अभी स्टार प्लस पर फिल्म 'सिंघम' प्रदर्शित की जा रही थी और मैं मंत्र-मुग्ध इसे देख रहा था। चार बार इस फिल्म को पहले भी देख चुका हूँ। अभी कुछ देर पहले पुलिस इंस्पेक्टर सिंघम और उसके अधीनस्थों द्वारा एक भृष्ट मंत्री की पिटाई होते देखा और ख़ुशी से मन प्रफुल्लित हो गया। एक क्षण के लिए भूल गया था कि मैं फिल्म देख रहा हूँ। वास्तविक पुलिस में सिंघम जैसे ईमानदार अफसर हैं कहाँ और जो हैं वह तन से भले ही शाक्तिशाली हों, मन से बहुत ही कमज़ोर हैं। उनमें इतना साहस नहीं कि किसी भी राजनीतिज्ञ, चाहे वह कितना ही भृष्ट हो- के विरुद्ध आँख उठा सकें। अब तो विधानसभा और संसद में गुंडे-मवालियों के प्रवेश को लोकसभा में पक्ष और विपक्ष ने एकमत हो विधि-सम्मत करवा लिया है। सुप्रीम कोर्ट पर कार्य-पालिका ने अपनी महत्ता बना ली है फलतः पुलिस-विभाग और भी पंगु होने वाला है। आमजन और न्याय-प्रणाली का भगवान ही रक्षक है। एक बात फिल्म के अंतिम भाग में निराश मन को सान्त्वना दे गई कि सिंघम के हर कदम को बाधित करने वाले एक भृष्ट अफसर का अंत में ह्रदय-परिवर्तन हो जाता है। मेरी गुजारिश है समस्त पुलिस-कर्मियों से कि फिल्म 'सिंघम' को एक बार अवश्य देखें, हो सकता है आप में से उनका, जिनका होना चाहिए- ह्रदय-परिवर्तन हो जाये और अपनी इस ज़िंदगी को घृणा के दायरे से निकालकर जनता की नज़रों में सम्माननीय स्थान बना सकें।
“अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी। “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया। “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें