विगत माह की रचना ... दो रुबाइयाँ -
हमीं ने दिया रुतबा उनको,
हम से ही गिला करने लगे,
वो राहों में हमकदम क्या हुए,
खुद को ही खुदा कहने लगे।
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हममें वो ताक़त है, वो जज़्बा है,
कि हर मुश्किल को आसां बना देंगे।
कुछ क़दम मेरे हमक़दम तो बनो,
हम आसमां भी छू के दिखा देंगे।
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