Skip to main content

यह कैसे भगवान हैं ?



आज के एक समाचार के अनुसार बीकानेर (राज.) में रेजिडेंट डॉक्टर्स एवं किसी मरीज के तीमारदारों के बीच किसी मुद्दे पर कुछ झड़प और मारपीट की घटना हुई और उसके बाद रेजिडेंट डॉक्टर्स हड़ताल पर चले गये मरीजों को ईश्वर के भरोसे छोड़कर। अस्पताल के यह भगवान इतने निर्दयी और बेशर्म क्यों होते जा रहे हैं - यह आज का एक अबूझ सवाल है। हो सकता है पिछली एक-दो घटनाओं में मरीजों के परिजनों की गलती रही हो, लेकिन बाद की अधिकांश घटनाओं में रेजिडेंट्स ने अपनी एकता एवं बहुसंख्यता के उन्माद में न केवल मरीजों एवं उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार किया है बल्कि हड़ताल का सहारा लेने की गैर-जिम्मेदारी भी बरती है। प्रशासन भी दबाव में आकर इनकी उचित-अनुचित मांगें मानने को विवश होता रहा है और जनहित में उनकी हठधर्मिता के आगे झुकता रहा है जो एक शोचनीय विषय बन गया है।
   जनता की सेवा की एवज में पल रहे इस चिकित्सक-समुदाय को अपने झूठे अहंकार से बाज आकर अपने कर्त्तव्य को समझना चाहिए और अगर वह ऐसा नहीं करता तो जनता उसे कभी अच्छा सबक सिखा भी सकती है।
   खेलों में एक व्यवस्था रखी जाती है कि यदि ठीक मैच के पहले कोई खिलाड़ी घायल या रुग्ण हो जाय तो पहले से आरक्षित ख़िलाड़ी को उसकी जगह खेलने को भेज दिया जाता है। ठीक इसी तरह सरकार को भी चाहिए कि एक आरक्षित दस्ता डॉक्टर्स का तैयार रखे जिसे निरर्थक हड़ताल पर जाने वाले दिमागी रुग्ण डॉक्टर्स के बदले मरीजों के उपचार के लिए भेजा जा सके और हड़तालियों को भेजा जाये उनके घर।    

                                                                          *********

Comments

Popular posts from this blog

बेटी (कहानी)

  “अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी।  “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया।  “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

श्राद्ध (लघुकथा)

अभिजीत तन्मय हो कर वृद्धाश्रम में बुज़ुर्गों को खाना खिला रहा था। परोसगारी में आश्रम का एक कर्मचारी राघव भी उसकी मदद कर रहा था।  "हाँ जी, आ जाइये।" -दरवाज़े पर एक व्यक्ति को खड़ा देख राघव ने कहा।   अभिजीत ने पलट कर देखा, उसका चचेरा भाई परेश आया था।  "भाई साहब, भाभी ने मुझे बताया कि आप यहाँ हैं, जबकि मैंने पहले ही आपको सूचित कर दिया था कि आज सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध है और मेरे यहाँ ब्राह्मण-भोज होगा। आपको भी भाभी के साथ मैंने अपने यहाँ निमंत्रित किया था न! मैं आपको लेने आया हूँ।" -परेश आते ही बोला।  "परेश, तुम उन पूर्वजों की शांति के लिए यह श्राद्ध करते हो, जिन्हें तुमने नहीं देखा, जबकि चाचा जी को वृद्धावस्था में अकेले छोड़ कर तुम अपने बीवी-बच्चों के साथ पृथक फ्लैट में रहते हो। क्या यह युक्तिसंगत है?... इन बुज़ुर्गों को देख रहे हो परेश? इनमें से कुछ लोग तो अपनी संतान के दुर्व्यवहार के कारण यहाँ हैं और कुछ को उनकी औलादों ने ही यहाँ छोड़ रखा है। ..." परेश और राघव चुपचाप खड़े अभिजीत को सुन रहे थे। अभिजीत ने कहना जारी रखा- "इन लोगों के न रहने पर इनकी औलादें द...