आज पाँच सितम्बर- शिक्षक दिवस के दिन मैं अपने उस रहनुमा शिक्षक को कैसे भूल सकता हूँ? ... कभी नहीं भूल सकता!
रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, अजमेर में चार वर्षीय डिग्री कोर्स के तृतीय वर्ष में पढ़ रहा था मैं उन दिनों। फिज़िक्स की क्लास थी। लेक्चरर ने कक्ष में प्रवेश किया। नाम था उनका एस. सी. जैन। निहायत ही सज्जन व्यक्ति थे वह। (वस्तुतः 'थे' कहना तो सही नहीं होगा क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह अभी भी सलामत हैं व अजमेर में रहते हैं।) तो, क्लास में आकर चॉक उठा कर उन्होंने पढ़ाना शुरू ही किया था कि उनके सिर का निशाना साध कर मैंने चॉक का एक टुकड़ा फेंका। चॉक उनके सिर की गंज पर ठीक निशाने पर लगा और सभी स्टूडेंट्स ने ज़ोरदार ठहाका लगाया। जैन सर ने पलट कर हम सब को ध्यान से देखा व मेरे चेहरे के हाव-भाव देख कर जान लिया कि यह खुराफात मेरी थी। उन्होंने मुझे क्लास से बाहर निकल जाने को कहा, लेकिन मैंने अपनी ग़लती स्वीकार नहीं कर, बाहर निकलने से यह कह कर इंकार कर दिया कि बाहर चले जाने पर मेरी पढ़ाई का नुक्सान होगा। उन्होंने दूसरी सज़ा तज़वीज़ की और मुझे क्लास में ही खड़े रहने को कहा। मैंने इसे स्वीकार किया और पूरे पीरियड खड़ा रहा।
क्योंकि मैं स्वभाव से उद्दण्डी नहीं था और अनायास ही खुराफात कर गया था अतः मन में दुखी तो था ही, एक अज्ञात भय भी कई दिनों तक मन में रहा कि कभी कोई सज़ा मुझे इस ग़लती के लिए नहीं भुगतनी पड़ जाये।
बात आई-गई हो गई और कोई तात्कालिक दुष्प्रभाव मुझ पर मेरी भयाक्रांत सोच का नहीं पड़ा। इस साल मैं कॉलेज में सेक्रेट्री के पद पर चुनाव लड़ा था तथा साहित्यिक गतिविधियों में अधिक लिप्त रहा था, अतः पढाई के क्षेत्र में थोड़ा फिसड्डी रह गया था।
वार्षिक परीक्षा के दिन आये। फिज़िक्स का प्रैक्टिकल एक्ज़ाम हो रहा था। इन्टरनल परीक्षक वही एस. सी. जैन सर थे। लॉटरी सिस्टम से हमें दो एक्सपेरिमेंट्स की चिट उठानी थीं। चिट खोलने पर मुझे जो एक्सपेरिमेंट्स मिले थे वह दोनों ही दुर्भाग्य से मेरे किये हुए नहीं थे। मैं पसीना-पसीना हो गया था। क्लास से वॉशरूम के बहाने बाहर आया मैं, जहाँ हमें सहयोग देने (नक़ल कराने) के लिए कुछ हमारे साथी खड़े थे। मैंने उन्हें अपने एक्सपेरिमेंट्स के नाम बताये और उन्होंने दस मिनट बाद मुझे वापस बुलाया। मैं दूसरी बार फिर बहाना बना कर बाहर आया तो मेरे मित्र ने एक एक्सपेरिमेंट की रीडिंग्स मुझे दीं, लेकिन दूसरे एक्सपेरिमेंट में कोई मदद नहीं कर पाया। मैंने तुरंत भीतर जा कर रीडिंग्स एग्जाम-कॉपी में नक़ल कर लीं। इस तरह 40 से 50% तकअंक पाने की उम्मीद हो गई थी।
कुछ ही देर में इन्टरनल परीक्षक जैन सर आये व रीडिंग्स देखीं। उन्हें एक रीडिंग पर गोला लगाना था। रीडिंग्स देख कर उन्होंने पूछा- "क्या तुमने यह एक्सपेरिमेंट अभी किया है?"
मैंने दृढ़ता बताते हुए झूठ बोला- "जी सर।"
जैन सर- "तुमने किलोग्राम्स में रीडिंग लिखी हैं, जबकि तुम्हें यहाँ ग्राम्स (छोटी यूनिट) के weights दिये गए हैं। यह कैसे संभव हुआ?"
अब मेरा ध्यान गया कि मैंने नक़ल में अक़ल नहीं लगाई थी। मेरा चेहरा उतर गया था, इतना ही कह सका- "सॉरी सर।" कुछ ही क्षणों में मुझे चॉक वाली घटना याद आ गई और अपना बिगड़ा भविष्य मेरी आँखों के सामने तैर गया। मैंने नर्वस-भाव से उनकी ओर देखा। उन्होंने ख़ामोशी से मुझे एग्ज़ामिनर टेबल की ओर चलने लो कहा। मैं उनके साथ वहाँ गया। एक्सटर्नल उस समय बाहर गए हुए थे। जैन सर ने चार-पाँच एक्सपेरिमेन्ट्स दिखा कर एक चुन लेने को कहा। मुझे जो एक्सपेरिमेन्ट आता था मैंने चुन लिया और उसे करने की इज़ाज़त सर ने मुझे दे दी। अभी कुछ समय शेष था जिसमे यह एक एक्सपेरिमेन्ट मैं कर सकता था। इस तरह मैं उत्तीर्ण होने लायक अंक पाने के योग्य हो गया था। जैन सर ने न केवल यहाँ मेरी मदद की, अपितु वायवा में भी अप्रत्यक्ष मदद कर 5 में से 4 अंक मुझे दिलवाये।
मैंने परीक्षा के बाद जैन सर के चैम्बर में जा कर अपना सिर उनके पाँवों में रख दिया और कहा- "सर, मुझे उस दिन क्लास में किये अपराध के लिए क्षमा कर दीजिये। यदि आपने प्रैक्टिकल में मेरी मदद नहीं की होती तो मेरा कॅरिअर बर्बाद हो जाता, क्योंकि अनुत्तीर्ण होने के बाद मैं अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकता था।"
जैन सर ने स्नेह से मुझे उठाते हुए कहा- "बेटा, तुम सब हमारे बच्चे हो। तुम्हारी उम्र में हम भी यही सब-कुछ करते थे। हम तुम्हें डाटेंगे-फटकारेंगे, लेकिन दिल से नाराज़ कभी नहीं होंगे। अब अगले साल अच्छी मेहनत करना।"
मैं उनके प्रति कृतज्ञ भाव लिये वहाँ से लौटा। अगले साल पढ़ाई पूरी होने पर कॉलेज छूटा। वर्षों नौकरी करने के बाद सेवानिवृत भी हो गया।
वर्ष 2017 में उसी कॉलेज में हुए हमारे पहले एलुम्नाई मीट में जब अजमेर जाना हुआ तो जैन सर का पता मालूम कर उनके घर गया। उनके चरण-स्पर्श किये व उनको पूर्व समय की सारी बातें याद दिलाई। भाव-विह्वल हो कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया।
ऐसे उज्ज्वल व्यक्तित्व वाले मेरे इस महान-आत्मा शिक्षक को मैं आज शिक्षक-दिवस पर सविनय वन्दन करता हूँ।
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रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, अजमेर में चार वर्षीय डिग्री कोर्स के तृतीय वर्ष में पढ़ रहा था मैं उन दिनों। फिज़िक्स की क्लास थी। लेक्चरर ने कक्ष में प्रवेश किया। नाम था उनका एस. सी. जैन। निहायत ही सज्जन व्यक्ति थे वह। (वस्तुतः 'थे' कहना तो सही नहीं होगा क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह अभी भी सलामत हैं व अजमेर में रहते हैं।) तो, क्लास में आकर चॉक उठा कर उन्होंने पढ़ाना शुरू ही किया था कि उनके सिर का निशाना साध कर मैंने चॉक का एक टुकड़ा फेंका। चॉक उनके सिर की गंज पर ठीक निशाने पर लगा और सभी स्टूडेंट्स ने ज़ोरदार ठहाका लगाया। जैन सर ने पलट कर हम सब को ध्यान से देखा व मेरे चेहरे के हाव-भाव देख कर जान लिया कि यह खुराफात मेरी थी। उन्होंने मुझे क्लास से बाहर निकल जाने को कहा, लेकिन मैंने अपनी ग़लती स्वीकार नहीं कर, बाहर निकलने से यह कह कर इंकार कर दिया कि बाहर चले जाने पर मेरी पढ़ाई का नुक्सान होगा। उन्होंने दूसरी सज़ा तज़वीज़ की और मुझे क्लास में ही खड़े रहने को कहा। मैंने इसे स्वीकार किया और पूरे पीरियड खड़ा रहा।
क्योंकि मैं स्वभाव से उद्दण्डी नहीं था और अनायास ही खुराफात कर गया था अतः मन में दुखी तो था ही, एक अज्ञात भय भी कई दिनों तक मन में रहा कि कभी कोई सज़ा मुझे इस ग़लती के लिए नहीं भुगतनी पड़ जाये।
बात आई-गई हो गई और कोई तात्कालिक दुष्प्रभाव मुझ पर मेरी भयाक्रांत सोच का नहीं पड़ा। इस साल मैं कॉलेज में सेक्रेट्री के पद पर चुनाव लड़ा था तथा साहित्यिक गतिविधियों में अधिक लिप्त रहा था, अतः पढाई के क्षेत्र में थोड़ा फिसड्डी रह गया था।
वार्षिक परीक्षा के दिन आये। फिज़िक्स का प्रैक्टिकल एक्ज़ाम हो रहा था। इन्टरनल परीक्षक वही एस. सी. जैन सर थे। लॉटरी सिस्टम से हमें दो एक्सपेरिमेंट्स की चिट उठानी थीं। चिट खोलने पर मुझे जो एक्सपेरिमेंट्स मिले थे वह दोनों ही दुर्भाग्य से मेरे किये हुए नहीं थे। मैं पसीना-पसीना हो गया था। क्लास से वॉशरूम के बहाने बाहर आया मैं, जहाँ हमें सहयोग देने (नक़ल कराने) के लिए कुछ हमारे साथी खड़े थे। मैंने उन्हें अपने एक्सपेरिमेंट्स के नाम बताये और उन्होंने दस मिनट बाद मुझे वापस बुलाया। मैं दूसरी बार फिर बहाना बना कर बाहर आया तो मेरे मित्र ने एक एक्सपेरिमेंट की रीडिंग्स मुझे दीं, लेकिन दूसरे एक्सपेरिमेंट में कोई मदद नहीं कर पाया। मैंने तुरंत भीतर जा कर रीडिंग्स एग्जाम-कॉपी में नक़ल कर लीं। इस तरह 40 से 50% तकअंक पाने की उम्मीद हो गई थी।
कुछ ही देर में इन्टरनल परीक्षक जैन सर आये व रीडिंग्स देखीं। उन्हें एक रीडिंग पर गोला लगाना था। रीडिंग्स देख कर उन्होंने पूछा- "क्या तुमने यह एक्सपेरिमेंट अभी किया है?"
मैंने दृढ़ता बताते हुए झूठ बोला- "जी सर।"
जैन सर- "तुमने किलोग्राम्स में रीडिंग लिखी हैं, जबकि तुम्हें यहाँ ग्राम्स (छोटी यूनिट) के weights दिये गए हैं। यह कैसे संभव हुआ?"
अब मेरा ध्यान गया कि मैंने नक़ल में अक़ल नहीं लगाई थी। मेरा चेहरा उतर गया था, इतना ही कह सका- "सॉरी सर।" कुछ ही क्षणों में मुझे चॉक वाली घटना याद आ गई और अपना बिगड़ा भविष्य मेरी आँखों के सामने तैर गया। मैंने नर्वस-भाव से उनकी ओर देखा। उन्होंने ख़ामोशी से मुझे एग्ज़ामिनर टेबल की ओर चलने लो कहा। मैं उनके साथ वहाँ गया। एक्सटर्नल उस समय बाहर गए हुए थे। जैन सर ने चार-पाँच एक्सपेरिमेन्ट्स दिखा कर एक चुन लेने को कहा। मुझे जो एक्सपेरिमेन्ट आता था मैंने चुन लिया और उसे करने की इज़ाज़त सर ने मुझे दे दी। अभी कुछ समय शेष था जिसमे यह एक एक्सपेरिमेन्ट मैं कर सकता था। इस तरह मैं उत्तीर्ण होने लायक अंक पाने के योग्य हो गया था। जैन सर ने न केवल यहाँ मेरी मदद की, अपितु वायवा में भी अप्रत्यक्ष मदद कर 5 में से 4 अंक मुझे दिलवाये।
मैंने परीक्षा के बाद जैन सर के चैम्बर में जा कर अपना सिर उनके पाँवों में रख दिया और कहा- "सर, मुझे उस दिन क्लास में किये अपराध के लिए क्षमा कर दीजिये। यदि आपने प्रैक्टिकल में मेरी मदद नहीं की होती तो मेरा कॅरिअर बर्बाद हो जाता, क्योंकि अनुत्तीर्ण होने के बाद मैं अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकता था।"
जैन सर ने स्नेह से मुझे उठाते हुए कहा- "बेटा, तुम सब हमारे बच्चे हो। तुम्हारी उम्र में हम भी यही सब-कुछ करते थे। हम तुम्हें डाटेंगे-फटकारेंगे, लेकिन दिल से नाराज़ कभी नहीं होंगे। अब अगले साल अच्छी मेहनत करना।"
मैं उनके प्रति कृतज्ञ भाव लिये वहाँ से लौटा। अगले साल पढ़ाई पूरी होने पर कॉलेज छूटा। वर्षों नौकरी करने के बाद सेवानिवृत भी हो गया।
वर्ष 2017 में उसी कॉलेज में हुए हमारे पहले एलुम्नाई मीट में जब अजमेर जाना हुआ तो जैन सर का पता मालूम कर उनके घर गया। उनके चरण-स्पर्श किये व उनको पूर्व समय की सारी बातें याद दिलाई। भाव-विह्वल हो कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया।
ऐसे उज्ज्वल व्यक्तित्व वाले मेरे इस महान-आत्मा शिक्षक को मैं आज शिक्षक-दिवस पर सविनय वन्दन करता हूँ।
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