सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दिल्ली में AAP-मंत्रीमंडल का शपथ-ग्रहण ---

     आज दिल्ली के रामलीला मैदान में 'आप' के नवगठित मंत्रीमंडल के सदस्यों ने पद व गोपनीयता की शपथ ली। केंद्र-सरकारों व विभिन्न राज्य-सरकारों द्वारा अब तक कितनी ही बार शपथें ली जाती रही हैं और तदर्थ समारोह भी आयोजित होते रहे हैं, लेकिन कई मायनों में आज का यह आयोजन अद्भुत और अनुकरणीय था। मंत्रियों का मेट्रो-ट्रेन में सफ़र करके समारोह स्थल पर जाना प्रतीकात्मक रूप से तो अच्छा कहा जा सकता है लेकिन इसे अधिक प्रभावकारी कदम नहीं माना जा सकता। ऐसा किया जाना इतना आवश्यक भी नहीं था क्योंकि सदैव इस तरह यात्रा करना न तो व्यवहारिक है और न ही सम्भव। फिर भी
यह समारोह कई मायनों में प्रशंसा-योग्य था। निहायत ही सादगीपूर्ण ढंग से निर्वहित किये गए इस आयोजन में कोई व्यक्ति VIP नहीं था, पार्टी के नाम के अनुरूप ही मंत्री से लेकर सामान्य व्यक्ति तक हर व्यक्ति आम आदमी ही था। मंत्रियों एवं विधायकों के परिवार भी जनता के मध्य ही बैठे थे सामान्य लोगों की तरह। सभी के लिए एक जैसी कुर्सियां, एक-सी सुविधा थी इसलिए प्रवेश-पत्र का भी प्रावधान नहीं था। सही मायनों में लोकतंत्र आज देखा, न केवल दिल्ली-वासियों ने अपितु सम्पूर्ण देश ने। अभूतपूर्व था यह दृश्य ! 
    यह तो झलक थी मंत्रियों के शपथ-ग्रहण समारोह की। अब हमें देखना है कि 'आप' जनता से किये गए अपने वादों को किस प्रकार निभाएगी, निभा सकेगी भी या नहीं। 'प्रारम्भ' तो पूरी आशा जगाता है, लेकिन उधार की सत्ता 'आप' को पूरा आत्मविश्वास दे पायेगी ? जिस तबके से 'आप' के विधायक आये हैं वह न तो सत्ता-लोलुप है न ही विकृत महत्वाकांक्षी, इसलिए ईमानदारी का निर्वाह इनके लिए अधिक कठिन नहीं होगा।
हाँ, अनुभव के  नजरिये से 'आप' शून्य है अतः उन्हें प्रारम्भिक कठिनाइयों से रूबरू होना पड़ेगा। प्रशासनिक सफलता के लिए जहाँ उन्हें कुछ निपुण सलाहकारों की ज़रुरत होगी वहीँ सही क्रियान्वयन के लिए ज़रुरत होगी सचिवालय में ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों की टीम की। 
    कॉन्ग्रेस पार्टी की बिना शर्त समर्थन की पेशकश की ऊहापोह से निकल कर 'आप' ने सरकार बनाने का साहस दिखाया है अतः अब कॉन्ग्रेस का नैतिक दायित्व है कि वह 'आप' को दिया गया समर्थन ईमानदारी से तब तक जारी रखे जब तक 'आप' लोकहित में काम करती रहती है। इससे कॉन्ग्रेस पार्टी भी अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को कुछ हद तक पुनः प्राप्त कर सकेगी। बीजेपी को भी 'आप' के कारण दिल्ली में बहुमत प्राप्त नहीं कर पाने की टीस को भुला कर sportsman spirit रखनी चाहिए व दिल्ली के सर्वांगीण विकास की मुहिम में 'आप' की राह में बाधा न बनते हुए एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए। ऐसा सब हो सका तभी दिल्ली की जनता के साथ न्याय हो पायेगा। जय भारत !
  

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तन्हाई (ग़ज़ल)

मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- मौसम बेरहम देखे, दरख्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार  आएगी  कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा  मेरा  जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

बेटी (कहानी)

  “अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी।  “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया।  “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********