महाभारतकालीन द्रौपदी के लिए नहीं हो कर संकेतात्मक था।
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