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'रात्रि-कर्फ्यू'

                                                                   


  हमारे देश के कुछ प्रांतों के कुछ शहरों में कोरोना में हो रही बढ़ोतरी के कारण रात्रि का कर्फ्यू लगाया गया है। नहीं समझ में आ रहा कि रात्रि-कर्फ्यू का औचित्य क्या है? अब कर्फ्यू है तो आधी रात को बाहर जा कर देख भी तो नहीं सकते कि कौन-कौन सी दुकानें, सब्जी मंडियाँ व सिनेमा हॉल रात-भर खुले रहने लगे हैं या फिर लोग झुण्ड बना कर सड़कों पर कीर्तन कर रहे हैं। सरकार या प्रशासन, कोई भी जनता को इस रात्रि-कर्फ्यू का औचित्य या उपयोगिता नहीं बता रहा है। 

   जैसा कि टीवी में देखते हैं, दिन के समय पूरे देश में सड़कों पर, सब्जी मंडियों में और बाज़ारों में लोगों की रेलमपेल लगी रहती है। न तो लोगों के मध्य दो गज की दूरी होती है और न हर शख़्स ने मास्क पहना हुआ होता है। प्रशासन यह देख नहीं पाता, इसे रोक नहीं पाता। प्रशासन को लगता है, हमारे देश की जनता समझदार है, स्व-अनुशासित है। प्रशासन की इसमें शायद कोई ग़लती नहीं है क्योंकि यह देखने के लिए कि कोई कर्फ्यू तोड़ तो नहीं रहा है, वह रात को जागता है, परिणामतः दिन में उसे सोना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन कोरोना-पीड़ितों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। भगवान-भरोसे रहना लोगों की विवशता बन गई है। 

   अधिक अच्छा तो यह है कि तीन दिन पूर्व जनता को सूचित कर पहले की तरह सभी प्रभावित राज्यों में पन्द्रह-पन्द्रह दिन का लॉक डाउन क्रम-बद्ध तरीके से डेढ़-दो माह तक के लिए फिर से लगाया जाए। हाँ, जनहित में कुछ आपात-सेवा कर्मियों व अनुष्ठानों को समुचित दिशा-निर्देशों के साथ इसमें छूट दी जानी चाहिए। तब तक वैक्सीन लगाने का अभियान और अच्छी गति पकड़ लेगा और वर्तमान स्थिति की भयावहता से मुक्ति मिल सकेगी। व्यवसाय-जगत अपने लाभ-हानि की व्यावसायिक सोच से उबर कर सरकार और जनता का पूरा सहयोग करे, यह भी अपेक्षित है। 

  प्रशासन में कुछ चेतना जागे तो अच्छा ही है, लोगों के घर और उजड़ने से बच जायेंगे। अन्यथा वही 'भगवान् भरोसे' वाली स्थिति ही बनी रहनी है। 

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