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अभी उन्हें तपना है...

प्रजातंत्र भी क्या अजीब शै है ! तुकी-बेतुकी जो चाहे, जब चाहे, बोल ले। जो कहा गया है, सुना गया है- उसके स्रोत की विश्वसनीयता को परखने का प्रयास भी कोई नहीं करता। अफीमघर से निकली गप्पें भी क्रिया-प्रतिक्रियाओं के सहारे सत्य से अधिक आधार पा लेती हैं जन-मानस के मन-मस्तिष्क में।
   अभी हाल ही सुनने में आया कि केजरीवाल जी ने मोदी जी को  चुनाव लड़ने की चुनौती दी है और वह भी गुजरात में। है न अफीमखाने की गप्प ? अब, आईआईटीयन केजरीवाल जी इतने भी नादान नहीं कि विश्व-भर में अपनी चमक बिखेरने वाली हस्ती मोदी जी को चुनौती दें। अगर इस ख़बर में तनिक भी सच्चाई है तो केजरीवाल जी ने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है।
   केजरीवाल जी आम आदमी के प्रतिनिधि हैं- सीधे और सच्चे। जो कुछ भी उन्हें सही लगता है, उस पर बेबाक टिपण्णी कर देते हैं चाहे किसी को बुरा लगे या भला और यही कारण है कि अपने ही गुरु आ. अन्ना जी को भी खरी-खरी कह देते हैं। केजरीवाल जी का कद फिलहाल मुख्यमंत्री की कुर्सी के लायक ही है। इस पद पर अपनी योग्यता प्रमाणित करने के बाद ही जनता उनकी  क्षमता को अगली कसौटी पर कसने के लिए तत्पर हो सकेगी। मोदी जी के समान ही कुशल राजनेता एवं सफल प्रशासक की छवि उन्हें बनानी होगी और तब ही वह सच्चे जन-नायक के रूप में उभर सकेंगे। अभी उन्हें तपना है और यदि अपनी नीयत की वर्त्तमान स्वच्छता को वह सदैव के लिए बरक़रार रख सके तो देश को सही नायक मिल जाएगा, जिसकी प्रबल आवश्यकता है भ्रष्टाचार के जख्मों से कराहते हमारे देश को। जय भारत !

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