फेसबुक में एक परम्परा है, ‘तू मेरी पोस्ट लाइक करे तो मैं तेरी पोस्ट लाइक करूँ’...और इसी परम्परा का निर्वाह अधिकांश लोग करते हैं। यदि आपने कई लोगों की पोस्ट लाइक की हैं, तो आपकी कचरा-पोस्ट को भी तीन अंकों में लाइक्स और प्यारे-प्यारे कमैंट्स मिल जाएँगे और यदि आप व्यस्ततावश या किसी अन्य कारण से लोगों की पोस्ट लाइक करने से चूक गए तो आपकी दमदार पोस्ट को भी लाइक्स का सूखा झेलना पड़ेगा। जी हाँ, मेरी साफ़गोई के लिए मुझे मुआफ़ करें, लेकिन हक़ीकत यही है।
तो जनाब, यही वह वज़ह है कि पान की दूकान पर खड़े-खड़े अफलातूनी तुकबन्दी करने वाले सूरमा जब ‘कवि’ कहलाने के शौक से दो-तीन बेतुकी पंक्तियाँ फेसबुक पर चिपका देते हैं तो ‘वाह-वाह’, ‘क्या बात है’, ‘क्या लिखा है’, ‘बहुत खूब’, जैसे जुमलों की बख्शीश फेसबुकिये दोस्तों की तरफ से मिल जाती है।
जब ऐसे हालात नज़र आते हैं और क़ाबिलेबर्दाश्त नहीं रहते तो देखने-पढ़ने वालों को झुंझलाहट तो होगी ही (जो क़ायदे से नहीं होनी चाहिए, पर हो जाती है), लेकिन अच्छे हाज़मे वाले लोग इसे पचा जाते हैं। मेरे जैसे इंसान से जब नहीं रहा गया तो मैंने भी अनधिकृत रूप से ऐसे कवियों को नसीहत देने के लिए बेसाख्ता ही निम्नाङ्कित पंक्तियाँ ‘कविता क्या है’ शीर्षक के साथ लिख कर अपनी नाराज़गी दर्ज़ करा दी।
कविता क्या है...
छोटे गड्ढे, कुछ नालों से, नहीं कभी सरिता बनती,
कुछ शब्दों की तुकबन्दी से,कभी नहीं कविता रचती।
पत्थर-दिल को पिघला दे जो, रोते को बहलाती है,
कायर दिल में शोला भर दे, वह कविता कहलाती है।
कुछ ने पढ़ा होगा, कइयों ने नहीं पढ़ा होगा। जिन्होंने पढ़ा होगा, वह भी क्यों समझेंगे? मेरी यह लघु-कविता कोई गीता-ज्ञान तो था नहीं। नतीज़तन इसके बाद भी लोगों ने अपनी मनमानी नहीं छोड़ी।
मैं भी कहाँ हार मानने वाला था! मैंने स्वयं को केन्द्रित करअब एक कालजयी रचना का निर्माण किया और फिर उसे फेसबुक पर परोस दी।
मुझ जैसे कवियों की रचना, तार है न तम्य है,
मीडिया पर लाइक करें तो,बाक़ी सब क्षम्य है।
जानते हैं, फिर क्या हुआ? ….
होना क्या था, अब भी किसी पर कोई असर नहीं हुआ😀।
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