मेरा देश धनवान देशों में से नहीं है। यहाँ कई ऐसे गरीब लोग हैं जिन्हें रात को भूखे पेट सोना पड़ता है और उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो सोने के बाद कभी उठते ही नहीं। इस तथ्य को केवल उनके निकट सम्बन्धी ही नहीं जानते, हम सभी जानते हैं, देश का शासन भी जानता है। हम लोगों के पास उनके लिए
सहानुभूति के चंद शब्द ही होते हैं, उनकी भूख का समाधान नहीं होता। कुछ बुद्धिजीवी मानवतावादी उनके लिए कुछ समय के लिए द्रवित भी हो लेते हैं, लेकिन सिर के एक झटके के साथ उन गरीबों की त्रासदी को उनकी नियति और प्रारब्ध से जोड़कर चिंता-मुक्त हो जाते हैं, क्योंकि समाधान उनके पास भी नहीं है।
तो जब जनता के एक तबके को जीने के लिए दो रोटी भी नसीब नहीं है, हमारे देश के कर्णधारों के लिए यह कहाँ तक उचित है कि प्रधानमंत्री के भाषण-मात्र के लिए एक सभा के आयोजन में 15 करोड़ रुपये फूँक दें! यह सभा झुन्झनूं में 8, मार्च को होने जा रही है।
धन की यह अन्धी बर्बादी रोकी जा सकती है।आज लगभग प्रत्येक घर में टीवी उपलब्ध है। एक सार्वजनिक घोषणा के द्वारा जनता को पूर्व-सूचना दी जा सकती है कि किस समय किस नेता की अमृत-वाणी प्रसारित की जानी है। मेरी समझ से बस इतना करना यथेष्ट होगा।
यह अवश्य है कि मेरे समझने से कुछ नहीं होगा, समझना उनको होगा जिन्हें समझना चाहिए।

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