आज बहुत दिनों बाद पंचवटी कॉलोनी के पास आयड़ नदी की तरफ से निकलना हुआ। नदी किनारे भीड़ देख कर मैं भी रुक गया। देखा, स्वच्छ पानी से लबालब भरी नदी कल-कल करती बह रही है। मन प्रफुल्लित हो उठा, मुग्ध-भाव से चिर-प्रतीक्षित इस मनोहारी दृश्य को अविराम निहार रहा हूँ मैं। उदयपुर में रहने वाले सभी नागरिक पिछले कई वर्षों से इस अभागी नदी में गंदे नालों व गटर से गिरते पानी का छिछला प्रवाह ही देखते आये हैं, उस समय के अलावा जब कि शहर की झीलों के ओवरफ्लो का पानी इसमें कुछ चंद दिनों के लिए भर आता है। समस्त प्रशासनिक अमला एवं चुने हुए जन-प्रतिनिधि जब-तब जनता के समक्ष लुभावने वादे ही करते आये हैं जैसी कि उनकी फितरत है।
मेरे अलावा अन्य लोग भी मुग्ध भाव से इस सुहाने दृश्य को देख रहे हैं। आज अचानक बरसों का सपना सच हुआ देख प्रसन्नता की स्मित सभी की आँखों में झलक रही है। ऐसा लग रहा है, जैसे उदयपुर पेरिस सदृश हो गया है।
अहा! अब इस नदी में कुलांचे भरती जल-राशि सभी को कितना आल्हादित कर रही है। मैं अभी यहाँ से जाना नहीं चाहता। मेरे साथ खड़े अपलक इन मनोरम पलों को जी रहे अन्य लोग भी यहाँ से हटने का नाम नहीं ले रहे थे। अचानक नदी में किसी चीज़ के गिरने से हलकी आवाज़ के साथ नदी का पानी उछला और उसकी कुछ बूँदें मेरे मुंह पर आ गिरीं।
... ओह! मेरी आँख खुल गई, यह तो सचमुच ही सपना था। वह आवाज़ बाहर शुरू हुई बारिश की थी, जिसकी फुहार मेरे चेहरे पर आई थी।
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