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"सिंघम"

 अभी स्टार प्लस पर फिल्म 'सिंघम' प्रदर्शित की जा रही थी  और मैं मंत्र-मुग्ध इसे देख रहा था। चार बार इस फिल्म को पहले भी देख चुका हूँ। अभी कुछ देर पहले पुलिस इंस्पेक्टर सिंघम और उसके अधीनस्थों द्वारा एक भृष्ट मंत्री की पिटाई होते देखा और ख़ुशी से मन प्रफुल्लित हो गया। एक क्षण के लिए भूल गया था कि मैं फिल्म देख रहा हूँ।  वास्तविक पुलिस में सिंघम जैसे ईमानदार अफसर हैं कहाँ और जो हैं वह तन से भले ही शाक्तिशाली हों, मन से बहुत ही कमज़ोर हैं। उनमें इतना साहस नहीं कि किसी भी राजनीतिज्ञ, चाहे वह कितना ही भृष्ट हो- के विरुद्ध आँख उठा सकें। अब तो विधानसभा और संसद में गुंडे-मवालियों के प्रवेश को लोकसभा में पक्ष और विपक्ष ने एकमत हो विधि-सम्मत करवा लिया है। सुप्रीम कोर्ट पर कार्य-पालिका ने अपनी महत्ता बना ली है फलतः पुलिस-विभाग और भी पंगु  होने वाला है। आमजन और न्याय-प्रणाली का भगवान  ही रक्षक है। एक बात फिल्म के अंतिम भाग में निराश मन को सान्त्वना दे गई कि सिंघम के हर कदम को बाधित करने वाले एक भृष्ट अफसर का अंत में ह्रदय-परिवर्तन हो जाता है। मेरी गुजारिश है समस्त पुलिस-कर्मियों से कि फिल्म 'सिंघम' को एक बार अवश्य देखें, हो सकता है आप में से उनका, जिनका होना चाहिए- ह्रदय-परिवर्तन हो जाये और अपनी इस ज़िंदगी को घृणा के दायरे से निकालकर जनता की नज़रों में सम्माननीय स्थान बना सकें।





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