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डायरी के पन्नों से ..."बोलो वह कौन जुआरी है?"

 

      रीजनल कॉलेज ऑफ एजुकेशन, अजमेर में तृतीय वर्ष के अध्ययन के दौरान प्रकृति पर लिखी गई यह कविता स्नेही पाठकों को पसंद आएगी, ऐसा मैं मानता हूँ।
     पाठक बंधुओं! प्रारम्भ में इस कविता के छः छन्द ही मैंने लिखे थे। कॉलेज के एक समारोह में मुझे कविता-पाठ करना था और मैं यह कविता पढने के लिए हॉल में पहली पंक्ति में बैठा अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। तभी मेरी नज़र दायीं पंक्ति में बैठी मेरी एक जूनियर 'वसुधा टीके' पर पड़ी। इस समारोह में कुछ लड़कियाँ साड़ी पहन कर आई थीं, उनमें से एक वसुधा भी थी। वसुधा हरे रंग की साड़ी में बहुत सुन्दर लग रही थी। मेरे कवि-मन में शरारत के कीड़े कुलबुलाये और मैंने अपनी कविता में एक आशुरचित (तुरत रचा गया) छन्द और जोड़ दिया। नाम पुकारे जाने पर मैंने स्टेज पर जाकर यह कविता सुनाई।
  अब मैं अकेला खुराफाती तो था नहीं कॉलेज में, सो वसुधा से जुड़ा छन्द आते ही आगे-पीछे के कई साथी छात्र-छात्राओं की ठहाका भरी निगाहें वसुधा पर जम गईं और वसुधा थी कि शर्म से पानी-पानी! सच मानिए, वसुधा फिर भी मुझ पर नाराज़ नहीं हुई, बहुत भली लड़की थी वह!
  
     तो मित्रों, वही कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। कविता का मुखड़ा है- 'बोलो वह कौन जुआरी है?' --
  
                                                                                     
   


     तमस हटा है दिशा-दिशा से,

 पूछ रही है उषा, निशा से -

 'दिन-रात के खेल खेलता,

बोलो वह कौन जुआरी है?'


यौवन की मस्ती में आकर,

चीड़े-चिड़िया लहक रहे हैं।

माँ के मुख में चोंच डालकर,

बच्चे  उनके  चहक रहे हैं-

'ममता-प्यार लुटाने  वाली

माता, तू सदा हमारी है।'

               'तमस हटा है...।'

अन्धकार की मदहोशी से,

सूर्य देव  भी जाग रहे हैं।

रजनी का सौन्दर्य चुराकर,

तारे नभ  से भाग रहे हैं।

चांद उदास दिखता है जैसे,

युवती  कोई   कुंवारी  है।

               'तमस हटा है...।'

आस-पास ही कहीं फूल के,

तितली कोई डोल रही है,

भौंरों ने  जब  गुन्जारा तो,

कलियाँ घूंघट खोल रही हैं। 

सोच रहा  है कोई बुढ़ापा,

 'दुनिया  कितनी प्यारी है!'

              'तमस हटा है...।'

कल जो नन्ही लतिकाएँ थीं,

शायद आज बनीं किशोरी।

कोहरे का पट खोल-खोल कर,

नज़र  उठातीं  चोरी-चोरी।

चला गया 'कल' कुछ लोगों का,

अब आज  हमारी बारी है।

             'तमस हटा है...।'

झुकी-झुकी फूलों की डाली,

यौवन से लगती भरी-भरी।

हर उभार पर भीग रही है,

वसुधा की साड़ी हरी-हरी।

क्यों लाल हुआ उसका मुखड़ा,

वह कौन छुपा अभिसारी है?

             'तमस हटा है...।'

'सोने- चांदी  के  फूलों  में,

किसने मोती  पिरो दिए हैं?

या तुमने ही रात अचानक,

आँसू  इतने  बहा लिए हैं।'

इसको किसका उपहार कहें,

यह तो कवियों की प्यारी है।

             'तमस हटा है...।'

"तुमसे  दूर  चली  जाऊँगी,

इतना मुझ पर विश्वास करो।

'अन्धेरे  से प्यार  किया था'-

मत मेरा तुम उपहास करो।"

-भरे नयन कहती है रजनी-

"यह  बाज़ी  मैंने  हारी है।"

             'तमस हटा है...।'



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